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पुनर्वास से होगा कायाकल्प

इलाज की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी यह जरूरी नहीं कि आपको विभिन्न समस्याओं से छुटकारा मिल ही जाए, लेकिन पुनर्वास की विधि से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते है

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 24 May 2016 03:28 PM (IST)Updated: Tue, 24 May 2016 03:34 PM (IST)

पुनर्वास (रीहैबिलिटेशन) इलाज की एक विधि है। इसके माध्यम से विभिन्न प्रकार के रोगियों में इलाज के बाद अवशेष रूप से बची कमजोरी और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं में सुधार लाने का प्रयास किया जाता है ताकि मरीज पूरी तरह स्वस्थ होकर सामान्य दिनचर्या पर वापस लौट सके।

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इन रोगों में है पुनर्वास की जरूरत

1. सांस से संबंधित या फेफड़े की लंबे वक्त तक चलने वाली बीमारियों में।

2. हार्ट अटैक और दिल की अन्य बीमारियों में।

3. रीढ़ की हड्डी की बीमारियों में।

4. लकवा में।

5. किसी अंग के कटने के बाद।

6. मांसपेशियों की कमजोरी से संबंधित रोगों में।

7. जन्मजात विकृतियों से संबंधित रोगों में।

8. लंबे समय से बिस्तर पर रहने वाले मरीजों में।

9. सघन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) के मरीजों में।

10. कोमा से बाहर निकल चुके मरीजों में।

11. मानसिक रूप से कमजोर बच्चों में।

12. हड्डियों के टूटने के बाद गठिया और अन्य जोड़ों में।

आवश्यक प्रक्रिया

पुनर्वास आधुनिक मेडिकल साइंस की एक आवश्यक प्रक्रिया है, जिसमें दवाओं के बगैर व्यायाम योग, प्राणायाम, ध्यान आदि के माध्यम से बीमारियों का इलाज किया जाता है।

फेफड़े के रोग और पुनर्वास

- फेफड़े के कार्य करने की क्षमता को संरक्षित करना और हो सके तो इसमें सुधार लाना।

- रोजमर्रा के कार्र्यों में सुधार लाना।

- जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना

- फेफड़े से संबंधित रोगों के लक्षणों को कम करना।

सांस रोगों में पुनर्वास के लाभ

- परिश्रम क्षमता में सुधार

- सांस फूलने की समस्या को कम करना।

- स्वास्थ्य से संबंधित जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना।

- मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करना।

- अस्पताल में भर्ती की अवधि में कटौती करना।

- मरीज की चिंता को कम करना।

नहीं होता पुनर्वास

- सिर में चोट लगे मरीजों में।

- टूटी हुई पसलियों के मरीजों में।

- रक्त से संबंधित रोगों में।

- हाई ब्लड प्रेशर वालों में।

पुनर्वास की विधियां

फेफड़े के रोगों में पुनर्वास के तरीके सहज हंै। जैसे प्राणायाम,ध्यान या योगाभ्यास करना। सीढिय़ों पर चढऩा

और उतरना। साइकिल चलाना,पैदल चलना आदि। इसके अलावा नियंत्रित सांस की विधि जैसे पर्सलिप ब्रीदिंग (पेट को अंदर दबाते हुए सांस को बाहर निकालना) करना आदि।

डॉ.सूर्यकांत

सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट

किंग जॉर्ज मेडिकल

यूनिवर्सिटी, लखनऊ


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