Move to Jagran APP

खूबियां गिनाए, खामियां नहीं

किसी के लिए गॉसिप, किसी के लिए मनोरंजन तो किसी के लिए शेयरिंग है शिकायतें करना, लेकिन शिकायतों का यह सिलसिला जिंदगी कहां मोड़ देगा आपको अंदाजा नहीं।

By Edited By: Published: Sat, 04 May 2013 12:44 PM (IST)Updated: Sat, 04 May 2013 12:44 PM (IST)
खूबियां गिनाए, खामियां नहीं

किसी के लिए गॉसिप, किसी के लिए मनोरंजन तो किसी के लिए शेयरिंग है शिकायतें करना, लेकिन शिकायतों का यह सिलसिला जिंदगी कहां मोड़ देगा आपको अंदाजा नहीं। बदलिए अपना एटीट्यूड और मुश्किलों की तह तक जाइए। खूबियां गिनिए खामियां नहीं..

loksabha election banner

इनका तो रूटीन बन गया है रोज देर से आने का। सारा काम मुझे ही करना पड़ता है। बच्चों को ट्यूशन लाना ले जाना है, फल लाने हैं, घर के लिए साग-सब्जी लानी है। हर दिन कहती हूं कि जल्दी आएं, बच्चों को देखें कि क्या पढ़ रहे हैं क्या नहीं, लेकिन कुछ सुनते ही नहीं। बस इनका तो दफ्तर भला और ये भले।' अपना दुखड़ा रोती जा रही थीं अनामिका। उन्हें लग रहा था कि वे अपनी व्यथा बांट रही हैं, लेकिन देख नहीं पा रही थीं कि जिन सहेलियों के बीच उनकी शिकायतों का सिलसिला चल निकला था वे मंद-मंद मुस्कुरा रही थीं। उन मजा लेने वाली सखियों में न तो कोई उनका हमदर्द था और न ही कोई उनकी इस समस्या को सुलझाने में समर्थ था।

अनामिका जैसी महिलाओं की कमी नहीं है इस जहान में, जो पूरी जिंदगी शिकायतों के बीच ही गुजार देती हैं। वे हमेशा यही कहती रहती हैं कि उनके पास ये नहीं है, वो नहीं है। पति से, बच्चों से, रिश्तेदारों से, किस्मत से, यहा तक कि खुद से भी इनको शिकायत बनी रहती है। इस रवैये के चलते उनके पास जो है उसको भी पूरी तरह से एंजॉय नहीं कर पाती हैं। वे नहीं जानतीं कि उनका खुश रहना उनके और परिवार की तरक्की के लिए कितना जरूरी है। अगर वे अपने इस शिकायती लहजे को बदल लें या किसी की कमी को पॉजीटिव तरीके से जाहिर करें तो समस्याएं समाप्त होने में देर ही नहीं लगेगी।

बनता है कोई तुक

अब अनामिका के किस्से को ही लें तो परिवार और उनके लिए ही तो देर रात तक पति ऑफिस में रुककर अपनी नौकरी बचाने की कोशिश करते हैं। ओवरटाइम कर ज्यादा पैसा कमाने की फिराक में रहते हैं या फिर प्रमोशन लेकर आगे बढ़ने के लिए मेहनत करते हैं। महिला मंडली के बीच उनकी शिकायत करने का क्या तुक बनता है? क्या इनमें से किसी के पास अनामिका के पति को जल्दी घर लाने का कोई उपाय है? क्या किसी को उनकी घरेलू परिस्थितियां पता हैं? ऑफिस की कठिनाइयों की जानकारी है? पति के देर तक रुकने का कारण क्या है, यह समझने की कोशिश तो की नहीं अनामिका ने, बल्कि सबके बीच अपने पति को दोषी करार दे दिया। आखिर कितना उचित है अपने घर की शिकायत बाहर करना?

एक्सेप्ट करनी है मुश्किलें

'जब हमने प्रेम विवाह किया था तो हम दोनों के पास नौकरी नहीं थी। बच्चा भी जल्दी हो गया। कई तरह के काम कर हमने गुजारा किया। तब तो हम सोच भी नहीं सकते थे कि हमारे पास कभी घर का मकान होगा, कोई जमीन का टुकड़ा होगा, लेकिन हमने स्ट्रगल की और किसी के सामने अपना रोना नहीं रोया। अपनी स्थितियां किसी को नहीं बताई। अगर हम खुद से, जिंदगी से या अपने घर वालों से शिकायत ही करते रहते तो आज जो कर पाए हैं वो कभी भी नहीं कर पाते।' जिंदगी के प्रति खालिस पॉजीटिव एटीट्यूड जताते हुए कहती हैं प्रमिला पुरी। उनका मानना है कि हर एक के जीवन में अच्छी-बुरी स्थितियां आती हैं। इन्हें एक्सेप्ट करना ही होता है। एक लेवल तक तो भाई-बहन, रिश्तेदार या दोस्त होते हैं। उसके बाद तो आपको ही हर मुश्किल का सामना करना है। ऐसे में शेयर करने के बहाने शिकायतें करने का कोई अर्थ नहीं रह जाता।

