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इस मजार में वीरवार को ¨हदू चढ़ाते हैं चादर

परिवेश महाजन, जय¨सहपुर बाबा शाह मस्त अली की मजार धार्मिक एकता एवं सद्भावना का प्रतीक बनी हुई है। ¨

By Edited By: Published: Fri, 28 Nov 2014 04:08 AM (IST)Updated: Thu, 27 Nov 2014 11:02 PM (IST)
इस मजार में वीरवार को ¨हदू चढ़ाते हैं चादर

परिवेश महाजन, जय¨सहपुर

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बाबा शाह मस्त अली की मजार धार्मिक एकता एवं सद्भावना का प्रतीक बनी हुई है। ¨हदू समाज के स्थानीय लोग मजार पर पूजा अर्चना से लेकर इसका रखरखाव कर सर्वधर्म सम्मान का संदेश दे रहे हैं। हालांकि उपमंडल में एकमात्र मुस्लिम परिवार भी रह रहा है लेकिन सदियों से इस मजार की पूजा ¨हदू समुदाय के लोग ही करते आए हैं। हर वीरवार को यहां काफी भीड़ रहती है। मजार के ठीक सामने सैकड़ों वर्ष पुराना नीलकंठ महादेव का मंदिर है, जहां सावन के हर सोमवार को शिवजी को जल चढ़ाने वाले श्रद्धालु इस मजार पर जल चढ़ाना नहीं भूलते।

लोगों की आस्था है कि मजार में सच्चे दिल से जाने वाले की हर प्रार्थना पूरी होती है। वहीं, मजार के प्रांगण में प्रतिवर्ष 29 मई को भंडारे का आयोजन किया जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार जय¨सहपुर के बाबा शाह मस्त अली व भवारना के भीखाशाह में गुरु-चेले का संबंध है। मजार में आए जिन लोगों की कामना पूर्ण होती है वे वीरवार को मजार पर हरी या पीली चादर चढ़ाकर अपनी आस्था पूर्ण करते हैं।

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यह है गुरु-चेले की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार बाबा शाह मस्त अली भीख मांगते हुए गांव में अलख जगा रहे थे कि घूमते हुए उन्हें एक दुखी महिला दिखाई दी। पूछने पर पता चला कि उक्त महिला औलाद न होने से परेशान है तथा संतान के लिए दर-दर घूम कर औलाद सुख की कामना कर रही है। शाह बाबा मस्त अली ने महिला को ढांढस बंधाया तथा कहा कि वे उसे संतान दे सकते हैं, मगर 12 वर्ष के बाद पुत्र बाबा को सौंपना होगा। बाबा की बात मानकर महिला ने वरदान कबूल कर लिया। बाबा के वरदान के बाद महिला को पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम महिला ने भीखू रखा तथा अपनी बात के अनुसार महिला ने 12 वर्ष बाद भीखू को बाबा के सुपुर्द कर दिया।

भीखू बाबा के लिए रोज लकड़ियां लाता था तथा अपने गुरु की सेवा में लीन रहता था। एक दिन भीखू ने कुछ लोगों को शव ले जाते देखा तो लकड़ियां काटने का इरादा छोड़कर उनसे कुछ प्रबंध करने का विचार किया। भीखू ने सोचा कि शव की लकड़ियों से कई दिन का कार्य चल जाएगा।

इस पर भीखू ने लोगों से मृत शरीर को जीवित करने की बात कही। परिजनों ने अपने अजीज को दोबारा पाते देख भीखू को ऐसा करने के लिए कहा तथा समस्त लकड़ियां देने का भी प्रस्ताव दिया। इस पर भीखू ने मृत शरीर में जान डाल दी तथा मृतक खुशी से अपने घर चला गया।

इस बात की भनक जब बाबा शाह मस्त अली को लगी तो उनके क्रोध का ठिकाना न रहा तथा उन्होंने भीखू को दंड देने का मन बनाते हुए उसके पीछे हो लिए। भीखू भी गुरु से जान बचाने के लिए भाग रहे थे कि भवारना से चंद कदम की दूरी पर धरती मां को पुकारते हुए धरती में लीन हो गए लेकिन उनकी बालों की चोटी बाहर रह गई। उपमंडल पालमपुर के भवारना में आज भी उस स्थान को पूजा जाता है तथा भीखाशाह नाम से मंदिर पर प्रतिवर्ष मेलों का आयोजन किया जा रहा है।


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