सर्जरी जो बचाए विकलांगता से
मेगा प्रोस्थेटिक लिम्ब साल्वेज सर्जरी द्वारा बचाए गए अंग हमेशा कृत्रिम अंगों की तुलना में बेहतर कार्य करते हैं। इन अंगों के जरिये प्राण रक्षा के साथ ही रोगी को विकलांगता से बचाया जाता है ...
मेगा प्रोस्थेटिक लिम्ब साल्वेज सर्जरी द्वारा बचाए गए अंग हमेशा
कृत्रिम अंगों की तुलना में बेहतर कार्य करते हैं। इन अंगों के जरिये प्राण
रक्षा के साथ ही रोगी को विकलांगता से बचाया जाता है ...
गंभीर रोगों जैसे कैंसर से पीडि़त होने पर अक्सर
रोगी को बचाने के लिए शरीर के रोगग्रस्त अंग को काट कर निकाल देना ही अंतिम विकल्प माना जाता रहा है। यह स्थिति न केवल रोगी बल्कि उसके पूरे परिवार और समाज के लिए भी कष्टकारी होती है, परन्तु आधुनिक समय में चिकित्सा
के क्षेत्र में हुई प्रगति और मेगा प्रोस्थेटिक
इम्प्लांटेशन सर्जरी के प्रचलन में आने के
कारण अंग- भंग से बचा जा सकता है।
मुख्य रूप से दो जोड़ों- जैसे बांह की
हड्डी जो कंधे और कुहनी के जोड़ के
बीच स्थित होती है या कूल्हे और घुटने के
जोड़ों के बीच स्थित जांघ की हड्डी में कैंसर
हो जाने पर मेगा प्रोस्थेटिक लिम्ब साल्वेज
सर्जरी अत्यधिक उपयोगी है । इसके साथ
ही अब इस तकनीक का प्रयोग गंभीर रूप
से क्षतिग्रस्त हड्डी के पुनर्निर्माण और
किसी दुर्घटना के बाद होने वाली
चिकित्सा के लिए भी किया जा रहा है।
सर्जरी पूर्व जांच- सबसे पहले सी. टी.
स्कैन, एम.आर.आई. , बोन स्कैन, पेट
स्कैन परीक्षणों द्वारा यह देखा जाता है
कि कैंसर शरीर में कहां तक फैला है
और किन अंगों को प्रभावित कर रहा है. इसके बाद लिम्ब साल्वेज सर्जरी की योजना बनायी जाती है। यह प्रक्रिया सबसे अधिक हड्डी के ट्यूमर (मेटास्टैटिक), हड्डी के सार्कोमास कैंसर के साथ ही हाथ और पैरों को प्रभावित करने वाले नर्म टिश्यू सार्कोमास के लिए की जाती है।
नियो एडजुवेंट कीमोथेरेपी
सबसे पहले नियो एडजुवेंट कीमोथेरेपी द्वारा फैल रहे कैंसर को रोका जाता है। उसके बाद मेगा प्रोस्थेटिक रिप्लेसमेंट सर्जरी की जाती है। सर्जरी के बाद एडजुवेन्ट कीमोथेरेपी दी जाती है, जिससे यदि कोई कैंसर कोशिका बची हो, तो समाप्त हो जाए।
सर्जरी विधि
मेगा प्रोस्थेटिक लिम्ब साल्वेज सर्जरी तीन प्रक्रियाओं द्वारा की जाती है। प्रथम प्रक्रिया में स्वस्थ मांसपेशियों को बचाते हुए कैंसर ग्रस्त अस्थि को सर्जरी द्वारा निकाल देते हैं। द्वितीय प्रक्रिया में शरीर से निकाले गए भाग को भरने या अंतर (गैप) को दूर करने के लिए टाइटेनियम धातु से
निर्मित कृत्रिम अंग का प्रत्यारोपण (बॉयोएडॉप्टेबल धातु से निर्मित) करते हैं, जो कृत्रिम जोड़ों के साथ होता है।
यदि आवश्यकता हो, तो हड्डी के टुकड़े- बोन ग्राफ्ट का प्रत्यारोपण करते हैं और बोन सीमेंट का आवरण देकर उसे हड्डी के समान बनाते हैं और सही स्थान पर फिक्स कर देते हैं।
तृतीय प्रक्रिया में रोगी के शरीर के अन्य भागों से स्वस्थ नर्म टिशूज और मांसपेशियों को स्थानांतरित करने के बाद घाव को बंद किया जाता है।
स्वदेश में निर्मित मेगा प्रोस्थेटिक इम्प्लांट दो से तीन लाख में उपलब्ध हंै, जबकि इंग्लैंड, अमेरिका निर्मित मेगा प्रोस्थेटिक इम्प्लांट 6 से 8 लाख
रुपए में उपलब्ध हैं।
डॉ. स्वरूप सिंह पटेल
आर्थोपेडिक-ऑनको सर्जन