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मेले का स्वरूप बदला, देवता व देवलुओं की हालत नहीं

जागरण संवाददाता, मंडी : प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी छोटी काशी मंडी अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्

By Edited By: Published: Wed, 22 Feb 2017 01:01 AM (IST)Updated: Wed, 22 Feb 2017 01:01 AM (IST)
मेले का स्वरूप बदला, देवता व देवलुओं की हालत नहीं
मेले का स्वरूप बदला, देवता व देवलुओं की हालत नहीं

जागरण संवाददाता, मंडी : प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी छोटी काशी मंडी अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव के लिए एक बार सजने लगी है। मेले की शोभा बढ़ाने के लिए जनपद के कोने-कोने से देवलु देवरथों के साथ मंडी की ओर निकल चुके हैं। शहर की गली-कूचों, सड़कों व चौराहों को सजाया संवारा जा रहा है। आयोजकों का दावा है कि इस शिवरात्रि मेले में कई भव्य आयोजन होंगे। मेले से पहले तहबाजारी के लिए पड्डल मैदान बेचकर करोड़ों रुपये कमा चुके आयोजकों के पास देव समागम को लेकर कोई विशेष उत्साह नहीं है। मेला आयोजन समिति के का¨रदे जलेब में पहनी जाने वाली पगड़ियों को लेकर ¨चतित हैं तथाकथित स्वयंभू सर्व देवता समिति भी आयोजकों की हां में हां मिलाने में व्यस्त है। देवताओं के प्रति प्रशासन का नाकारात्मक रुख अब भी बरकरार है। आयोजकों ने फरमान जारी कर दिया कि मेले में आने वाले पंजीकृत देवता के देवलुओं को कैशलेस सिस्टम से राशन मिलेगा। देवलु जब मेले में पहुंचेंगे तो उन्हें इस व्यवस्था से रूबरू होना पडे़गा।

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ढाई सौ साल बाद भी तिरस्कार

करीब ढाई सौ साल पहले मंडी रियासत के राजा ने राधा-कृष्ण की चांदी की प्रतिमाएं बनाकर माधोराय देवता बनाया। रियासत के सभी देवताओं को राज परिवार की खुशी में शामिल होने के लिए बुलावा भेजा। राजा के आदेश से देवता आए और आजतक उस आदेश की पालना कर रहे हैं। राज बदला तो नए शासकों ने बागडोर संभाली और देवताओं का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करने लगे और देवताओं की जलेब को ही हाईजैक करने लगे। देवता कहां रहेंगे, देवलु क्या खाएंगे और कहां सोएंगे यह शासकों की चाकरी में जुटे नौकरशाहों को याद भी नहीं रहता। उन्हें सराय, स्कूलों और दमदमा पैलेस की कोठरियों में रातें गुजारनी पड़ती हैं, खाने के लिए भी नौकरशाहों का मुंह ताकना पड़ता है। महीने तक ढोल-नगाडे़ लटकाए बजंतरियों को उचित नजराना नहीं मिलता। तरसा-तरसा कर सरकार द्वारा एक-दो फीसद नजराना बढ़ाया जाता है। कहने को तो मंडी सांस्कृतिक राजधानी है लेकिन कई दशक से मंडी में देवसदन का निर्माण भी नहीं हो पाया है। ढाई सौ साल से इतना तिरस्कार व अपमान देवता ही सहन कर सकते हैं।

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मीलों सफर कर पहुंचते हैं मंडी

हजारों देवलु अपना काम छोड़कर देवता के साथ हवा, पानी बारिश के थपेड़े सहते हुए एक से डेढ़ माह की लंबी यात्रा पर निकल पडे़ हैं जो पड्डल मैदान पर थमेगी। सराज क्षेत्र के देवता मगरू महादेव छतरी, देव शयाटी नाग डाहर, छांजणू-छंमाहू, बिट्ठू नरायण, ब्रह्मदेव तुंगासी, चुंजवाला, मार्केडय ऋषि, बायला नरायण और देवी जालपा मेला स्थल के लिए 15 से 20 दिन पहले निकल चुके हैं और रास्ते में पड़ाव किए हुए हैं। चौहारघाटी के अराध्य आदी ब्रह्मा, पराशर ऋषि भी मीलों का सफर कर मेले की शोभा बढ़ाते हैं। मगरू महादेव 150 किलोमीटर छतरी से, देव शयाटी नाग डाहर लगभग 120 किलोमीटर दूर थाटा डाहर से, सौ किलोमीटर दूर जंजैहली से बायला नारायण, ब्रह्म देव तुंगासी 100 किलोमीटर दूर लंबाथाच पंचायत से और चौहार घाटी के देवता भी नदी नालों, चोटियों को लांघते हुए मीलों की दूरी तय करते हैं।

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घट रही महिला देवलुओं की तादाद

एक दशक में महिला देवलुओं की संख्या में भारी गिरावट आई है। पहले महिलाएं भी अपने देवरथों के साथ पारंपरिक वेशभूषा में आती थी लेकिन महिला देवलुओं के लिए कोई अतिरिक्त इंतजाम न होने से उनकी तादाद न के बराबर रह गई है। मेले के आयोजकों ने भी इस ओर गौर नहीं फरमाया।

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शिवरात्रि महोत्सव में विभिन्न मदों से होने वाली आय का पचास फीसद देवी-देवताओं पर खर्च होनी चाहिए। यह मांग काफी समय से की जा रही है। देवी-देवताओं को ठहराने की उचित व्यवस्था न होने से नए देवताओं का पंजीकरण नहीं हो पा रहा है। करीब 70 आवेदन लंबित हैं।

शिवपाल शर्मा, अध्यक्ष सर्व देवता समिति मंडी।


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