रैगिंग मानव अधिकारों का हनन : अशोक
सहयोगी, गोहर : रैगिंग वास्तव में ं नवागंतुक, कनिष्ठ छात्रों से आत्मीयता बढ़ाने के संदर्भ में शुरू हु
सहयोगी, गोहर : रैगिंग वास्तव में ं नवागंतुक, कनिष्ठ छात्रों से आत्मीयता बढ़ाने के संदर्भ में शुरू हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे रै¨गग का स्वरूप बदल गया। फ्रेशर फ्रेशर के लिए यह एक आतंक और उत्पीड़न का माध्यम बन गया है। यूजीसी एक्ट 1956 में सभी शिक्षण संस्थानों में रैकिंग को प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसी संदर्भ में शुक्रवार को बासा कॉलेज में रै¨गग और कानून विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी में गोहर न्यायालय के जज अशोक कुमार वत्सल ने कानूनविद और न्यायाधीश के नजरिए से इस समस्या पर चर्चा की और कानून में इसे रोकने के लिए कड़े प्रावधानों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि रै¨गग के कारण बहुत से छात्रों को मानसिक उत्पीड़न के बाद अत्यधिक तनाव में रह कर अपनी जान तक गंवानी पड़ी है। इस कारण देश के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में इसे मानवाधिकार हनन की दी संज्ञा दी है। आरके राघवन कमेटी की सिफारिशों पर आधारित न्यायालय का फैसला अब कानून बन चुका है। इसमें रै¨गग करने वाले दोषी सीनियर छात्र के लिए कड़े दंड का प्रावधान किया गया है। वत्सल ने उपस्थित छात्रों को बताया कि रै¨गग करना और करवाना कानून जुर्म की श्रेणी में आता है इसलिए छात्रों को रै¨गग न करने के बारे जागरूक किया जाना बेहद जरूरी हो गया है। इस अवसर पर थाना प्रभारी गोहर चांद किशोर, बार एसोसिएशन गोहर के प्रधान एएस पसरीचा ने भी रैंगिंग पर कानून की धाराओं पर प्रकाश डाला।