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परमेश्वर ही सत्य है : शास्त्री

संवाद सहयोगी बिलावर : संत सुभाष शास्त्री जी ने देवल में आयोजित सत्संग के दौरान प्रवचन करते हुए संगत

By Edited By: Published: Wed, 31 Aug 2016 09:15 PM (IST)Updated: Wed, 31 Aug 2016 09:15 PM (IST)

संवाद सहयोगी बिलावर : संत सुभाष शास्त्री जी ने देवल में आयोजित सत्संग के दौरान प्रवचन करते हुए संगत से कहा कि जो जीवों के कर्म अनुसार नाना प्रकार के भोगों का निर्माण करने वाला परम पिता परमेश्वर, प्रलय में सबकी जान को जो बचाता रहता है वहीं परम विशुद्ध तत्व है,वहीं ब्रह्म है,वहीं अमृत है। उसी से सम्पूर्ण लोक आश्रय पाए हुए है। उसका का अतिक्रमण कोई नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि सिवाय उस परमपिता परमेश्वर के कोई भी सत्य नहीं है। सदैव उसपर ही अश्रित रहना चाहिए। शास्त्री जी ने कहा कि हमे श्रेय का मार्ग ही अपनाना चाहिए। श्रेय अर्थात कल्याणकारी एवं उत्थानकारी साधन एवं प्रिय अर्थात प्रेय लगने वाले संसारिक भोग वाले साधन दोनों अलग अलग हैं। दोनो भिन्न भिन्न फल देते हैं और मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इन दोनो में श्रेय यानि कि कल्याणकारी साधनों को ग्रहण करने वालों का कल्याण होता है। परंतु प्रेय साधनों को जो अपनाता है वह यथार्थ लाभ से वंचित रह जाता है। शास्त्री जी ने दोनों का अर्थ समझाते हुए कहा कि श्रेय और प्रेय दोनों ही मनुष्य के जीवन में आते है। बुद्धिमान मनुष्य उन दोनों के स्वरूप को भलीभांति विचार कर अलग अलग समझ लेता है। ऐसा श्रेय बुद्धिवाला मनुष्य परम कल्याण को श्रेय मानता है और कल्याण कारी साधनों को ग्रहण करता है। जो मंदबुद्धि का होता है वह दुनियादारी के सुख साधनों को ही अर्थात प्रेय को ही अपनाता है और दुखों को प्राप्त करता है । शास्त्री जी ने संगत को कहा कि अपने कल्याण के लिए हमेशा श्रेय को ही अपनाएं।

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