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कुपोषण को दें करारा जवाब

कुपोषण अनेक रोगों को बुलावा देता है। इन दिनों संक्रामक रोगों का हमला जिस तेजी से लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है, उसका एक कारण कुपोषण रूपी स्वास्थ्य समस्या ही है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 14 Apr 2016 04:11 PM (IST)Updated: Thu, 14 Apr 2016 04:23 PM (IST)
कुपोषण को दें करारा जवाब

कुपोषण अनेक रोगों को बुलावा देता है। इन दिनों संक्रामक रोगों का हमला जिस तेजी से लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है, उसका एक कारण कुपोषण रूपी स्वास्थ्य समस्या ही है। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि इस समस्या की गिरफ्त में गर्भस्थ शिशु, बच्चे और गर्भवती महिलाओं से लेकर सभी आयुवर्ग के व्यक्ति शामिल हैं। इस स्वास्थ्य समस्या को कैसे समाप्त किया जाए? इस संदर्भ में कुछ विशेषज्ञ डॉक्टरों से बात की विवेक शुक्ला ने...

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28 वर्षीय कृतिका मिश्रा शिशु की पैदाइश के 15 दिनों बाद उसे लेकर घबराहट की स्थिति में मेरे पास आयी थीं। उन्होंने बताया कि बच्चा ढंग से दूध नहीं पी रहा है, कुछ दिनों से उसकी आंखें व शरीर का रंग हल्का पीला सा हो गया है। कभी-कभी उसे उल्टियां होती हैं और वह रोता रहता है। चेकअप व जांच के बाद मुझे पता चला कि उनका पुत्र एनीमिया व जॉन्डिस से ग्रस्त है। बहरहाल, इलाज के बाद आज उनका बच्चा स्वस्थ है।’’ यह कहना है मुंबई के कोकिलाबेन धीरू भाई अंबानी हॉस्पिटल की चीफ न्यूट्रीशनिस्ट भक्ति सामंत का। उनके अनुसार देश में 47 प्रतिशत बच्चे कुपोषण से इसलिए ग्रस्त हैं, क्योंकि गर्भावस्था के दौरान महिलाएं संतुलित -पोषक खान-पान पर समुचित ध्यान नहीं देतीं। जैसा कि कृतिका मिश्रा ने किया। स्पष्ट है कि गर्भावस्था के दौरान खान-पान में प्रोटीन, विटामिंस खासकर विटामिन डी व मिनरल्स जैसे कैल्शियम व फोलिक एसिड आदि तत्वों की कमी का दुष्प्रभाव मां और बच्चे दोनों के ही स्वास्थ्य पर पड़ता है। कुपोषण का बुरा असर बच्चे के लिवर, आंखों, हड्डियों और शारीरिक विकास पर पड़ता है। 30 प्रतिशत बच्चों में कुपोषण के कारण उनका कद ठिगना रह जाता है। इसी तरह इसका असर बच्चे के मानसिक विकास पर भी पड़ता है। जैसे बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है या फिर वह सुस्त रहने लगता है। यहीं नहीं, बढ़ती उम्र के अनुरूप बच्चे की सोचने-समझने की क्षमता का समुचित विकास नहीं हो पाता।

किस स्थिति को कुपोषण कहेंगे, इस संदर्भ में मेदांता हॉस्पिटल, गुड़गांव की चीफ न्यूट्रीशनिस्ट शुभदा भनौत कहती हैं किुपोषण की समस्या पोषक तत्वों की कमी से उत्पन्न होती है या फिर असंतुलित मात्रा में पोषक तत्वों को ग्रहण करने से उत्पन्न होती है। यदि शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से अधिक मात्रा में कोई व्यक्ति आहार ग्रहण करता है, तो इस स्थिति को हम लोग मेडिकल भाषा में ‘ओवर न्यूट्रीशन’ कहते हैं। इस तरह का

ओवर न्यूट्रीशन भी मोटापे के अलावा कई तरह की समस्या पैदा करता है।

कोकिला बेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल वरिष्ठ स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ अंशुमाला शुक्ला कुलकर्णी इस संदर्भ में कहती हैं कि गर्भावस्था के दौरान अगर गर्भवती महिला को खान-पान में पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइडे्रट्स, प्रोटीन व फाइबर्स युक्त खाद्य पदार्थ उपलब्ध नहीं होता, तो गर्भवती को जेस्टेस्नल डाइबिटीज , हो जाती है और थायरायड संबंधी विकार और मोटापे से ग्रस्त होने का जोखिम बढ़ जाता है।

ऐसी स्थिति में शिशु के जन्म के पूर्व और जन्म के बाद मां और बच्चे के लिए कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

