पुल निर्माण से जुथाना में होगी नए युग की शुरुआत
जागरण संवाददाता, कठुआ : जिला कठुआ में 30 करोड़ रुपये की लागत से उज्ज दरिया पर पुल निर्माण जारी है। अग
जागरण संवाददाता, कठुआ : जिला कठुआ में 30 करोड़ रुपये की लागत से उज्ज दरिया पर पुल निर्माण जारी है। अगर अगले वर्ष तक राजनीतिक सहित कोई अन्य रुकावट नहीं आती है तो आजादी के बाद उज्ज दरिया पर पुल बनने का सपना देख रही जुथाना व आसपास की 15 हजार आबादी को सबसे बड़ा तोहफा मिल सकता है। उनका पूरे वर्षभर अब जिला मुख्यालय से सड़क संपर्क रहेगा। पुल का एक छोर बसोहली और दूसरा छोर बिलावर विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है, जिसके चलते दो विधानसभा क्षेत्रों के लोगों को लाभ मिलने से उनका आपस में सीधा संपर्क भी होगा।
हालांकि पुल निर्माण के लिए तीन वर्ष का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन जिस गति से काम हो रहा है उससे निर्धारित लक्ष्य से एक वर्ष पहले ही पुल बनने की उम्मीद है। इस पुल की मांग विगत पांच दशक पुरानी है। इसके निर्माण के लिए विगत दो दशक से प्रयास हो रहे हैं, लेकिन फंड के अभाव में पुल का निर्माण नहीं हो सका। अब मौजूदा सरकार ने फंड का प्रबंध किया और जनता को बड़ी सुविधा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
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500 मीटर लंबे पुल का निर्माण अप्रैल माह के अंत से शुरू हुआ था। जम्मू-कश्मीर प्रोजेक्ट कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन निर्माण एजेंसी द्वारा कराए जा रहे इस पुल का निर्माण चंडीगढ़ की एकनामीगिरामी वीके गुप्ता एंड कंपनी करा रही है। पांच सौ मीटर लंबे पुल में कुल 13 पिल्लर बनेंगे, जिनमें से अभी तक 9 का निर्माण दरिया के धरातल स्थल से काफी ऊपर तक हो चुका है।
- रविंद्र मंसोत्रा, डिप्टी जनरल मैनेजर, जेकेपीसीसी, कठुआ
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आपसी खींचतान में एक वर्ष बाद शुरू हुआ काम
जिला कठुआ में यह एक ऐसी परियोजना है, जिसका करोड़ों की लागत होने पर भी बिना नींव पत्थर रखे ही निर्माण जारी है। ऐसा भी नहीं है कि इस परियोजना के निर्माण से पहले नींव पत्थर रखने के प्रयास नहीं किए गए। इस परियोजना के नींव पत्थर रखने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री स्व: मुफ्ती मुहम्मद सईद से लेकर मौजूदा मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती तक के कार्यक्रम बने, जिस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह, उपमुख्यमंत्री डॉ. निर्मल सिंह सहित दिग्गजों को भी शामिल किया जाना था, लेकिन राजनीतिक वर्चस्व दिखाने की होड़ में आम राय नहीं बन पाई। इसमें मुख्य कारण नेम प्लेट पर किसका नाम होगा और किसका नहीं, रहा। दो बार तो नेम प्लेट बनाई जा चुकी थी, लेकिन उसमें रखे गए नाम को लेकर उपरोक्त मंत्रियों की आम राय नहीं बन पाई। इसलिए पुल का निर्माण लगभग एक वर्ष तक शुरू नहीं हो सका। उसके बाद निर्माण एजेंसी ने अपना काम बिना नींव पत्थर के ही शुरू कर दिया।