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निगम पहले बंदरों से हारा, अब हर तरफ कुत्तों का नजारा

संवाद सहयोगी, शिमला : नगर निगम शिमला पहले जहां बंदरों पर नियंत्रण करने से हारा। वहीं अब प्रशासन क

By Edited By: Published: Sun, 26 Oct 2014 01:14 AM (IST)Updated: Sun, 26 Oct 2014 01:14 AM (IST)

संवाद सहयोगी, शिमला : नगर निगम शिमला पहले जहां बंदरों पर नियंत्रण करने से हारा। वहीं अब प्रशासन की लापरवाही से हर तरफ कुत्तो का ही नजारा दिख रहा है। आलम यह कि हर गली, मोहल्ले में लावारिस कुत्ते झुंड में डेरा जमा रहे हैं। रिज व मालरोड तक जिनसे अछूता नहीं रहा है। नसबंदी कर इनकी तादाद कम करने की योजना कुछ रंग नहीं लाई है। ऐसे में जब दो वर्ष 2008 -09 में तो निगम एक भी कुत्ते की नसबंदी नहीं कर पाया। इन्हीं दो साल के अंतराल का नतीजा है कि अब लगातार नसबंदी करने के बाद भी लावारिस कुत्तों की संख्या शहर में कम नहीं हो पाई है। जिसके लिए पूरी तरह नगर निगम की लापरवाही जिम्मेदार है।

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शहर में लावारिस कुत्तों की बढ़ती संख्या जी का जंजाल बन गई है। हर गली और चौराहे पर लावारिस कुत्ते लोगों के लिए परेशानी का कारण बने हुए हैं। वर्तमान में करीब 6000 कुत्ते हैं और लगातार इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। इनकी तादात इतनी ज्यादा है कि कई बार रास्तों से गुजरना मुश्किल हो जाता है। हर कोई लावारिस कुत्तों की समस्या से परेशान है। रिज मैदान को राजधानी शिमला की शान माना जाता है, परंतु इस स्थान पर जगह-जगह लावारिस कुत्ते झुंड में सोए रहते हैं। इसके अलावा स्कैंडल प्वांइट और माल रोड पर लावारिस कुत्तों का जमावड़ा लगा रहता है। शिमला में लावारिस कुत्तों की संख्या देखकर विदेशी पर्यटक भी हैरान रह जाते हैं। इनकी बढ़ती संख्या राजधानी की सुंदरता को कम कर रही है। निगम कार्यालय के ठीक सामने आए दिन लावारिस कुत्ते हर आराम फरमाते नजर आते हैं। प्रशासन भी सब कुछ जानते बूझते भी आंखें मूंदे हुए हैं। कुत्तों की बढ़ती संख्या पर काबू पाने के लिए प्रशासन के पास कोई ठोस उपाय नहीं है। दो साल से इनकी संख्या में लगातार ज्यादा इजाफा हुआ है। निगम प्रशासन की ओर से पांजड़ी क्षेत्र में करीब दो साल पहले लावारिस कुत्तों के लिए आश्रय गृह खोला गया था, परंतु एनिमल वेलफेयर से संबंधित कुछ संस्थाओं के विरोध के कारण इसे बंद कर दिया गया। इनमें करीब 500 लावारिस कुत्तों को रखने का प्रावधान किया गया था। तब से लेकर कुत्तों की समस्या का कोई स्थायी हल नहीं निकल पाया है। कुत्तों के बढ़ते आंतक के कारण मां-बाप भी बच्चों को अकेले बाहर भेजने से डरते हैं।

हर माह 100 का था लक्ष्य :

नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक 2006 से 17 अक्टूबर 2014 तक 6990 कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है। प्रशासन का दावा है कि शिमला शहर में 90 फीसद लावारिस कुत्ते ऐसे हैं जिनकी नसबंदी की गई है। इनमें ज्यादातर बड़े कुत्ते हैं। ये कुत्ते अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों से शहर की ओर बढ़ रहें हैं। एक कुत्ते की नसबंदी में 50 से 60 रुपये तक का खर्च आता है। प्रत्येक माह सौ कुत्तों की नसबंदी का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

'लावारिस कुत्तों के लिए हर राज्य में आश्रय गृह खोले जाएंगे। इन आश्रय गृह में कुतों के लिए कैनल,भोजन और डॉक्टर की व्यवस्था की जाएगी। जल्द ही आश्रय गृह निर्माण के लिए स्थान चिह्नित किए जाएंगे।'

-वीरभद्र सिंह, मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश।

'निगम की ओर से हर रोज शहर के लावारिस कुत्तों की नसबंदी की जाती है। एक माह में करीब सौ कुत्तों की नसबंदी का लक्ष्य रखा है। ग्रामीण क्षेत्रों से ये कुत्ते शहर की ओर आते है। जल्द से जल्द शहर की जनता को इस समस्या ये निजात दिलाई जाएगी।'

-डॉ. अरुण सरकेक, वीपीएचओ, नगर निगम।


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