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..ऐसे रहें स्वस्थ

मानसून के मौसम में गर्मी कम हो जाती है, लेकिन वातावरण में नमी की मात्रा अधिक होती है। इसका प्रभाव हमारी पाचक अग्नि पर पड़ता है। अग्नि मंद होने के कारण भोजन पूर्ण रूप से पच नहीं पाता। इस प्रकार अधपचे भोजन से आंतों में विषाक्त पदार्थ- 'आम'- का निर्माण होता है। इस वजह से पेटदर्द,

By Edited By: Published: Tue, 05 Aug 2014 12:35 PM (IST)Updated: Tue, 05 Aug 2014 12:35 PM (IST)
..ऐसे रहें स्वस्थ

मानसून के मौसम में गर्मी कम हो जाती है, लेकिन वातावरण में नमी की मात्रा अधिक होती है। इसका प्रभाव हमारी पाचक अग्नि पर पड़ता है। अग्नि मंद होने के कारण भोजन पूर्ण रूप से पच नहीं पाता। इस प्रकार अधपचे भोजन से आंतों में विषाक्त पदार्थ- 'आम'- का निर्माण होता है। इस वजह से पेटदर्द, दस्त, मरोड़, उल्टी, बुखार, कमजोरी, सुस्ती बने रहना और भूख कम लगना आदि लक्षण आमतौर पर प्रकट होते हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इस अवस्था को आंतों में इंफेक्शन का नाम दिया जाता है।

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बचें वात के प्रकोप से

इस ऋतु में वात का प्रकोप और पित्त का संचय शरीर में कुछ ज्यादा होता है। इस कारण से यह ऋतु कई बीमारियों को भी साथ में निमंत्रित करती है। ऐसे में पाचक अग्नि का विशेष ध्यान रखना चाहिए और रोग प्रतिरोधक शक्ति यानी इम्यूनिटी को सशक्त करने का प्रयास करना चाहिए।

आयुर्वेद की विशेष चिकित्सा विधि'पंचकर्म' का महत्व इस ऋतु में और बढ़ जाता है। पंचकर्म की विभिन्न क्रियाओं का प्रयोग शरीर के शोधन के लिए अनिवार्य है।

इन सुझावों पर करें अमल

-पाचक अग्नि को स्वस्थ रखने के लिए पोदीना, सौंफ व सोंठ के चूर्ण को समभाग में मिलाकर रखें और इस मिश्रण में से 1-1 चम्मच चूर्ण दिन में भोजन के पश्चात लें।

-सुबह खाली पेट 5-6 ताजे नीम के पत्ते खाने से आंतों में स्थित जीवाणु व कृमि या कीड़े नष्ट हो जाते हैं।

-हल्का, सुपाच्य भोजन जैसे खिचड़ी, दलिया, सब्जियों का सूप, पोहा, उपमा व हरी सब्जियों का सेवन हितकर है। भारी या गरिष्ठ भोजन, मिठाई, और जंक फूड्स का सेवन न करें।

-प्रतिदिन तिल के तेल से मालिश करें। नाक में 2-2 बूंद तिल का तेल डालें और प्रतिदिन स्नान करें।

त्वचा रोग पर नियंत्रण

इस मौसम में दाद, खाज, एग्जिमा और मुंहासे आदि रोग ज्यादा होते हैं। इन रोगों में नारियल के 100 मि.ली. तेल में 10 ग्राम पूजा वाले कपूर को पीसकर और फिर मिलाकर बनाए हुए मिश्रण को लगाने से लाभ मिलता है।

(डॉ. प्रताप चौहान, वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक, दिल्ली)


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