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स्पाइन के रोगियों के लिए राहत भरी खबर

इस आधुनिक तकनीक के जरिए स्पाइनल कॉर्ड से संबंधित कई प्रकार के दर्र्दों जैसे पीठ दर्द (बैक पेन) आदि का प्रभावी तौर पर इलाज किया जा सकता है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 20 Oct 2016 02:49 PM (IST)Updated: Thu, 20 Oct 2016 02:59 PM (IST)
स्पाइन के रोगियों के लिए राहत भरी खबर

वैज्ञानिकों ने अब एक नवीन तकनीक को विकसित कर स्पाइन (रीढ़ की हड्डी) की समस्या से

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जूझ रहे लोगों के जीवन में आशा की नई किरण का संचार कर दिया है। यह नई तकनीक है 'पेसमेकर फॉर द स्पाइनल कॉर्ड।

- इस आधुनिक तकनीक के जरिए स्पाइनल कॉर्ड से संबंधित कई प्रकार के दर्र्दों जैसे पीठ दर्द (बैक पेन) आदि का प्रभावी तौर पर इलाज किया जा सकता है। इस तरह स्पाइन दर्द से परेशान रोगियों के लिए यह तकनीक या उपकरण रामबाण साबित हो रहा है। जैसे सामान्य हार्ट पेसमेकर हमारे हृदय की मांसपेशियों के संकुचन को नियंत्रित करता है और हृदय को सामान्य गति प्रदान करता है। ठीक उसी प्रकार स्पाइनल कॉर्ड पेसमेकर स्पाइन के दर्द को नियंत्रित करता है। इस इलेक्ट्रॉनिक उपकरण यानी पेसमेकर को रोगी के त्वचा के नीचे लगाया जाता है। पेसमेकर लगाने के बाद, स्पाइनल कॉर्ड स्पेस में इलेक्ट्रोड (जिसे 'एपिड्यूरल स्पेस- कहते हैं) रखा जाता है। इस कारण इस स्पेस में कुछ मिलीएंपीयर (कम मात्रा में बिजली का करंट) के करंट के साथ हाई फ्रीक्वेंसी का इलेक्ट्रिकल इंपल्स उत्पन्न होता है। यह इंपल्स स्पाइनल कॉर्ड से होकर ब्रेन तक पहुंचने वाले दर्द के संकेतों को बीच में ही रोक देता है और उसे निष्प्रभावी कर देता है। इससे रोगी का दर्द कम हो जाता है। यह पूरी कार्यप्रणाली जिस सिद्धांत के तहत कार्य करती है उसे 'गेट कंट्रोल थ्योरी ऑफ पेन- कहते हैं। इस इंप्लांटेशन में बड़ी सर्जरी की जरूरत नहीं होती है।

यह सर्जरी दो भागों में पूरी होती है-

ट्रायल इंप्लांट और दूसरा पर्मानेंट इंप्लांट।

ट्रायल इंप्लांट- पर्मानेंट इंप्लांट के पहले यह जानना महत्वपूर्ण होता है कि उत्तेजना यानी स्टीमुलेशन के दौरान रोगी किस तरह से प्रतिक्रिया देगा। टेम्परेरी यानी ट्रायल इंप्लांटेशन के दौरान उपकरण को एक्सटर्नल स्टीमुलेटर से जोड़ दिया जाता है और उसे इस तरह से प्रोग्राम किया जाता है कि वह दर्द वाले स्थान को कवर कर ले। इस इंप्लांट से रोगी को यह जानने में मदद मिलती है कि यह थेरेपी दर्द के किस स्तर, प्रकार, स्थान और मर्ज की गंभीरता में प्रभावी है।

पर्मानेंट इंप्लांट- दर्द की गंभीरता को देखते हुए ही इस इंप्लांट को अंजाम दिया जाता है। इसमें एक छोटी सुई या चीरे की सहायता से दर्द के सटीक स्थान पर एक या दो लीड डाली जाती हैं। इस लीड को रोगी के आराम के हिसाब से कहीं भी इंप्लांट किया जा सकता है, लेकिन इसे पेट के एक तरफ निचले हिस्से में ही इंप्लांट करने को वरीयता दी जाती है।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

- ऑपरेशन का घाव भर जाने के बाद रोगी को दर्द से निजात मिल जाती है।

- इंप्लांट के सेंसेशन अलग-अलग लोगों में अलग-अलग तरह से महसूस होते हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में एक हल्की सिहरन महसूस होती है।

- यह एक आसान और दर्द को जल्द कम करने वाली थेरेपी है। इस थेरेपी के साथ ही डॉक्टर द्वारा बतायी गई एक्सरसाइज को करना होता है। कुछ ही दिनों में रोगी पहले की दिनचर्या पर वापस लौट आता है।

- जरूरत पडऩे पर इस उपकरण को चौबीसों घंटे इस्तेमाल किया जा सकता है। कई मामलों में रोगी इसे दिन के समय ऑन यानी चालू रखते हैं और रात में सोने के समय इसे ऑफ कर देते हैं।

डॉ. आदित्य गुप्ता

डायरेक्टर, न्यूरो सर्जन


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