मेडल जीत कर क्या गुनाह कर लिया
अजय बन्याल, शिमला
जब किसी खेल में खिलाड़ी मैदान में खूब पसीना बहाने के बाद लिए जीत का इतिहास बनाता है तो मैदान के चोरों ओर गूंजने वाली तालियों की आवाज खिलाड़ियों की जीत की नींव का और मजबूत करती है। मगर जब मैदान की दहलीज से बाहर कदम रखते हैं खेल के दम पर अपना भविष्य खंगालने की कोशिश करते हैं तो सपने सरकारी व्यवस्था के नीचे दब रह जाते हैं। गले में लटके मेडल उन्हें यही याद दिलाते हैं कि क्या सच में मेडल जीत कर गुनाह कर लिया।
सीमित साधनों में भी अपने खेल के दम पर राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश के खिलाड़ियों ने नाम ऊंचा किया है, परंतु उन्हें मेडल मिलने के बाद भी सम्मान नहीं मिल रहा है। सरकारी क्षेत्र में नौकरी के लिए भीख मांगनी पड़ रही है। प्रदेश में 900 के करीब खिलाड़ी पदक हासिल किए हुए है, मगर इन्हें सरकारी नौकरी की दरकार है।
खेल नीति में यह है प्रावधान
देश व प्रदेश में गौरव दिलाने वाले खिलाड़ियों को केंद्र सरकार व विभिन्न राज्य सरकारें सरकारी नौकरियों में खेल आरक्षण देती हैं। हिमाचल में 2000 में तत्कालिक भाजपा सरकार ने सरकारी नौकरियों में तीन प्रतिशत खेल आरक्षण निर्धारित किया है। सरकारी विभागों के साथ-साथ बोर्ड व निगम भी इस खेल आरक्षण के दायरे में रखे हैं। खेल आरक्षण के नियमों में सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता में पदक पाने वाले को सबसे पहले नौकरी दी जाती है। ओलंपिक खेलों में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले खिलाड़ियों को खेल आरक्षण दिया जाता है। स्वर्ण पदक विजेता को पहले आरक्षण मिलता है। इसके बाद केबल भाग लेने वाले खिलाड़ी को आरक्षण मिलता है। इसके बाद राष्ट्रमंडल, एशियाई, राष्ट्रीय खेलों, राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताएं, अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय के पदक विजेता, कनिष्ठ खेल प्रतियोगिता के पदक विजेता, स्कूली खेल प्रतियोगिताओं के पदक विजेता और पायका खेलनों के पदक विजेता भी क्रमश: खेल आरक्षण के हकदार होते हैं। अगर उपरोक्त सभी प्रतियोगिताओं का पदक विजेता नहीं मिलता है तो राष्ट्रीय स्तर पर तीन बार राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली टीम का वरिष्ठतम खिलाड़ी आरक्षण के लिए मान्य होता है।
खिलाड़ियों को खून पसीना बहाने के बाद भी सरकारी नौकरी नहीं मिल रही है। पुलिस विभाग में अधिकांश खेल आरक्षण दिया जाता है। इसके अलावा अन्य विभागों में नहीं मिल रहा है। क्या फायदा है कि खेलों का अगर इसी तरह खिलाड़ियों के हाथ निराशा लगती रही तो खेलों के स्तर में कोई भी सुधार नहीं होना वाला है। सरकार खेल आरक्षण का असल में पालन करें।
-सूरज ठाकुर, मुक्केबाज।
प्रदेश में खिलाड़ियों के लिए सीमित साधन हैं। फिर भी खिलाड़ी प्रदेश का नाम राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय स्तर पर पदक हासिल कर प्रदेश का नाम ऊंचा करते हैं। लेकिन खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी के लिए भटकना पड़ रहा है। हम सरकार से यहीं पूछना चाहते हैं कि क्या मेडल लाकर हमने कोई गलती कर दी है।
-बिंदु वर्मा, रेसलिंग खिलाड़ी।
प्रदेश में खेल प्रतिभा छिपी हुई है। मगर सरकार की लापरवाही के कारण खिलाड़ियों को हक नहीं मिल पा रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर पदक हासिल करने के बाद भी नौकरी की दरकार है। अगर इस तरह के खिलाड़ियों के साथ बर्ताव जारी रहा तो खेल के लिए सकारात्मक संकेत नहीं होगा।
-नितेश सैनी, किक्रेट खिलाड़ी।
प्रदेश में खेल नीति तो बनाई गई है, लेकिन इस नीति को फाइलों में बंद करके ही रखा गया है। इस नीति का पालन ही नहीं हो रहा है। अगर पालन ही नहीं करना था तो इसे बनाया क्यों गया? प्रदेश में भले की कांग्रेस की सरकार या भाजपा की, परंतु खिलाड़ियों के हित में कोई ठोस फैसले नहीं लिए गए है।
-लेखराज, खिलाड़ी।
प्रदेश की खेल नीति में बदलाव करने की आवश्यकता है। पड़ोसी राज्यों में खिलाड़ियों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन प्रदेश में बहुत ही कम खिलाड़ियों को सरकारी क्षेत्र में नौकरियां मिल पाई है।
-निरमल सिंह, खिलाड़ी।
हम प्रदेश सरकार से मांग करते हैं कि खिलाड़ियों को नौकरियों के अवसर पर प्रदान किए जाएं। हर विभाग में खेल आरक्षण लागू किया जाए।
-वीरेंद्र ठाकुर, खिलाड़ी।
प्रदेश में खेल को बढ़ावा तभी मिलेगा। जब खिलाड़ियों को असल में सम्मान मिलेगा। ऐसे में सरकार इस मामले पर गंभीरता पर लें।
-विवेक ठाकुर, खिलाड़ी।
खेल में बजट का आभाव है। प्रदेश खेल बजट बढ़ाया जाए। खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी दी जाए। प्रदेश भर में 900 के आसपास खिलाड़ी पदक धारक हैं, मगर सभी सरकार के उदासीन रवैय से नाराज हैं।
-मुनीष ठाकुर, खिलाड़ी।
अगर खिलाड़ियों को उनका हक ही नहीं देना चाहते है। तो खेलों को बढ़ावा देने की इच्छा भी सरकार छोड़ दे। एक नौकरी के लिए खिलाड़ियों को कई विभागों के चक्कर लगाने पड़ते है।
-जितेंद्र ठाकुर, खिलाड़ी।