खामियां गिनाना हल नहीं

करीना और कामिनी बहनें हैं। करीना दिल्ली में रहती हैं और कामिनी जालंधर में। दोनों का इकलौता भाई भी दिल्ली में रहता है। करीना चाहती हैं कि उनका भाई अपना हर काम छोड़ कर उन्हें बुलाता रहे, उनकी खातिर करे, लेकिन व्यस्त होने के कारण वह ऐसा नहीं कर पाता। ऐसे में कामिनी के दिल्ली आने पर करीना शुरू हो जाती हैं कि भाई ने उनको पूछा नहीं, फलाने त्योहार पर नहीं बुलाया, बर्थ डे पर कोई गिफ्ट नहीं दिया आदि-आदि। करीना की शिकायतें सुनते-सुनते उकता जाती हैं कामिनी, लेकिन कुछ बोल नहीं पातीं, क्योंकि एक तरफ भाई है तो दूसरी तरफ बहन। उनको समझ नहीं आता कि वह किसकी तरफ से बोलें। भाई से बहस करती हैं तो उससे संबंध बिगड़ने का डर। यदि बहन की बातें नहीं सुनती हैं तो उसके नाराज होने का खतरा।

सिर्फ एक ही उपाय उन्हें समझ में आया कि वे अपनी सगी बहन से दूरी बना लें और किसी भी प्रकार की चक-चक से बचने के लिए उन्होंने ऐसा ही किया। एक नजदीकी संबंध में करीना के शिकायती व्यवहार के कारण दूरियां आ गई। आखिर किसको फायदा मिला इससे? अगर करीना भाई के व्यस्त होने या उनको नहीं बुला पाने का कारण समझतीं और अपनी बात शेयर करने का सोचकर भाई की खामियां नहीं गिनातीं तो संबंध शायद और ज्यादा प्रगाढ़ होते और पूरी जिंदगी वह भी सुकून से रहती और अपने मायके वालों को भी टेंशन नहीं देतीं।

और ज्यादा बढ़ेगा टेंशन

'मॉम यहां खाना अच्छा मिल रहा है। रूम भी काफी अच्छा है। मेरे फ्रेंड्स साथ हैं। फैकल्टी भी अच्छी मिली है। आप कोई चिंता न करना। मैं मस्त हूं यहां पर।' अपनी बेटी मनु के ये शब्द सुनकर मानो टनों वजन उतर गया विभा सरन के सिर से। उन्होंने शुक्र मनाया कि मनु ने किसी बात की शिकायत नहीं की, अगर की होती तो इतनी दूर बैठकर वह टेंशन ले लेतीं और कुछ कर भी नहीं पातीं। दरअसल, विभा जी की बेटी ट्रेनिंग पर नॉर्थ इंडिया से साउथ इंडिया गई है। उनका ध्यान बेटी पर ही अटका रहता है। दूर होने के कारण वह जा नहीं पाती हैं और व्यस्त होने के कारण बेटी आ नहीं पाती। ऐसे में अगर बेटी यह कहे कि यहां खाने में कुछ अच्छा नहीं मिलता। जाने कहां आ गई हूं, सब कुछ बदला-बदला है, अकेली पड़ गई हूं आदि-आदि तो विभा जी का अपने घर में रहना तक मुश्किल हो जाता। यह तो बेटी की समझदारी है कि उसने सकारात्मक रुख बना रखा है। वो खुद भी उदास नहीं है और मॉम को भी निश्चिंत बनाए हुए है। नहीं तो क्या ऐसा हो सकता है कि नए शहर में उसे कोई परेशानी न हो।

पिटारा शिकायतों का

- बहुत चालाक है ननद

- वो नहीं जाते मेरे मायके

- बर्थ डे विश तक नहीं करते

- सासू मां टोकती हैं हर बात में

- इनका तो गुस्सा ही बड़ा तेज है

- हर समय चिपके रहते हैं टीवी से

- मेरे लिए तो टाइम ही कहां है इनके पास

- घरेलू कामों की तरफ ध्यान ही नहीं देते

- क्रिकेट बन गया है सौतन

इनसिक्योरिटी होती है जाहिर

आरती आनंद, मनोचिकित्सक

जिन महिलाओं का हर वक्त शिकायत करते रहने का एटीट्यूड होता है वो सिर्फ अपनी इनसिक्योरिटी ही जाहिर करती हैं। उनमें कॉन्फिडेंस की कमी नजर आती है। अपनी इनर सर्किल में वे हमेशा दूसरों से तुलना करती रहती हैं। उन्हें लगता है कि जो दूसरों के पास है वो उनके पास भी होना चाहिए। कई तो यह भी सोचती हैं कि किसी दूसरे के गलती निकालने से पहले वे खुद ही बोल दें। जिन्होंने बचपन में यह देखा होता है कि लड़ाई-झगड़े से लाभ होता है उनकी भी इस प्रकार की प्रवृलि बन जाती है। वे दूसरों को नीचा दिखाकर आगे बढ़ने की सोचते हैं। ऐसी महिलाएं अपनी पूरी जिंदगी नकारात्मकता में तो गुजार ही देती हैं, ऐसे माहौल में उनके बच्चों पर भी विपरीत असर पड़ता है। उनको सही संस्कार नहीं मिलते हैं। वे कनफ्यूज रहते हैं। डिप्रेशन महसूस करते हैं। उनमें व्यावहारिक समस्याएं जन्म लेने लगती हैं। अगर मां स्टेबल हो तो ही बच्चे अच्छे निकलते हैं।

यशा माथुर

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.