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मिंजर संध्या में अठ्खेलियां करते रहे एश्वर्य निगम

By Edited By: Published: Thu, 31 Jul 2014 01:13 AM (IST)Updated: Thu, 31 Jul 2014 01:13 AM (IST)
मिंजर संध्या में अठ्खेलियां करते 
रहे एश्वर्य निगम

राकेश शर्मा, चंबा

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हैरानी यह नहीं कि मिंजर मंच पर साज लाजवाब नहीं था। मगर हैरानी इस बात को लेकर तीसरी सांस्कृतिक संध्या में ज्यादा रही कि प्रशासन ने ऐसे गायक को आमंत्रण दिया था जिसकी पहचान सिर्फ एक अधूरे से गाने से थी। वर्ष 2006 में सारेगामापा का खिताब जीतने के बाद से अब तक करीब आठ सालों में एश्वर्य निगम एकांत में ही रहे हैं। उन्हें सारेगामापा के अलावा किसी खास उपलब्धि के लिए नहीं जाना जाता। हाल ही में दबंग फिल्म में एक मशहूर गीत मुन्नी बदनाम हुई में उन्होंने आवाज दी थी। सिर्फ इस बूते प्रशासन ने भारी-भरकम खर्च पर एश्वर्य निगम को चंबा बुला लिया और उनके लिए करीब डेढ़ घंटे पहले स्टेज खाली कर दिया। करीब सवा आठ बजे तक सभी स्थानीय स्तर के कलाकार अपना कार्यक्रम खत्म कर चुके थे। इसके बाद स्टेज पर पहुंचे एश्वर्य निगम ने लोगों को बातों में ही उलझाए रखा और जो गीत उन्होंने सुनाए उन्हें भी पूरा नहीं किया।

माहौल उस समय और भी खराब हो गया जब उन्होंने उपायुक्त व मिंजर मेले की तीसरी सांस्कृतिक संध्या के मुख्य अतिथि सत्र न्यायाधीश को मंच पर बुला लिया और उनके साथ जुगलबंदी शुरू कर दी। निगम खुद को पुरोधा मानते हुए गुरु की भूमिका अदा कर रहे थे और चाह रहे थे कि जिन अतिथियों को उन्होंने मंच पर बुलाया है वे भी उनकी तर्ज पर नृत्य कर लोगों का मनोरंजन करें। शायद निगम इस बात को भूल चुके थे कि उन्हें पैसे देकर मिंजर मेले की सांस्कृतिक संध्या में प्रदर्शन के लिए बुलाया गया था और उपायुक्त व न्यायधीश का नाता उनके क्षेत्र से बिल्कुल नहीं था। इसके बावजूद निगम करीब 15 मिनट तक दोनों अतिथियों के साथ स्टेज पर अठ्खेलियां करते रहे और हास्य मजाक के बीच उन्होंने उपायुक्त से ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों से भी तालियां बजवा दी।

मुख्य अतिथि व उपायुक्त की यह जुगलबंदी घरों में लाइव प्रोग्राम देख रहे कई लोगों को पसंद नहीं आई और उन्होंने कार्यक्रम को बंद करवाने के लिए मीडिया के लोगों से संपर्क साधना शुरू कर दिया। इस बीच कई लोगों ने तो उपायुक्त व मेले के संयोजक अतिरिक्त दंडाधिकारी से भी इस कार्यक्रम की फोन के माध्यम से शिकायत की है। बहरहाल, मिंजर मेले की तीसरी सांस्कृतिक संध्या को जिस चीज के लिए याद रखा जाना चाहिए था वो सुर तो संध्या में नजर आए ही नहीं।


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