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इस जांबाज ने आतंकी हमले को नाकाम कर चार आतंकियों को मार गिराया

अपने स्थानीय नेटवर्क की मदद से ही उन्होंने 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव बिना किसी हिंसा के संपन्न कराए।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 07 Jun 2017 10:31 AM (IST)Updated: Wed, 07 Jun 2017 10:31 AM (IST)
इस जांबाज ने आतंकी हमले को नाकाम कर चार आतंकियों को मार गिराया

श्रीनगर,  [राज्य ब्यूरो] । इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) बेशक सीआरपीएफ की 45वीं वाहिनी के कमांडेंट इकबाल अहमद की जन्मस्थली है। लेकिन कर्मभूमि कश्मीर ही है। तभी तो वर्ष 1997 में सीआरपीएफ में भर्ती होने के बाद पहली ऑपरेशनल ड्यूटी 1998 में अनंतनाग में ही मिली थी। कमांडेंट इकबाल अहमद वही हैं, जिन्होंने सोमवार को सुंबल में आतंकी हमले को नाकाम बनाते हुए चार विदेशी आतंकियों को मार गिराने में अहम भूमिका निभाई है।

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17 मार्च 1970 को इलाहाबाद में जन्मे इकबाल अहमद के पिता रेलवे में अधिकारी थे और मां एक गृहिणी। चार भाइयों में सबसे बड़े इकबाल को बचपन से ही फौजी वर्दी पहनने का शौक था। यही शौक इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इकोनोमिक्स में एमए की डिग्री हासिल करने के बाद उन्हें सीआरपीएफ में ले आया।47 वर्षीय इकबाल 22 मई 1997 को सीआरपीएफ में भर्ती हुए और ट्रेनिंग पूरी होने के बाद 1998 में उनकी पहली पोस्टिंग भी कश्मीर के अनंतनाग जिले में हुई थी।

उन दिनों यहां आतंकवाद चरम पर था और वह सीआरपीएफ की 89वीं वाहिनी में तैनात थे। उन्होंने दक्षिण कश्मीर में कई आतंकरोधी अभियानों में हिस्सा लिया।इकबाल अहमद की पत्नी डॉक्टर हैं। दो बेटियों और एक बेटे के पिता इकबाल अहमद का वर्ष 2000 में कश्मीर से बाहर तबादला हो गया। पूर्वाेत्तर भारत के नगालैंड, त्रिपुरा जैसे आतंकग्रस्त इलाकों से लेकर वर्ष 2002 में गुजरात के दंगा पीडि़त इलाकों में उन्होंने ड्यूटी की। इसके बाद नक्सल प्रभावित राज्यों झारखंड और ओडिसा में अपनी ड्यूटी निभाने का मौका मिला।

इसके बाद उन्हें वर्ष 2011 में कश्मीर घाटी में फिर तैनात किया गया और फिर 2015 के बीच इकबाल बांडीपोर के विभिन इलाकों में तैनात रहे। उन्होंने कई आतंकरोधी अभियानों में हिस्सा लेते हुए कई नामी आतंकियों को मार गिराने में अहम भूमिका निभाई। चार वर्ष में बांडीपोर में उन्होंने अपना नेटवर्क इतना मजबूत बनाया कि कि पूरे जिले से आतंकियों की गतिविधियां नाममात्र रह गई।

अपने स्थानीय नेटवर्क की मदद से ही उन्होंने 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव बिना किसी हिंसा के संपन्न कराए। इसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया। करीब दो वर्ष पहले 2015 में इकबाल अहमद का तबादला एक बार फिर नक्सल प्रभावित ओडिसा में हो गया। लेकिन जब 14 फरवरी 2017 को 45वीं वाहिनी के कमांडेंट चेतन चीता आतंकियों से मुकाबला करते हुए जख्मी तो इकबाल अहमद को फिर बांडीपोर बुलाकर चेतन चीता के स्थान पर 45वीं वाहिनी की कमान सौंपी गई थी।


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