चिंता से नहीं, चिंतन से बनेगी बात
चिंता और डर किसी भी व्यक्ति के मन में निहित सामान्य भाव हैं। तनाव की स्थिति में चिंता व डर के रूप में व्यक्ति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। हम सबको दैनिक जीवन में आम तौर पर अनेक चिंताओं से रूबरू होना पड़ता है। जैसे अगर हमारी जॉब छूट जाए या बच्चे की तबियत खराब हो जाए, तो इस
चिंता और डर किसी भी व्यक्ति के मन में निहित सामान्य भाव हैं। तनाव की स्थिति में चिंता व डर के रूप में व्यक्ति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। हम सबको दैनिक जीवन में आम तौर पर अनेक चिंताओं से रूबरू होना पड़ता है। जैसे अगर हमारी जॉब छूट जाए या बच्चे की तबियत खराब हो जाए, तो इस स्थिति में चिंतित होना स्वाभाविक है।
कभी-कभी इस तरह की चिंताओं से कुछ फायदा भी होता है। जैसे कुछ सीमित मायने में चिंता व तनाव हमें अच्छा कार्य-प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करते हैं। असल में चिंता या घबराहट तब एक समस्या बन जाती है, जब वह दैनिक जीवन में हमारे कार्य-प्रदर्शन (परफार्मेन्स) पर असर डालने लगती है। इसके लक्षण इतने तीव्र होते हैं कि व्यक्ति को तकलीफ का अनुभव होने लगता है।
चिंता के तीन पहलू
1. शारीरिक लक्षण
चिंता व घबराहट की स्थिति में शरीर में कई प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं। जैसे दिल का जोर से धड़कना, मांसपेशियों में खिंचाव होना, जल्दी जल्दी सांसें लेना, चक्कर आना, बदहजमी होना आदि। ऐसे व्यक्ति जिन्हें चिंता होती है,वे इन लक्षणों को अक्सर किसी गंभीर बीमारी का लक्षण मान लेते हैं। जैसे हार्ट की बीमारी या हाई ब्लडप्रेशर आदि। इस तरह की गलत धारणा अपने आप में चिंता को बढ़ाती है।
2. व्यवहार संबंधी पहलू
चिंता की स्थिति में हमारा व्यवहार भी मायने रखता है। जैसे अगर हमें लिफ्ट में चढ़ने से घबराहट होती है और हम उसमें जाएं ही न तो हमारी समस्या और भी बदतर हो जाती है।
3. विचार चिंता की स्थिति में अपने आप से आप जो बातें करतें हैं, जैसा आप सोचते हैं और आपको क्या हो सकता है, उसके बारे में जो कल्पना करते हैं, वह चिंता या घबराहट का तीसरा मुख्य पहलू है। अक्सर ऐसी सोच अतार्किक शंकाओं की ओर ले जाती है। जैसे जिन व्यक्तियों को अन्य लोगों के साथ होने से चिंता उत्पन्न हो जाती है, उन्हें किसी पार्टी में मौजूद होने से घबराहट होती है। उनके मन में ऐसी कल्पना उठती है कि वे अनजान लोगों के एक ऐसे समूह में खड़े हैं, जो उनकी खिल्ली उड़ा रहे हैं।
समाधान
-चिंता के तीनों पहलुओं को समझने का प्रयास करें। चिंता के बजाय किसी प्रतिकूल स्थिति से निपटने के बारे में सकारात्मक चिंतन करें। इससे आपको व्यर्थ की चिंताएं समाप्त करने में मदद मिलेगी।
-शारीरिक लक्षणों की परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए ध्यान (मेडिटेशन) करें। ईश्वर या अदृश्य शक्ति पर गहन आस्था रखने से भी चिंता व उससे पैदा होने वाले तनाव को नियंत्रित किया जा सकता है।
-जो बातें आप अपने आप से कहतें हैं, या बुरा होने की जो कल्पनाएं करते हैं, उन्हें दूर करने के लिए आप अपना ध्यान कहीं और लगाएं। हर व्यक्ति के ध्यान हटाने के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं।
-अगर चिंता फिर भी काबू में नहीं आती, तो किसी मनोचिकित्सक से परामर्श लें।
डॉ.अचल भगत
वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ
अपोलो हॉस्पिटल, नई दिल्ली
achalbhagat@4ahoo.co.in
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर