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यूं ही बांट दी करोड़ों की दवा

राज्य ब्यूरो, शिमला : हिमाचल में लोगों की सेहत रामभरोसे है। स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की 'चुस्त' कार

By Edited By: Published: Sat, 09 Apr 2016 01:02 AM (IST)Updated: Sat, 09 Apr 2016 01:02 AM (IST)

राज्य ब्यूरो, शिमला : हिमाचल में लोगों की सेहत रामभरोसे है। स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की 'चुस्त' कार्यशैली के कारण मरीजों को बिना टेस्ट किए दवाइयां बांट दी गई। नियंत्रक एवं महालेखाकार (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत गत पांच वर्षो में ऐसे कड़वे सच को खंगाला है।

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कैग ने पाया है कि 2.21 करोड़ रुपये की जीवनरक्षक दवा मुख्य चिकित्सा अधिकारियों ने गुणवत्ता की जांच के बिना लोगों में बांट दी। जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों ने ऐसी गलती को स्वीकार भी किया है कि भविष्य में इसे दोहराया नहीं जाएगा। भारत सरकार के दवाइयों की गुणवत्ता को लेकर स्पष्ट आदेश हैं कि बिना टेस्ट और गुणवत्ता की जांच के बिना लोगों को ऐसी दवाइयां नहीं बांटी जा सकती हैं। राज्य सरकार को इस संबंध में टेस्ट करने के बाद ही मरीजों को दवाइयां देनी होंगी। ऐसे नियमों को तिलांजलि चढ़ाते हुए मरीजों को जीवनरक्षक दवाएं बांटी गई। वहीं चौंकाने वाला पहलू यह भी कैग में सामने लाया है कि बीते साल में एनआरएचएम ने डेढ़ करोड़ की दवाइयां और मेडिकल सामग्री खरीदी जिनमें न तो उत्पादन की तिथि और न ही प्राप्ति की तारीख का अभिलेख किया गया था। राज्य सरकार ने जून 2015 तक इनकी जीवन अवधि के मानकों को भी तैयार नहीं किया था। लिहाजा सरकार यह सुनिश्चित नहीं कर पाई कि ये उपकरण व दवाइयां देरी से बंटी हैं या देरी से मिली हैं। इसके अभाव में दवाइयों की न्यूनतम शेल्फ लाइफ को वितरण स्थान अर्थात सीएमओ स्तर पर सुनिश्चित नहीं किया जा सका। हालांकि सीएमओ ने भी अपने सिर पर आई ऐसी बला का ठीकरा राज्य सरकार पर फोड़ते हुए कैग को अवगत करवाया है कि राज्य सरकार को इस संबंध में बता दिया गया था।

सीएमओ चंबा का कारनामा

कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी चंबा ने वर्ष 2010 से 2015 के दौरान हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय नागरिक आपूर्ति निगम समिति के माध्यम से विभिन्न फर्मो से सवा करोड़ की औषधियां, सवा करोड़ की दवाइयां और मेडिकल सामग्री बिना जांच पड़ताल के ही खरीद डालीं। यह स्टॉक खराब है या कब इसकी अवधि पूरी होने जा रही है, स्टॉक रजिस्ट्ररों में कोई जानकारी नहीं भरी गई। कैग ने भवें तरेरी हैं कि ऐसी गलती से दवाइयों और सामग्री के चोरी होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। यही नहीं 6,684 मशीनरी और उपकरण अस्पताल में मांग न होने के कारण स्टोर में बेकार पड़े हैं। लाखोंरुरपये की ऐसी मशीनों में एक्सरे मशीन तक बेकार पड़ी हैं।

69.25 करोड़ की बजाय 76.43 करोड़ रुपये खर्च

कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि स्वास्थ्य मिशन ने बीते पांच वर्षो में दवाइयों और मशीनों पर 69.25 करोड़ की बजाय 76.43 करोड़ रुपये खर्च कर दिए और बीते साल की बचत से ऐसा खर्च किया गया। यही नहीं वर्ष 2010 तथा 2012 में हिमाचल प्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम को साढे़ तीन करोड़ अग्रिम के रूप में दे दिए। 55 महीने बीत जाने के बाद जून 2015 तक इसका समायोजन नहीं किया गया था।


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