कैसे आएगी खुशहाली जब खेत ही खाली
ताराचंद शर्मा, शिमला हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षो से चली आ रही पारंपरिक खेती अब अ
ताराचंद शर्मा, शिमला
हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षो से चली आ रही पारंपरिक खेती अब अंतिम सांसें गिन रही है। प्रदेश में कृषि योग्य भूमि लगातार बंजर होती जा रही है, इसकी वजह किसानों का मेहनत करना छोड़ना नहीं है, बल्कि बंदर व अन्य जंगली जानवर हैं, जो फसल बर्बाद कर किसानों को कृषि से विमुख कर रहे हैं। इनके आतंक से परेशान होकर प्रदेश भर के हजारों किसान परिवारों ने खेती करना छोड़ दिया है।
किसान ने अब खेती में मेहनत करने से ज्यादा मजदूरी करना बेहतर समझ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बंदरों व अन्य जंगली जानवरों का आतंक इतना बढ़ गया है कि खेतों में कुछ घंटों में ही बंदर किसानों की चार से छह महीने की मेहनत बर्बाद कर देते हैं। हालत ये है कि खेतों में बोया बीज भी उन्हें वसूल नहीं हो पा रहा। इससे मायूस होकर किसान पारंपरिक खेती छोड़ रहे हैं। कभी फसलों से लहलहाते खेत अब बंजर भूमि में तब्दील हो रहे हैं। कृषि विभाग के मुताबिक प्रदेश में करीब 70 फीसद भूमि पर पारंपरिक खेती खत्म होने की कगार पर है। किसानों का कहना है कि जब भी दिन के समय बंदरों को खेतों से भगाने का प्रयास करते हैं, तो कई खूंखार बंदर हमला तक कर देते हैं जिस कारण खेत खलिहानों में जाने में भी डर लगने लगा है।
यहां ढूंढे नहीं मिलते बंदर
प्रदेश सरकार ने बंदरों के आतंक को देखते हुए 'मंकी फीडिंग पार्क' बनाए थे, लेकिन वहां बंदर ढूंढे नहीं मिलते थे जिस कारण सरकार ने इस प्रोजेक्ट को निरस्त कर दिया। बंदर अब शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पात मचाने लगे हैं। यही नहीं शहरी क्षेत्र के आसपास खाने के सामान पर घात लगाए बैठे बंदर मानव जीवन के लिए भी खतरा बन रहे हैं।
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प्रदेश में सवा दो लाख बंदर
जून 2013 में हुई गणना के अनुसार प्रदेश में कुल 2,26,086 बंदर पाए गए हैं। जबकि वर्ष 2004 की गणना के अनुसार प्रदेश में 3,17,112 बंदर थे। लाहुल स्पीति, किन्नौर, बिलासपुर व कुल्लू जिलों में बंदर नसबंदी केंद्र नहीं खोले गए हैं। लाहुल-स्पीति जिला में बंदर नहीं पाए जाते। जिला किन्नौर में बहुत कम संख्या में बंदर पाए जाते हैं।
आंकड़े सरकारी हैं : डॉ. तंवर
हिमाचल किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर का कहना है कि हिमाचल में बंदर व लंगूर की संख्या 5 लाख के करीब है। प्रदेश के 11 जिलों में बंदरों ने आतंक मचा रखा है। उनका कहना है कि प्रदेश में बंदरों के आतंक की वजह से 7 लाख से अधिक किसान परिवार प्रभावित हैं। हालत ये है कि खेती छोड़ने की वजह से किसानों को घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया है। सरकार ने वर्ष 1983 में शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। जिसके बाद प्रदेश में लगातार जंगली जानवरों की समस्या बढ़ रही है। पहले तो खेतों में बंदर फसलों को नष्ट करते थे, लेकिन अब घरों के अंदर भी बंदरों के हमले बढ़ गए हैं। प्रदेश में चाहे कोई भी सरकार रही हो, लेकिन किसानों को बंदरों के आतंक से निजात नहीं दिला पाई है।
अब अदरक का स्वाद भी जान गए हैं बंदर
बंदरों के पारंपरिक खेती उजाड़ने के बाद किसानों ने विकल्प के तौर पर अदरक, लहुसन व अरबी की खेती शुरू की थी, लेकिन अब बंदर अदरक का स्वाद भी जानने लगे हैं। बंदर पहले अदरक, लहुसन व अरबी नहीं खाते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों से बंदरों ने इस खेती को भी उजाड़ना शुरू कर दिया है। इससे किसानों को अब कोई और उपाय भी नहीं सूझ रहा है।
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प्रदेश के कई केंद्रों में बंदरों की नसबंदी की जा रही है। इसके अलावा प्रदेश में और भी केंद्र खोले जाएंगे। वन विभाग का वन्य प्राणी विंग और कई प्रोजेक्ट तैयार कर रहा है। ताकि लोगों को बंदरों की समस्या से निजात दिलाई जा सके।
-डॉ. ललित मोहन, प्रधान मुख्य अरण्यपाल (वन्य प्राणी)।