वयस्क भी कुपोषण की गिरफ्त में मेदांता हॉस्पिटल की फिजीशियन डॉ. सुशीला कटारिया कहती हैं कि कुपोषण की समस्या का शिकार किसी भी आयुवर्ग का व्यक्ति हो सकता है। वयस्क व वृद्ध भी इसके अपवाद नहीं हैं। सामान्य तौर पर वयस्कों में कुपोषण की समस्या उस वक्त शुरू होती है, जब उनका वजन अचानक और अप्रत्याशित रूप से कम होने लगता है। यह स्थिति पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, मिनरल्स व विटामिंस आदि के ग्रहण न करने से उत्पन्न होती है। किसी बीमारी या शारीरिक विकार के कारण वजन कम होने या शरीर द्वारा पोषक तत्वों को जज्ब न करने से भी यह समस्या पैदा हो

सकती है।

कुपोषण के परिणामस्वरूप वयस्कों व वृद्ध लोगों में कालांतर में डिप्रेशन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। उनकी भूख कम हो सकती है, एकाग्रता कम हो सकती है,चिड़चिड़ेपन की प्रवृत्ति बढ़ सकती है, किसी घाव के भरने में देर होना और कमजोरी महसूस करना आदि लक्षण यह संकेत देते हैं कि अमुक वयस्क कुपोषण से ग्रस्त है। वयस्कों खासकर बढ़ती उम्र के लोगों में आम तौर पर कैल्शियम की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस नामक रोग उत्पन्न हो जाता है। इस रोग में थोड़ा-सा आघात लगने पर हड्डियां टूट जाती हैं। खान-पान में कैल्शियमयुक्त खाद्य पदार्र्थों जैसे दूध और इससे निर्मित खाद्य पदार्र्थों को स्थान देकर इस समस्या से सफलतापूर्वक निपटा जा सकता है।

पोषक तत्वों की कमी का प्रभाव

कोकिलाबेन हॉस्पिटल की वरिष्ठ वरिष्ठ शिशु व बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. तनु सिंघल के अनुसार गर्भवती महिलाओं और बच्चों के संदर्भ में यह जानना जरूरी है कि कि किस पोषक तत्व की कमी से कौन-सा रोग होता है। ’ आयरन की कमी से एनीमिया हो जाता है।

’ बी. कॉम्लेक्स की कमी से तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) कमजोर होने लगता है। इसके अलावा इसकी कमी से एनीमिया भी संभव है।

’ विटामिन ए की कमी से रतौंधी (नाइट ब्लाइंडनेस) का रोग हो सकता है। टमाटर में विटामिन ए पाया जाता है।

’ विटामिन सी की कमी से स्कर्वी (मसूढ़ों से खून आने का रोग) संभव है। खट्टे फलों में विटामिन सी पाया जाता

है।

’ कैल्शियम और मैग्नीशियम की कमी से हड्डियां कमजोर होने लगती हैं।

’ जिंक की कमी से शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति क्षीण होने लगती है। इस स्थिति में न्यूमोनिया व डायरिया की

शिकायत ज्यादा होती है।

डॉ. सिंघल के अनुसार उपर्युक्त पोषक तत्वों को बच्चों के आहार में में स्थान देने से इन तत्वों की कमी से होने

वाली बीमारियों के होने का खतरा टल जाता है।

समस्याएं हैं, तो समाधान भी है

1. नट्स जैसे बादाम, अखरोट, काजू मूंगफली का सेवन भी लाभप्रद है।

2. गर्भवती महिला की सोच सकारात्मक होनी चाहिए और उसे शांतिपूर्ण और प्रेममय वातावरण में रहना चाहिए।

3.गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ के परामर्श से खान-पान ग्रहण करें। अपनी

शारीरिक गतिविधियों के संदर्भ में भी वह डॉक्टर से परामर्श ले।

4. गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को 300 से 400 अतिरिक्त कैलोरीज की जरूरत पड़ती है। कैलोरी के संदर्भ

में गर्भवती महिलाएं अपने डॉक्टर से कैलोरीज चार्ट बनवाकर उसके अनुसार ही खानपान ग्रहण करें।

5. गर्भवती महिला को प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्र्थों जैसे दालों, दूध या इससे निर्मित उत्पादों जैसे पनीर, दही आदि, हरी

सब्जियों, मौसमी फलों का सूप लेना चाहिए। ‘‘बच्चों में कुपोषण के कारण प्रोटीन एनर्जी मालन्यूट्रीशन (पीईएम)

नामक समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।’’ यह कहना मैक्स हॉस्पिटल, नई दिल्ली की रितिका समादार का। उनके

अनुसार मेडिकल भाषा में ‘पी ई एम’ के परिणामस्वरूप कई विकारपूर्ण स्थितियां पैदा हो सकती हैं। इस स्थिति में

बच्चे का शारीरिक विकास धीमा हो जाता है।


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