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दूर तो हूं नहीं..

शादी के बाद मैं पहली बार इनके घर आई थी। ऑफिस से आने के बाद ये थोड़ी देर तो घर पर रहते, फिर खाना खाने के बाद तुरंत यह कहकर घर से निल जाते कि टहल कर अभी आता हूं। उनका इंतजार करते-करते मैं एक झपकी भी ले लेती। ये विलंब से आते और आते ही सो जाते। उनकी इस आदत से मैं बहु

By Edited By: Published: Mon, 21 Apr 2014 03:41 PM (IST)Updated: Mon, 21 Apr 2014 03:41 PM (IST)
दूर तो हूं नहीं..

शादी के बाद मैं पहली बार इनके घर आई थी। ऑफिस से आने के बाद ये थोड़ी देर तो घर पर रहते, फिर खाना खाने के बाद तुरंत यह कहकर घर से निल जाते कि टहल कर अभी आता हूं। उनका इंतजार करते-करते मैं एक झपकी भी ले लेती। ये विलंब से आते और आते ही सो जाते। उनकी इस आदत से मैं बहुत परेशान थी। इन्हें टोकती या उलाहना देती तो हंस कर कहते कि कहीं दूर तो था नहीं। घर के बाहर ही दोस्तों से गप्पे मार रहा था। यह सुनकर मैं चुप हो जाती।

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मुझे इनकी दलीलें पचती नहीं थीं। अत: एक रात जब ये सोने चले गए, तो मैं चुपचाप दूसरे कमरे में जाकर सो गई। दूसरी रात भी मैंने यही किया। तीसरी रात जब मैं नींद में थी तभी अचानक चौंक गई। देखा, तो ये मेरे पास ही थे। मुझसे बोले ये क्या है? यहां क्यों सो रही हो?

मैं बोली कि आपसे दूर तो हूं नहीं। बस आपके बगल के कमरे में सो रही हूं। इन्होंने मुझे प्यार से उठाया और बोले सॉरी बाबा मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया। आइंदा ऐसी भूल नहीं होगी। छोटे से प्रयास से सांप भी मर गया, लाठी भी नहीं टूटी। इन्होंने मेरी भावना की कद्र की तो मेरे मन में भी इनके प्रति प्यार और इज्जत बढ़ गई।

(रेणुका श्रीवास्तव, लखनऊ)


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