मंडी की गलियों में आज उडे़गा गुलाल
जागरण संवाददाता, मंडी : प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी मंडी में होली का उल्लास अलग ही होता है। देश के
जागरण संवाददाता, मंडी : प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी मंडी में होली का उल्लास अलग ही होता है। देश के अन्य हिस्सों में जहा होली शुक्रवार को खेली जाएगी वहीं छोटी काशी में वीरवार को रंग उड़ेंगे। मंडी की गलियों में वीरवार को अबीर गुलाल उड़ेगा। राजदेवता माधो राय की भागीदारी इस उत्सव को रियासत के राजा और प्रजा के रिश्तों की प्रगाढ़ता को उजागर करता है। माधोराय मंडी रियासत के राजदेवता रहे है। मंडी की होली राजा और प्रजा के बीच आपसी सद्भाव और सौहार्द की प्रतीक भी है। मंडी की होली देश में मनाई जाने वाली होली से एक दिन पूर्व मनाई जाती है। इस दिन सुबह से ही होली खेलने वालों की टोलिया शहर के मुख्य बाजारों में उमड़ने लगती है। मंडी की होली की खासियत यह है कि यहा गैरों पर रग नहीं डाला जाता बिना जान पहचान के किसी पर रग नहीं डालते और महिलाएं भी बाजार में होली खेलने आती हैं। राजदेवता माधोराय की भागीदारी तो रियासतकाल से ही होली में रही है। उस जमाने में मंदिर के प्रागण में पीतल के बड़े बर्तनों में रग घोला जाता था। राजा अपने दरबारियों के साथ यहा होली खेलता था। यही नहीं राजा घोड़े पर सवार होकर प्रजा के बीच भी होली खेलने जाता था। उस समय स्थानीय स्तर पर प्राकृतिक रगों की महक से होली की रगत सराबोर होती थी। होली की यह मस्ती मंडी में माधोराय की जलेब निकलने के पश्चात समाप्त हो जाती है। वहीं पर मंडी जनपद के ग्रामीण अंचलों में होली का उल्लास और जोश देखते ही बनता है। गावों में अबीर गुलाल के अलावा प्राकृतिक रगों की होली खेली जाती रही है। चीड़ और देवदार के पराग के रूप में निकलने वाला पीला पदार्थ जिसे स्थानीय बोली में पठावा कहा जाता है, इसे इकट्ठा करके होली इसका उपयोग किया जाता है। आमतौर देवताओं को तिलक लगाने में भी पठावे का उपयोग किया जाता है। इस दिन काभल नामक वृक्ष की टहनी को फाग के रूप में जलाने की परपरा है। इसके पीछे मान्यता यह है कि जिस तरह से होली का दहन हुआ है। उसी प्रकार रोग और दरिद्रता का भी फाग की इस आग में जल कर भस्म हो जाए, जिससे घर गाव में खुशहाली और समृद्धि आएगी। इस अवसर पर गाव की महिलाएं चावल के आटे का पकवान चिलहडृू बनाती हैं, जिसे दही और भल्ले के साथ खाया जाता है। इस प्रकार हिमाचल की वादियों में होली प्रकृति और मानव के बीच के रिश्तों को सार्थकता प्रदान करते हुए प्रकृति और मानवीय उल्लास के रगों से सराबोर रहती है।