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बच्चों के पेट में कीड़े ऐसे पाएं छुटकारा

बच्चों के पेट में कृमियों (वम्र्स) की समस्या एनीमिया और कुपोषण के अलावा कई शारीरिक व मानसिक समस्याएं भी पैदा कर देती हैं, जिसका कारगर इलाज संभव है...

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 09 Feb 2016 02:40 PM (IST)Updated: Tue, 09 Feb 2016 02:54 PM (IST)
बच्चों के पेट में कीड़े ऐसे पाएं छुटकारा

भारत सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने बच्चों के पेट में कृमियों या क्रीड़ों (वम्र्स) की समस्या को दूर करने के लिए 10 फरवरी को देश भर में नेशनल डीवर्रि्मंग डे का आयोजन किया है। इस

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दिन स्कूलों और प्रीस्कूल्स (आंगनवाडिय़ों) में बच्चों को कृमियों के संक्रमण से बचने के लिए और इस स्वास्थ्य समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए एलबेनडीजोल (400 एमजी.) नामक दवा भी वितरित की जाएगी।

चिंताजनक आंकड़े: क्या आपको मालूम है कि देश में 1 से 14 साल की उम्र के बीच बच्चों के पेट में कृमियों (वम्र्स) के संक्रमण के मामले दुनियाभर में सबसे ज्यादा हैं। यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन का है। वहींसन् 2006 के नेशनल फैमिली सर्वे के अनुसार हर दस बच्चे में से सात बच्चे (छह माह से पांच साल तक की उम्र के बीच) खून की कमी (एनीमिया) से ग्रस्त हैं।

कृमि के प्रकार: बच्चों के पेट में प्रमुख रूप से तीन प्रकार की कृमियां पायी जाती हैं।पहला,हुक वर्म, दूसरा-विप वर्म और तीसरा राउंड वर्म आदि। दूसरे व तीसरे प्रकार की कृमियां प्रदूषित खाद्य पदार्थों के खाने से और

अस्वच्छ हाथों से खाद्य पदार्थ लेने से शरीर में प्रवेश करती हैं।

ये तीनों प्रकार की कृमियां या कीड़े बच्चों की आंतों में पाए जाते हैं।बच्चों के पेट में कृमियों (वम्र्स) की समस्या एनीमिया और कुपोषण के अलावा कई शारीरिक व मानसिक समस्याएं भी पैदा कर देती हैं, जिसका कारगर इलाज संभव है...

शारीरिक-मानसिक नुकसान: इन कृमियों की वजह से बच्चों में एनीमिया, कुपोषण और अन्य शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। यह कहना है 'एविडेंस एक्शन की कंट्री डायरेक्टर प्रिया झा का। उनके अनुसार एनीमिया और कुपोषण के ग्रस्त होने का कारण यह है कि यह कीड़े आंतों में मौजूद पोषक तत्वों को खा जाते हैं। इस कारण बच्चे एनीमिया के शिकार हो जाते हैं।

पढ़ाई में दिक्कत: एनीमिया और कुपोषण से ग्रस्त होने के कारण बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता। वे थका हुआ महसूस करते हैं और स्कूल में उनका मन पढ़ाई में एकाग्र नहीं हो पाता।

दवा की खुराक: जो बच्चे एक से दो साल की उम्र के बीच हैं, उन्हें एलबेनडीजोल 400 मिलीग्राम की आधा टेबलेट पानी में घोलकर पिलाई जाती है, वहीं जो बच्चे दो साल से ऊपर के हैं उन्हें एलबेनडीजोल 400 मिलीग्राम की एक पूरी टेबलेट चूसकर या चबाकर खाने के लिए दी जाती है, लेकिन डॉक्टर या विशेषज्ञ की देखरेख में ही इन दवाओं का सेवन कराना चाहिए।

रोकथाम

- खाने से पहले बच्चे साबुन से हाथ धोएं।

- बच्चों को गीली मिट्टी और कूड़ा करकट के

पास नंगे पैर न जाने दें।

- बच्चे शौचालय में ही मल त्याग करें।

- बच्चे हमेशा चप्पल या जूते पहनकर ही बाहर

जाएं। ऐसा इसलिए, क्योंकि हुक वर्म नामक कृमि का लार्वा नंगे पैर की त्वचा से शरीर के अंदर

प्रवेश करता है। खासकर ऐसे स्थान जहां पर

जमीन में गंदगी या गंदी मिट्टी ज्यादा हो।

प्रस्तुति: विवेक शुक्ला


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