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दवा तो मिलती नहीं..कैसा मुफ्त जेनरिक औषधालय

ताराचंद शर्मा, शिमला आइजीएमसी अस्पताल शिमला के ऑर्थो वार्ड में बैड नंबर सात पर बैठी सीता के माथे प

By Edited By: Published: Mon, 30 May 2016 01:01 AM (IST)Updated: Mon, 30 May 2016 01:01 AM (IST)

ताराचंद शर्मा, शिमला

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आइजीएमसी अस्पताल शिमला के ऑर्थो वार्ड में बैड नंबर सात पर बैठी सीता के माथे पर चिंता की लकीरें साफ झलक रही थीं। सीता का पति श्याम लाल डेढ़ साल के बेटे अनमोल को गोद में लेकर बैठा था। डॉक्टरों ने अनमोल को कैल्शियम की दवा लगातार खिलाने के लिए कहा है।

सोमवार को अनमोल का ऑपरेशन होना है जिसके लिए श्याम लाल ने रिश्तेदारों से एक लाख 65 हजार रुपये उधार लिए हैं। ऑपरेशन के सामान की लिस्ट देखकर श्याम लाल व सीता देवी दोनों चिंता में डूबे हैं। उन्हें चिंता है कि ऑपरेशन के लिए पैसे कम न पड़ें, दवाइयां कहां से आएंगी और उधार पैसे कैसे चुकाएंगे। अस्पताल में 17 दिनों से उपचाराधीन अनमोल को अभी तक केवल 40 रुपये की एक ही दवाई जेनरिक सेंटर से मुफ्त मिली है। वे अभी तक 20 हजार रुपये से अधिक का खर्च दवाइयों के लिए कर चुके हैं। एक-एक इंजेक्शन 500 रुपये का पड़ रहा है। पेशे से मजदूर श्याम लाल कहते हैं कि हमें सरकार द्वारा चलाई जा रहे मुफ्त जेनरिक औषधालय का कोई लाभ नहीं मिल रहा है। दवा तो यहां मिलती नहीं है। दवाइयां तो बाजार से ही खरीदनी पड़ती हैं। कोई भी केंद्र खुले, आम आदमी को कोई लाभ नहीं मिलता है। कारण यह है कि डॉक्टरों की निजी कंपनियों के साथ मिलीभगत होती है। इस कारण मुफ्त मिलने वाली दवाइयां लिखते ही नहीं हैं। ऐसे में लोगों को पैसे खर्च कर दवाइयां खरीदने को मजबूर होना पड़ता है।

डॉक्टर ले जा रहे दवाइयों के डिब्बे

आइजीएमसी अस्पताल में मुफ्त दवा सेंटर लोगों के लिए महज दिखावा साबित हो रहा है। लोग बड़ी आस से पर्ची लेकर मुफ्त औषधालय पहुंचते हैं लेकिन वहां पर जवाब मिलता है यह दवाई नहीं है। लोगों को दवा की एक भी गोली जेनरिक औषधालय में नहीं मिल रही है। वहीं, आइजीएमसी के डॉक्टर दवाइयों के डिब्बे के डिब्बे यहां से ले जा रहे हैं। ऐसे में जेनरिक औषधालय की दवा वितरण प्रणाली पर भी सवालिया निशान लग गया है।

अब तो उधार भी नहीं मिल रहा

मंडी के तलेली गांव की निवासी सीता कहती हैं कि एक लाख 65 हजार रुपये लोगों से उधार ले चुके हैं। लोगों ने भी अब उधार देना बंद कर दिया है। हजारों रुपये रोजना दवाइयों पर खर्च हो रहे हैं। सारा खर्च उधार के पैसे से चल रहा है। अब पैसे कैसे लौटाएंगे, इससे ज्यादा चिंता बच्चे के स्वस्थ होने की है।

दवा का नाम लिखते हैं, साल्ट नहीं

जेनरिक औषधालय के अधिकारी का कहना है कि डॉक्टर दवा का साल्ट न लिखकर दवा का नाम पर्ची पर लिख रहे हैं। वे दवाइयां बाजार में ही उपलब्ध हो पाती हैं। यदि साल्ट लिखें तो दवा उपलब्ध हो सकती है।


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