सदियों से गुमनामी में है ठाकुरद्वारा मंदिर
संवाद सहयोगी, चड़वाल : जिला कठुआ के कंडी क्षेत्र स्थित शिवालिक पहाडि़यों में अनेकों एतिहासिक धरोहरें
संवाद सहयोगी, चड़वाल : जिला कठुआ के कंडी क्षेत्र स्थित शिवालिक पहाडि़यों में अनेकों एतिहासिक धरोहरें हैं। हालांकि समय के साथ इन प्राचीन धरोहरों को भी प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान पहुंचा है, लेकिन उनके अवशेष आज भी इतिहास के गवाह हैं। चड़वाल से सटे कोड़ कस्बा गांव स्थित प्राचीन ठाकुरद्वारा मंदिर भी सदियों से गुमनामी में है।
इसकी इमारत जर्जर हो चुकी है, लेकिन उसकी कारीगरी का नमूना आज भी पांडव काल की याद ताजा करता है। पांडव काल में बने डोगरा शैली के ठाकुरद्वारा मंदिर समृद्ध सभ्यता का एहसास करवाते हैं। बेशक कालखंड के उतार-चढ़ाव के कारण एक समय जसरोटा के मनोरम जंगलों से सटे यह मंदिर सदियों तक लोगों की नजरों से ओझल रहे और अपना अस्तित्व खोते रहे, लेकिन आज भी यह लोगों की आस्था का केंद्र है। मंदिरों की बनावट में इस्तेमाल की गई शिलाओं पर अद्भुत चित्रकारी डोगरा काल के गौरवमय इतिहास को दर्शाती है।
नेशनल हाईवे से मात्र चार किलोमीटर दूर पांडव कालीन माता चिंतपूर्णी मंदिर से महज दो मीटर की दूरी पर स्थित इन ठाकुरद्वारा मंदिरों को माता चिंतपूर्णी के मंदिर के निर्माण समय में ही बनाया गया था। इसकी बनावट व निर्माण में लगभग एक जैसी सामग्री का इस्तेमाल हुआ है। करीब पांच-छह वर्ष पहले लोगों ने इसे ढूंढा। यहां एक छोटा मंदिर भी बनवाया गया, लेकिन एतिहासिक मंदिरों की हालत आज भी वैसी ही है।
क्षेत्रवासी केवल कुमार पादा व मास्टर जनक राज खजूरिया ने बताया कि उनके बुजुर्ग बताते थे कि क्षेत्र में माता चिंतपूर्णी मंदिर के पास कोई ठाकुरद्वारा भी है, लेकिन किसी को इस बारे में पता नहीं था। जब कुछ वर्ष पहले महंत सोमेश्वर गिरी जी महाराज माता चिंतपूर्णी मंदिर में तपस्या के लिए ठहरे तो कुछ दिन वहां रहने के बाद उन्होंने इस पवित्र स्थल का पता लगाकर प्राचीन मंदिरों को ढूंढ निकाला। आज वहां एक छोटा-सा नया मंदिर भी है, लेकिन प्राचीन मंदिर आज भी वैसे ही है। स्थानीयवासियों ने सरकार से इन एतिहासिक धरोहर के संरक्षण की मांग की है।