पाक गोलाबारी से शिक्षा पर संकट
सतीश शर्मा, बिश्नाह
पाकिस्तानी गोलीबारी के कारण सीमावर्ती गांवों के बच्चों का भविष्य दांव पर लगा है। बेशर्म पाकिस्तान के दुस्साहस के कारण दो सप्ताह से स्कूलों पर ताले लटके हुए हैं। हालात बद से बदतर होते देख बच्चे भी परिवार के साथ सुरक्षित स्थानों की ओर कूच कर चुके हैं।
अरनिया सब सेक्टर में सीमा से दो किलोमीटर के रेंज में सभी दस सरकारी स्कूल और करीब दस निजी स्कूलों को बंद कर दिया गया है। इनमें से कई स्कूल ऐसे हैं, जो पाकिस्तानी गोले गिरने से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। हाईस्कूल त्रेवा और जबोवाल पर पाकिस्तान से दागे गए मोर्टार शेल गिरे हैं। इससे शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही दहशत में हैं। प्रशासन ने हालात को देखते हुए एहतियातन स्कूल बंद करने के निर्देश दे दिए हैं। इसके अलावा सरकारी हाईस्कूल त्रेवा, चन्ना, चंगिया, कदवाल, पिंडी चाढ़का को भी बंद कर दिया गया है। इन स्कूलों में करीब तीन हजार विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि इन स्कूलों के बच्चों को सुरक्षा के लिहाज से घरों में बैठना पड़ा हो। पिछले दो महीनों के दौरान पाक गोलाबारी के कारण अमूमन स्थिति ऐसी ही बनी रही।
बिश्नाह के सलैहड़ गांव स्थित सरकारी स्कूल में परिवार संग शरण लिए त्रेवा गांव की पूजा, शुभ देवी ने बताया कि वे दसवीं कक्षा में पढ़ती हैं। उन्हें इस साल अधिक मेहनत की जरूरत है, लेकिन पाकिस्तानी गोलाबारी के चलते उनकी पढ़ाई चौपट हो गई है। वे शरणार्थी बनकर रह रही हैं जिस कारण पढ़ाई नहीं कर पा रही हैं। वहीं, छात्राएं रिशु देवी, पिंकी देवी भी अपनी पढ़ाई को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि उनके स्कूल बंद हैं और कैंप में पढ़ाई का माहौल नहीं है।
एक और विद्यार्थी कर्मजीत का कहना है कि गांव से रात को भागते समय उसका बैग घर में ही रह गया है। अब उनमें इतनी हिम्मत नहीं है कि वह गांव जाकर अपना बैग लाकर पढ़ाई करे। प्रशासन को कैंप में पढ़ाई का बंदोबस्त करना चाहिए।
तहसीलदार मुहम्मद सईद का कहना है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए स्कूलों को बंद करना पड़ा है। उनकी पढ़ाई को लेकर प्रशासन गंभीर है। बच्चे जिन शरणार्थी स्कूलों पर हैं, वहां पर शिक्षकों को भेज कर उन्हें पढ़ाया जाएगा।
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मेरा 'मिट्ठू' मेरे पास रहेगा
संवाद सहयोगी, बिश्नाह : अपने सामने रोजाना माल मवेशियों को मरते देख मासूम तनवी को अपने मिट्ठू की चिंता सताने लगी है। त्रेवा गांव में रहने वाली तनवी ने घर में एक तोता पाल रखा है। मिट्ठू भी हर वक्त तनवी को पुकारता रहता है। कुछ दिनों से जारी पाक गोलाबारी की आवाजें सुन मिट्ठू भी सहमा हुआ है। अधिक गोलाबारी होने पर पलायन करने को मजबूर परिवार जब तनवी को लेकर घर से निकला तो मिट्ठू भी उसके साथ था। त्रेवा गांव से सलैहड़ में बने कैंप में पहुंचे तो तनवी अपने मिट्ठू के पिंजरे को भी वहां ले आई। वहां वह हर किसी को यही पूछती है कि वह अपने मिट्ठू को कहां छिपाए ताकि इसे गोली न लगे। तनवी का अपने तोते के प्रति प्यार कैंप में सब लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। कैंप में जब कोई तनवी से उसके मिट्ठू का पिंजरा मांगता है तो वह उसे अपनी बाहों में छिपा लेती है।