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घरों तक सिमटी कांगड़ा चाय की महक

मुकेश मेहरा, पालमपुर जिस चाय का शौक विदेशी रखते हैं उसकी पैदावार हिमाचल में लगातार कम हो रही है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 May 2017 01:00 AM (IST)Updated: Mon, 22 May 2017 01:00 AM (IST)
घरों तक सिमटी कांगड़ा चाय की महक
घरों तक सिमटी कांगड़ा चाय की महक

मुकेश मेहरा, पालमपुर

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जिस चाय का शौक विदेशी रखते हैं उसकी पैदावार हिमाचल में लगातार कम हो रही है। हालात ये हैं कि 2300 हेक्टेयर में होने वाली चाय का उत्पादन अब मात्र 1000 क्षेत्र में ही सिमटकर रह गया है। घटते चाय के कारोबार से निवेशक अब उत्तराखंड या असम का रुख कर रहे हैं।

किसी समय जिस कांगड़ा चाय की तूती विश्व में बोलती थी वह आज कुछ क्षेत्रों तक सिमटकर रह गई है। हैरत की बात यह है कि कांगड़ा में 2100 हेक्टेयर, मंडी में 200 और चंबा के भटियात में छह हेक्टेयर में चाय के बागान हैं। कांगड़ा में भी पालमपुर ही इसका मुख्य केंद्र है पर यहां से सालाना केवल 1000 हेक्टेयर से ही चाय पत्ती आ रही है। अगर पिछले कुछ सालों पर गौर करें तो चाय बोर्ड के पास पहुंचे आंकड़ों में 2013 में आठ लाख 70 हजार किग्रा, 2014 में आठ लाख 42 हजार किग्रा. 2015 में आठ लाख 91 हजार, 2016 में आठ लाख 67 हजार किग्रा चाय उत्पादन सालाना हुआ है। हालांकि 2010 से पहले यह उत्पादन 10 लाख से ऊपर रहता था लेकिन लगातार बिक रही जमीनों और लोगों की ओर से केवल अपने स्तर तक चाय तैयार करने की प्रवृत्ति ने इस कारोबार में मंदी ला दी है। अकेले पालमपुर से ही सालाना तीन लाख किग्रा चाय का उत्पादन किया जाता है शेष क्षेत्रों में इसमें कमी हुई है। कम हो रहे चाय उत्पादन के कारण उत्तराखंड की ओर निवेशकों का रुझान बढ़ा है। हालांकि प्रदेश की चाय की अलग पहचान है तथा इसका स्वाद अन्य से अलग है। यही कारण था कि इसकी मांग अधिक है लेकिन कम होते बागीचे और व्यावसायिक तरीके से इस कार्य को न करना चाय की महक को दूर कर रहा है।

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ब्लैक टी की ज्यादा मांग

कांगड़ा चाय की सबसे अधिक मांग कोलकाता सहित बाहरी देशों में है। पहले इसका कलेक्शन सेंटर अमृतसर में होता था लेकिन इसके बंद होने से बड़ा झटका कारोबार को लगा और व्यापारियों को घाटा उठाना पड़ा। हालांकि अभी भी एक कलेक्शन सेंटर है, लेकिन उसमें अधिक कांगड़ा चाय नहीं पहुंच पाती है। इन राज्यों में ब्लैक टी की डिमांड बढ़ी है। हालांकि कांगड़ा चाय इसके लिए बेहतर है, लेकिन कम खपत मार्केट पर विपरीत असर डाल रही है।

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'कांगड़ा चाय की खेती 2300 हेक्टेयर क्षेत्र में होती थी लेकिन वर्तमान में 1000 तक ही उत्पादन हो पा रहा है। कारोबार में कमी आई है। सरकार उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रही है। लोगों की ओर से घरों में ही चाय तैयार करने की परंपरा से इस कारोबार को नुकसान हो रहा है।'

-अनुपम दास, उपनिदेशक चाय विकास बोर्ड, भारत


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