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.जनाब, अब तो पौधे रोपने भी नहीं आ रहे

नीरज पराशर, ¨चतपूर्णी पहले ही जंगल की आग, अवैज्ञानिक दोहन और वन माफिया के शिकार अम्ब उपमंडल के वन

By Edited By: Published: Sat, 27 Aug 2016 01:42 AM (IST)Updated: Sat, 27 Aug 2016 01:42 AM (IST)

नीरज पराशर, ¨चतपूर्णी

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पहले ही जंगल की आग, अवैज्ञानिक दोहन और वन माफिया के शिकार अम्ब उपमंडल के वन्य क्षेत्र से वन विभाग भी सौतेले व्यवहार पर उतर आया है। पहले पौधरोपण के नाम पर क्षेत्र के जंगलों में विभाग कसरत तो करता था, लेकिन अब यह विडम्बना ही है कि पौधरोपण के नाम पर रस्म अदायगी तक भी नहीं हो रही है।

बरसात के मौसम में नई पौध को जंगलों में रोपने के दावे करने वाले विभाग के दावों की हकीकत यही है कि इस दफा कुल चौदह बीट में से आठ बीट के लिए पौधरोपण के लिए बजट का प्रावधान ही नहीं था। हालांकि विभाग रोटेशन के तहत बजट मुहैया करवाने का स्पष्टीकरण जरूर दे रहा है, लेकिन सच यह भी है कि इनमें से ही कई बीट को पिछले वर्ष भी पौधरोपण के नाम पर शून्य से ज्यादा कुछ नहीं हुआ।

वन रेंज भरवाईं के तहत ¨चतपूर्णी और गगरेट विस क्षेत्रों की कुल चौदह बीट में विस्तृत वन्य क्षेत्र हैं। बेहड़-भटेहड़ से लेकर लोहारा-गुरेट की सीमा तक जिला ऊना का सर्वाधिक घनत्व वाली चीड़ की बेल्ट इसी क्षेत्र में आती है। वन विभाग के पास करीब 7860 हेक्टेयर रकबा है। इसमें 3240.02 हेक्टेयर रकबा रिजर्व जंगल का है, जबकि 3946.27 हेक्टेयर भूमि का रकबा शामलाट का है। इसके अलावा भू-जोत सीमा का भी 673.34 हेक्टेयर भू-भाग है। अब मजेदार बात यह है कि इस वर्ष नई पौधरोपण के लिए विभाग के पास सिर्फ 29 हेक्टेयर पर पौधे लगाने की योजना है। बधमाणा, जोह, सलोह-बैरी, किन्नू और गुरेट जैसे वन्य क्षेत्रों में जहां पिछले वर्षो में जंगल की आग ने भारी तबाही मचाई है और साफ दिख रहा है कि इन क्षेत्रों में वन्य भू-भाग कम हो रहा है, वहां पर भी वन विभाग ने आंखें मूंद ली हैं भरवाई वन रेंज के अधिकारी मुलख राज ने बताया कि रेंज के तहत आने वाले क्षेत्र में 30,500 पौधे लगाने का लक्ष्य था, जिसे लगभग पूरा कर लिया गया है। सिद्ध चलेहड़ बीट के तहत सड़क के किनारे नए पौधे विभाग द्वारा लगाए जा रहे हैं।

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भरवाई में सबसे अधिक है चीड़ के पेड़ों का वन्य क्षेत्र

भरवाई वन्य क्षेत्र के तहत सबसे अधिक पेड़ चीड़ के पाए जाते हैं। बधमाणा, घंगरेट, डूहल भटवालां, किन्नू, गुरेट, सारढ़ा, आरनावाल, सपौरी, अमबटिल्ला, कुहाड़छन्न, चौआर, अमलैहड़, अरड़ोह व सलोह में इन पेड़ों की बहुतायत है। लम्बे समय बाद पौधे से पेड़ बनने वाली इस प्रजाति का अस्तित्व भी दाव पर है। जंगल की आग के बाद बिरोजा निकालने के नाम पर भी इस पेड़ को छलनी किया जा रहा है। अनुमान के मुताबिक बधमाणा, धर्मसल महंता, ¨गडपुर मलौण व डूहल भटवालां के जंगलों में इन पेड़ों की संख्या तेजी से घट रही है।


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