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श्वसन तंत्र की एलर्जी नहीं चलेगी इसकी मनमर्जी

बरसात में फफूंदी कुछ ज्यादा ही उगने लगती है। हवा में उड़ते फफूंदी के कण और अन्य वनस्पतियों से निकले परागकण कुछ लोगों में प्रमुख तौर पर सांस तंत्र की एलर्जी पैदा कर देते हैं। यह एलर्जी किसी भी उम्र में हो सकती है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 18 Aug 2015 03:06 PM (IST)Updated: Tue, 18 Aug 2015 03:19 PM (IST)
श्वसन तंत्र की एलर्जी नहीं चलेगी इसकी मनमर्जी

बरसात में फफूंदी कुछ ज्यादा ही उगने लगती है। हवा में उड़ते फफूंदी के कण और अन्य वनस्पतियों से निकले परागकण कुछ लोगों में प्रमुख तौर पर सांस तंत्र की एलर्जी पैदा कर देते हैं। यह एलर्जी किसी भी उम्र में हो सकती है।

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जीवाणुओं का संक्रमण: बरसात के मौसम में वाइरल और बैक्टीरिया के संक्रमण के मामले भी ज्यादा सामने आते हैं। ये दोनों इन्फेक्शन और वातावरण में मौजूद प्रदूषक तत्व सांस की

तकलीफ को बढ़ाने में (ट्रिगर)सहयोगी बन जाते हैं। सांस तंत्र के ऊपर के हिस्से की एलर्जी को एलर्जिक राइनाइटिस कहते हैं। सांस तंत्र के निचले भाग या लोअर रेस्पाएरेट्री ट्रैक्ट की एलर्जी से एलर्जिक ब्रॉन्काइटिस, एलर्जिक ब्रॉन्कियोलाइटिस

(बचपन में होने वाला दमा) और दमा हो सकता है।

एलर्जी उत्पन्न करने वाले कणों के संपर्क में आते ही सांस नली की अंदरूनी त्वचा (जिसे म्यूकस मेम्ब्रेन कहते हैं) में इनफ्लेमेटरी रिएक्शन होता है और इस कारण सूजन हो जाती है। इससे फिर सेक्रीशन या स्राव निकलते हंै और सांस नली

(जिसे ब्रॉन्कस कहते हैं) की पेशियां सिकुडऩे लगती हैं। सांस नली में सूजन और इन पेशियों के सिकुडऩे से सांस नली संकरी हो जाती है। इस प्रकार सांस के जरिये फेफड़े में हवा जाने का

रास्ता अवरुद्ध हो जाता है और मरीज की सांस फूलती है।

एलर्जिक राइनाइटिस: इस समस्या में नाक बहती है। अनेक मामलों में नाक बंद होने लगती है। आंख से भी पानी आने लगता है और गले में खराश हो सकती है।

एलर्जिक ब्रॉन्काइटिस: इसमें खांसी के साथ नाक व आंख से पानी आता है। समस्या के ज्यादा तेज होने पर बच्चों की पसली चलने लगती है।

इलाज: एलर्जिक राइनाइटिस में एंटी एलर्जिक और अन्य दवाएं लक्षणों के अनुसार दी जाती हैं। मर्ज के बार-बार होने पर नाक में कॉर्टिकोस्टेरॉइड का स्प्रे करने की सलाह दी जाती है।

एलर्जिक ब्रॉन्काइटिस और दमा में इलाज का उद्देश्य सांस नली की सूजन कम करना और सांस नली की सिकुड़ी हुई पेशियों को वापस अपनी स्थिति में लाना होता है। यह कार्य कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स और ब्रॉन्कोडाइलेटर दवाओं से होता है। ये दवाएं आसानी से नेबुलाइजर और इनहेलर के जरिये सीधे सांस की नली में पहुंचायी जा सकती हैं। दमा का ज्यादा जोर होने पर कॉर्टिकोस्टेरॉइड और एड्रीनैलिन के इंजेक्शन भी दिए जा सकते हैं। गौरतलब है कि श्वसन तंत्र से संबंधित उपर्युक्त बातें बच्चों के अलावा वयस्कों पर भी लागू होती हैं।

डॉ.निखिल गुप्ता वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ

श्वसन तंत्र की एलर्जी


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