परम शक्ति से साक्षात्कार की आध्यात्मिक अनुभूति है अमरनाथ यात्रा
यह इलाका वर्ष भर बर्फ से ढका रहता है, जबकि यात्रा के इन दो महीनों में यहां जैसे पूरा शहर बस जाता है।
29 जून से शुरू हो रही है पवित्र श्रीअमरनाथ यात्रा, जो श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन पर समाप्त हो जाएगी। पहलगाम और बालटाल, इस यात्रा के दो मार्ग हैं। यह यात्रा पैदल, घोड़े पर या हेलीकॉप्टर से भी की जा सकती है। बूढ़े, जवान, किशोर-भले ही यात्री अलग-अलग हों, लेकिन यात्रा का प्राप्ति-भाव एक ही है।
असीम शक्ति के सामने अपनी संपूर्ण ऊर्जा, आस्था और सफर भर की चुनौतियों का समर्पण। विशाल हिमलिंग के सम्मुख पहुंचकर भान होता है कि यही है अंतिम सत्य, अंतिम सौंदर्य और अंतिम शक्ति, जिसके सामने सब कुछ गौण है।
स्थायी और अस्थायी का भेद भारतीय परिवेश में मित्रों, सहयोगियों, रिश्तेदारों के अलावा, पशुओं, वनस्पतियों, नदियों और पर्वतों से भी बहुत गहरा नाता है। अमरनाथ के दुर्गम पहाड़ों की ये यात्राएं व्यक्ति को स्थायी और अस्थायी तत्वों के बीच भेद करना सिखाती हैं।
मेला है अस्थायी
प्राकृतिक सौंदर्य की अविस्मरणीय अनुभूतियों से परिपूर्ण पवित्र अमरनाथ गुफा दक्षिण कश्मीर में समुद्रतल से 13,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस गुफा की लंबाई 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। यह इलाका वर्ष भर बर्फ से ढका रहता है, जबकि यात्रा के इन दो महीनों में यहां जैसे पूरा शहर बस जाता है। लंगर, टेंट, प्रसाद, भक्तों का मेला, वास्तव में ये सभी अस्थायी हैं। जो केवल यात्रा के इन दिनों में ही जुटते हैं। इसके विपरीत पर्वत, नदी, हरियाली और परम शक्ति से साक्षात्कार की आध्यात्मिक अनुभूति यात्रा के स्थायी तत्व हैं, जो जीवन भर स्मृतियों में साथ रहते हैं।
पवित्र गुफा में बनने वाला हिमलिंग भी तो अस्थायी है। यह चंद्रमा के आकार के साथ घटता और बढ़ता है, लेकिन यह अमर है। जीव अजर अमर नहीं हो सकता, परंतु उसके जीवन में घटी घटनाएं न कभी छोटी होती हैं, न पुरानी पड़ती हैं और न ही समाप्त होती हैं। यही है अमरनाथ का संदेश, जहां जीव नहीं, जीवत्व अजर और अमर है।
ऐतिहासिक महत्व
भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक अमरनाथ गुफा के बारे में मान्यता है कि एक बार देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व का रहस्य जानना चाहा। उस रहस्य को बताने के लिए भगवान शिव ने जिस स्थान का चयन किया, वह यही पवित्र गुफा है।
धर्म और इतिहास से संबंधित कई पुस्तकों में इस प्राचीन गुफा का उल्लेख मिलता है। 15वीं शताब्दी में एक मुसलमान गड़रिये बूटा मलिक ने इस गुफा की पुन: खोज की। गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है, जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चंद्रमा के घटने के साथ-साथ यह भी घटना शुरू हो जाता है। चांद के लुप्त होते ही शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। स्वामी विवेकानंद ने भी दो बार इस पवित्र गुफा तक की यात्रा की थी।
हर बार एक नया अनुभव
अमरनाथ जी की यात्रा भले ही दुर्गम है, लेकिन ऐसे श्रद्धालुओं की भी कमी नहीं है, जो हर वर्ष इस यात्रा में हिस्सा लेते हैं। उनका मानना है कि हर बार वे यात्रा में एक नए अनुभव से गुजरते हैं। इस बार के यात्रियों के लिए चनैनी-नाशरी सुरंग से गुजरना एक नया अनुभव होगा। नौ किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी इस गुफा के कारण यात्रा मार्ग
में 22 किलोमीटर की कमी आई है।
जरूरी है तैयारी
यात्रा के दौरान घंटों पैदल चलना पड़ता है। दुर्गम रास्तों के अलावा कई तरह के प्राकृतिक बदलावों का भी व्यक्ति को सामना करना पड़ सकता है। इसलिए जरूरी है कि यात्रा के दौरान अपने साथ पर्याप्त गर्म कपडे़, जरूरी दवाइयां और हल्का स्नैक्स रखें। टॉर्च, माचिस, पावर बैंक, पॉलीथिन बैग और पुराने अखबार आदि भी रखें। यात्रा पंजीकरण के समय और आधार शिविर में मिले निर्देशों का पालन यात्रा को सुगम बनाता है।
सेवा की अनन्य भक्ति
सभी धर्मों का एक ही संदेश है कि ईश्वर एक है। उसी परम तत्व से संपूर्ण मानव जाति का निर्माण हुआ है। सभी धर्मों एवं समुदायों में मनुष्य की मदद और सेवा को ही परमात्मा की भक्ति का मार्ग बताया गया है। अमरनाथ यात्रा के दौरान सेवा की इसी अनन्य भक्ति के दर्शन होते हैं। यात्रियों की हर तरह की सेवा करने में ही सेवादार ईश्वर-भक्ति देखते हैं। सेवा और भक्ति का समर्पित भाव ही तो है जीवन का सार। जहां वैमनस्य नहीं, बल्कि समर्पण का है भाव।