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..तो तबाह हो जाती पहाड़ों की रानी

जागरण संवाददाता, शिमला : कैंसर अस्पताल में अगर सिलेंडर फट जाता तो पहाड़ों की रानी शायद सदियों तक जख्म

By Edited By: Published: Sat, 22 Oct 2016 02:04 AM (IST)Updated: Sat, 22 Oct 2016 02:04 AM (IST)

जागरण संवाददाता, शिमला : कैंसर अस्पताल में अगर सिलेंडर फट जाता तो पहाड़ों की रानी शायद सदियों तक जख्मों से उभर न पाती है। अस्पताल के भीतर रेडियोएक्टिविटी से कैंसर का इलाज किया जाता है। इसके लिए टेलीकोबाल्ट यूनिट बनी हुई। अल्माइटी ब्लेसिंग संस्था की कैंटीन के बिलकुल पीछे यह यूनिट स्थित थी। अगर सिलेंडर फट जाता तो यूनिट के भीतर मौजूद मशीनें जल जाती। इस वजह से यूनिट में मौजूद रासायनिक तत्व कोबाल्ट बाहर फैल जाना था। हवा के साथ-साथ आसपास के करीब पांच किलोमीटर के दायरे में कोबाल्ट की तरंगें पर्यावरण एवं इंसान को प्रभावित करती। शुक्रवार को अस्पताल में अवैध कैंटीन में जिस सिलेंडर को आग लगी थी वह अगर फट जाता तो शायद सैकड़ों लोग मौत का ग्रास बनते और कई उम्र भर के लिए कोबाल्ट के कहर के गवाह रहते है।

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कोबाल्ट का कितना एक्सपोज होता है। उस हिसाब से प्रभाव पड़ता है। यहां तक इसके संपर्क में आने से इंसान की मौत तक हो सकती है। इसके साथ कई बीमारियों भी कोबाल्ट के संपर्क आने से लग सकती हैं।

-डॉ. मनोज गुप्ता, कैंसर अस्पताल आइजीएमसी

रद हो सकता है लाइसेंस

रेडियो एक्टिविटी का इस्तेमाल करने के लिए लाइसेंस जरुरी होता है। यह लाइसेंस एटामिक रगुलेटरी बोर्ड की ओर से दिया जाता है। रेडियो तरंगों को इस्तेमाल करने के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं। अगर इन नियमों का उल्लघंन हो तो लाइसेंस रद हो जाता है। नियमों के मुताबिक रेडियोएक्टिविटी का इस्तेमाल करने वाली मशीनों के आसपास कोई रसाइघर या सिलेंडर का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। ऐसे में अगर बोर्ड को कैंसर अस्पताल की हरकत के बारे पता चले तो लाइसेंस भी रद हो जाएगा। अगर लाइसेंस रद हो जाता है तो प्रदेश में हजारों कैंसर पीड़ित लोगों को रेडियोथरेपी की सुविधा नहीं मिल पाएगी। इससे लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

क्या है कोबाल्ट 60

कोबाल्ट एक रासायनिक तत्व है और संक्रमण धातु के समूह का सदस्य है। कोबाल्ट 60 कोबाल्ट का एक समस्थानिक है। यह सबसे अधिक प्रयोग में आने वाले रेडियोधर्मी समस्थानिकों में से है। प्राकृतिक रूप में पाया जाने वाला कोबाल्ट अपनी प्रकृति में स्थायी होता है, लेकिन 60 एक मानव निर्मित रेडियो समस्थानिक है, जिसे व्यापारिक प्रयोग के लिए 59ब्व के न्यूट्रॉन सक्रियन द्वारा तैयार किया जाता है। माइक्रोइलेक्ट्रॉनवोल्ट के दो गामा किरणें उत्सर्जित होती हैं। कोबाल्ट 60 परमाणु संयंत्रों के कामों में उपयोग होता है। इनमें कैंसर के उपचार से लेकर औद्योगिक रेडियोग्राफी तक आते हैं। औद्योगिक रेडियोग्राफी में यह किसी भी इमारत के ढांचे में कमी का पता लगाता है। इसके अलावा चिकित्सा संबंधी उपकरणों की स्वच्छता, चिकित्सकीय रेडियोथेरेपी, प्रयोगशाला प्रयोग के रेडियोधर्मी स्रोत, स्मोक डिटेक्टर, रेडियोएक्टिव ट्रेसर्स, फूड और ब्लड इरेडिएशन जैसे कार्यो में भी प्रयोग किया जाता है।

हालाकि प्रयोग में यह पदार्थ बहुआयामी होता है, लेकिन इसको नष्ट करने में कई तरह की समस्याएं आती हैं। भारत की ही तरह संसार भर में कई स्थानों पर इसे कचरे के रूप में बेचे जाने के बाद कई दुर्घटनाएं सामने आई हैं। इस कारण इसके संपर्क में आने वाले लोगों का स्वास्थ्य संबंधी कई घातक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। धातु के डिब्बों में बंद किए जाने के कारण यह अन्य कचरे के साथ मिलकर पुनर्चक्रण संयंत्रों में कई बार गलती से पहुंच जाता है। यदि इसे किसी संयंत्र में बिना पहचाने पिघला दिया जाए तो यह समूचे धातु को विषाक्त कर सकता है। कोबाल्ट 60 जीवित प्राणियों में काफी नुकसान पहुंचाता है। अप्रैल 2010 में दिल्ली में हुई एक दुर्घटना में भी कोबाल्ट 60 धात्विक कचरे में मिला है। इसकी चपेट में आए लोगों को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर हानि होती है। मानव शरीर में पहुंचने पर यह यकृत, गुर्दो और हड्डियों को हानि पहुंचाता है। इससे निकलने वाले गामा विकिरण के संपर्क में अधिक देर रहने के कारण कैंसर की आशका भी बढ़ जाती है। यहां तक मौत का ग्रास भी बन जाता है।


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