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स्पाइनल कॉर्ड इंजरी-बीएमएसी ने दी उम्मीद की दस्तक

रीढ़ की हड्डी में लगी चोट ठीक होने में समय लेती है लेकिन इसके साथ अगर नसें भी क्षतिग्रस्त हो जाएं, तब रोगी कब ठीक होगा, इसका पता नहीं होता। इसलिये रीढ़ की हड्डी में लगी चोट (स्पाइनल कॉर्ड इंजरी) बेहद गंभीर चोटों में शुमार की जाती है। परिणामों की बानगी मेडिकल साइंस मे

By Edited By: Published: Tue, 13 May 2014 11:46 AM (IST)Updated: Tue, 13 May 2014 11:46 AM (IST)
स्पाइनल कॉर्ड इंजरी-बीएमएसी ने दी उम्मीद की दस्तक

रीढ़ की हड्डी में लगी चोट ठीक होने में समय लेती है लेकिन इसके साथ अगर नसें भी क्षतिग्रस्त हो जाएं, तब रोगी कब ठीक होगा, इसका पता नहीं होता। इसलिये रीढ़ की हड्डी में लगी चोट (स्पाइनल कॉर्ड इंजरी) बेहद गंभीर चोटों में शुमार की जाती है।

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परिणामों की बानगी

मेडिकल साइंस में हुई उन्नति और दुनिया भर के शोधकर्ताओं की कड़ी मेहनत से अब स्पाइनल कॉर्ड इंजरी से पीड़ित रोगियों में अच्छे परिणाम आने शुरू हो चुके हैं। पेश हैं इस संदर्भ में कुछ बानगियां..

अवनीश एक ग्रामीण युवक है। दुर्भाग्यवश लगभग डेढ़ साल पहले दुर्घटना होने से उसकी कमर की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया और साथ ही दोनों पैरों में लकवा भी मार गया था। गरीब रोगी ने किसी प्रकार दिल्ली जाकर ऑपरेशन भी करवाया, लेकिन ऑपरेशन के 6 महीने बाद भी नतीजा कुछ नहीं निकला। इसी मध्य चिंतित घर वालों ने मुझसे संपर्क किया। जांच करने पर मुझे पता चला कि कि नाभि के नीचे पीड़ित व्यक्ति का पूरा शरीर संवेदनारहित है और उसमें किसी भी प्रकार की हरकत संभव नहीं है। यही नहीं, पेशाब और मल विसर्जन पर भी उसका नियंत्रण नहीं रह गया था।

बीएमएसी की भूमिका

अवनीश सरीखे रोगियों में ऑटोलोगस बोनमेरो कॅन्सेन्ट्रेट (बीएमएसी) थेरेपी और फिजियोथेरेपी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसलिये अवनीश को इसी 'कॉम्बिनेशन प्रोटोकॉल' पर रखा गया। इलाज शुरू होने के लगभग एक साल बाद पीड़ित युवक बायां पैर सीधे उठा सकता है और वाकर की मदद से चल सकता है। यही नहीं, उसके दोनों पैरों में संवेदना(सेंसेशन) भी आ गयी है (बाएं में ज्यादा दाएं में कम)। और तो और पीड़ित व्यक्ति का मल-मूत्र विसर्जन प्रणाली पर भी काफी कुछ नियंत्रण स्थापित हो चुका है। बहरहाल, साइंस विकास (डेवलपमेंट) का पर्याय है। अनवरत खोज इसका सिलसिला है। इसी कड़ी में जब नैनो मेटीरियल को बोनमेरो कॅन्सेन्ट्रेट के साथ दिया गया, तब नतीजे और भी बेहतर हुए। उदाहरण है हाल में आये स्पाइनल कॉर्ड इंजरी से पीड़ित सुमन पांडे का, जो एक ही सेशन के बाद जांघों में हल्कापन और कमर में संवेदना महसूस करने लगे। बताते हैं कि दो माह पूर्व सुमन की कमर सुन्न थी।

ये बानगियां है भविष्य के उस विज्ञान की, जो मानवता के लिये वरदान की झलक दे रही है। इस संदर्भ में पुलकित प्रशांत शुक्ला बताते हैं कि बोनमैरो कॅन्सेन्ट्रेट थेरेपी की वजह से वह अब मोटर साइकिल चला लेते हैं, जबकि दो वर्ष पहले स्पाइनल कॉर्ड इंजरी के बाद वह बिस्तर तक ही सीमित रह गये थे।

कब है कारगर बीएमएसी थेरेपी

-स्पाइनल कॉर्ड के निचले हिस्से की चोटों में।

-जब बीएमएसी को नैनो मैटेरियल के साथ ट्रांसप्लांट करें।

-फिजियोथैरेपी को भी पूरी लगन और मेहनत से किया जाए।

चूंकि यह सिद्ध हो चुका है कि कुछ विशेष प्रकार के पेपटाइड्स के मिश्रण (एक प्रकार की प्रोटीन) को देने से ब्लड ब्रेन बैरियर (मस्तिष्क में एक प्रकार की झिल्ली)की रुकावट कम हो जाती है। साथ ही, रक्त में प्रवाहित बोनमैरो से प्राप्त ऑटोलोगस सेल्स बेहतर तरीके से मस्तिष्क में हुए डैमेज (क्षति) की रिपेयरिंग करती हैं।

मस्तिष्क व नसों के रोगों में उपयोग

विश्व के अनेक देशों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार ऑटोलोगस बोनमैरो से प्राप्त स्टेम सेल्स की सबसे ज्यादा सफलता न्यूरोलॉजिकल डिजीजेज (मस्तिष्क, नसों या नर्व से संबंधित रोगों में) में मिल रही है। इसका मुख्य कारण ग्रोथ फैक्टर और स्टेम सेल्स द्वारा किया गया नर्व टिश्यू रीजनरेशन (नसों को पुनर्जीवित करना) है।

थेरेपी के अन्य रोगों में प्रयोग

-सेरीब्रल पेल्सी (मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी से आया विकार)।

-आटिज्म (बच्चों में बोलने व समझने की शक्ति का कम होना)।

-डेवलपमेंटल डिले (बच्चों में शारीरिक व मानसिक विकास की प्रक्रिया का धीमा होना।

-मल्टीपल स्क्लीरोसिस (नसों की विकारग्रस्तता)।

-अल्जाइमर डिजीज (वृद्धावस्था में याददाश्त खोने की बीमारी)।

-मोटर न्यूरॉन डिजीज (नसों के विकार)।

(डॉ. बी.एस. राजपूत, आर्थोपेडिक व स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट सर्जन)

पढ़ें:अब स्पाइनल फ्रैक्चर्स का इलाज हुआ बेहतर


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