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नैनो तकनीक से बनेगा टीबी का टीका

चिकित्सक एक ऐसा टीका विकसित करने का काम शुरू करने जा रहे हैं जो हेपेटाइटिस बी, टीबी समेत कई अन्य बीमारियों में कारगर हो।इसलिए डॉक्टर नैनो कण से टीबी का ओरल वैक्सीन विकसित करने जा रहे हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 08 Jun 2016 01:16 PM (IST)Updated: Wed, 08 Jun 2016 01:40 PM (IST)
नैनो तकनीक से बनेगा टीबी का टीका

राज्य Žब्यूरो, नई दिल्ली। एम्स के चिकित्सक पॉलिकैप्रोलैक्टोन नामक पॉलीमर के नैनो पार्टिकल (कण) से हेपेटाइटिस-बी का ओरल वैक्सीन (टीका) विकसित करने और उसके चूहों पर परीक्षण से बेहद उत्साहित हैं। इस वैक्सीन में टिटेनस, टीबी समेत रक्त संक्रमण की कई बीमारियों के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न करने की क्षमता है। इसलिए चिकित्सक एक ऐसा टीका विकसित करने का काम शुरू करने जा रहे हैं जो हेपेटाइटिस बी, टीबी समेत कई अन्य बीमारियों में कारगर हो।

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एम्स के पैथोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. एके डिंडा ने कहा,हमने अपने शोध में पाया है कि यह टिटनेस और टीबी में भी फायदेमंद हो सकता है। टीबी के लिए बीसीजी का जो टीका मौजूद है, उसकी प्रतिरोधकता कम हो रही है। इसलिए नए विकल्प तलाशना जरूरी है। इसलिए उक्त नैनो कण से ही टीबी का ओरल वैक्सीन विकसित करने पर शोध शुरू करेंगे। डिंडा ने कहा,इससे मल्टीवैलेंट टीका विकसित किया जा सकता है। हेपेटाइटिस बी, टीबी, टिटेनस, एचआइवी आदि में कारगर होगा।

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टीके को फ्रीज में रखने की नहीं पड़ेगी जरूरत:
किसी भी बीमारियों के टीके को कम तापमान में रखना होता है। यदि उसे सामान्य या अधिक तापमान में रख दिया जाए तो वह प्रभावहीन हो जाता है। एम्स का कहना है कि हेपेटाइटिस बी का जो टीका विकसित किया गया है उसे फ्रिज में रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उसे कमरे के तापमान पर रखकर परीक्षण किया गया है। इसलिए भारतीय परिदृष्य में यह इंजेक्शन के मुकाबले ज्यादा असरदार साबित होगा। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की समस्या के चलते टीके को 24 घंटे फ्रिज में रखना मुश्किल होता है।

देश में हेपेटाइपिस बी से चार करोड़ लोग पीडि़त
देश में हेपेटाइपिस बी से तकरीबन चार करोड़ लोग पीडि़त हैं। यह ऐसी बीमारी है जो ज्यादातर तब पहचान में आती है जब स्थिति गंभीर हो चुकी थी। इसके चलते लिवर कैंसर के मामले भी बढ़ रहे हैं। हेपेटाइटिस बी से बचाव के लिए टीका मौजूद हैं, जो इंजेक्शन के रूप में लगाया जाता है। बच्चों को इसके तीन टीके लगाए जाते हैं। पहला जन्म के 24 घंटे के अंदर, दूसरा एक माह बाद और तीसरा छह महीने पर लगाने का प्रावधान है। राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा होने के बावजूद भारी संख्या में बच्चे इससे महरूम रह जाते हैं। इंजेक्शन लगाना पीड़ादायक होता है। इस वजह से एम्स ने वर्ष 2013 में मुंह से दिया जाने वाला ओरल वैक्सीन विकसित करने का काम शुरु किया था।

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