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ऐसे करें डायबिटीज का रिस्क कम

अक्सर लोग इसका नाम सुनकर ही घबरा जाते हैं पर सच यह है कि प्री-डायबिटीज केवल एक अलार्म है। इसे भांपकर शुरुआती अवस्था में ही सचेत हो जाएं तो नहीं आएगी टाइप 2 डायबिटीज की नौबत...

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 23 Aug 2016 09:16 AM (IST)Updated: Tue, 23 Aug 2016 09:31 AM (IST)
ऐसे करें डायबिटीज का रिस्क कम

दौर में लोगों में डायबिटीज और प्री-डायबिटीज की समस्या बढ़ती जा रही है, लेकिन इस बारे में जानकारी होने से काफी हद तक प्रीडायबिटीज के दुष्प्रभावों से बचना संभव है। प्री- डायबिटीज, डायबिटीज से पहले की अवस्था है, जिसमें व्यक्ति का शुगर लेवल सामान्य से अधिक किन्तु डायबिटीज की तुलना में कम होता है। इस अवस्था के साथ व्यक्ति में डायबिटीज का रिस्क बढ़ जाता है।

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क्या है इंसुलिन रेजिस्टेंस

प्री-डायबिटीज की अवस्था में व्यक्ति का शरीर इंसुलिन का ठीक प्रकार से उपयोग नहीं कर पाता। इस वजह से ब्लड शुगर कोशिकाओं में ऊर्जा की तरह इस्तेमाल नहीं हो पाती। इस स्थिति को ही इंसुलिन रेजिस्टेंस कहते हैं। हालांकि कई बार ब्लड शुगर लेवल ज्यादा होने पर भी लक्षणों का पता नहीं चलता है। इसलिए समय-समय पर शुगर लेवल की जांच कराते रहना चाहिए।
जरूरी है जांचें
इस समस्या के बढ़ने से पहले ही पता लगाने के लिए समय-समय पर जांच कराते रहना आवश्यक है। डायबिटीज और प्रीडायबिटीज के रिस्क फैक्टर समान होते हैं। इन कारकों के होने पर प्रतिवर्ष एक बार शुगर लेवल की जांच करानी चाहिए।
ये हैं रिस्क फैक्टर
अधिक वजन: वजन का सामान्य से अधिक होना प्री-डायबिटीज और डायबिटीज टाइप 2 के लिए एक प्रमुख रिस्क फैक्टर है। खासतौर पर पेट के आसपास अतिरिक्त फैट का संचित होना।
शारीरिक परिश्रम न करना: शारीरिक व्यायाम वजन को नियंत्रित रखने में सहायक हैं। शारीरिक परिश्रम और व्यायाम करने से शरीर में ऊर्जा के रूप में ग्लूकोज का उपयोग बढ़ता है। शारीरिक व्यायाम इंसुलिन रेजिस्टेंस को कम करके इंसुलिन के काम को बेहतर बनाने में भी मदद करता है। इसके विपरीत व्यायाम न करने से प्री- डायबिटीज का रिस्क बढ़ता है।
आयु: 35 या इससे अधिक की उम्र के बाद भी प्री-डायबिटीज का खतरा तुलनात्मक रूप से बढ़ जाता है।

फैमिली हिस्ट्री: माता-पिता को डायबिटीज हो, तो भी प्री-डायबिटीज या डायबिटीज टाइप 2 का खतरा बढ़ जाता है।
जेस्टेशनल डायबिटीज: जिन महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की समस्या उत्पन्न होती है, उन्हें गर्भावस्था के 5 से 10 वर्ष बाद प्री-डायबिटीज या फिर डायबिटीज का खतरा रहता है।

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिन्ड्रोम(पीसीओएस): महिलाओं में पीसीओएस होने पर भी प्री-डायबिटीज का रिस्क अधिक होता है। अनियमित माहवारी, चेहरे पर अतिरिक्त बाल और पेट के आसपास अतिरिक्त चर्बी आदि पीसीओएस के कुछ लक्षण हैं।
प्री-डायबिटीज का पता कैसे लगाएं: प्रीडायबिटीज है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए खाली पेट ग्लूकोज लेवल या ओरल ग्लूकोज टॉलरेन्स टेस्ट (ओ जी टी टी) कराया जाता है।

संभव है सुधार

प्री-डायबिटीज का पता चलने के बाद जीवन-शैली में आवश्यक सकारात्मक बदलाव करके टाइप 2 डायबिटीज को रोकना संभव है। शोधों से यह साबित होता है कि नियमित शारीरिक व्यायाम, खान-पान में सुधार और वजन को 5 से 7 प्रतिशत कम करके टाइप 2 डायबिटीज से 58 प्रतिशत तक बचाव किया जा सकता है।
सक्रिय रहें
इंसुलिन रेजिस्टेंस को कम करने में शारीरिक व्यायाम बहुत सहायक है। हफ्ते में कम से कम 5 दिन 30 से 40 मिनट का व्यायाम प्री डायबिटीज को रिवर्स करने और इसके रिस्क को कम करने में मदद करते हैं।
सचेत रहना जरूरी
यदि आपको प्री-डायबिटीज है, तो एक बार खाली पेट और खाने के 2 घंटे के बाद की ब्लड शुगर जरूर चेक करें। साल में एक बार ‘एचबीए1सी’ (तीन माह का औसत शुगर लेवल) नामक जांच कराएं।
दवाएं
प्री-डायबिटीज की अवस्था में आमतौर पर डॉक्टर दवा नहीं लिखते और जीवन -शैली के सुधार पर जोर देते हैं। फिर भी कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर डॉक्टर कुछ दवाएं (जैसे मेटफॉर्मिन) दे सकते हैं। प्रीडायबिटीज हृदय रोग या स्ट्रोक का खतरा बढ़ा सकता है। इसलिए आपके डायबिटीज विशेषज्ञ आपको तंबाकू सेवन बंद करने की
सलाह दे सकते हैं। इसी तरह डॉक्टर ब्लड प्रेशर और कोलेस्टेरॉल को नियंत्रण में रखने की दवाएं भी दे सकते हैं।
डॉ. अंबरीश मित्तल एंडोक्राइनोलॉजिस्ट
मेदांता दि मेडिसिटी, गुड़गांव
प्रस्तुति-विवेक शुक्ला

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