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मेडिकल साइंस भी है योग की मुरीद

शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्तित्व के आध्यात्मिक विकास में योग भारत की विश्व को अमूल्य देन है। योगासन, प्राणायाम और ध्यान योग के ही अंग हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मेडिकल साइंस भी योग के चमत्कारिक प्रभावों को मान चुका है। योग के शारीरिक व मानसिक प्रभावों

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 16 Jun 2015 02:46 PM (IST)Updated: Tue, 16 Jun 2015 02:58 PM (IST)
मेडिकल साइंस भी है योग की मुरीद

शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्तित्व के आध्यात्मिक विकास में योग भारत की विश्व को अमूल्य देन है। योगासन, प्राणायाम और ध्यान योग के ही अंग हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मेडिकल साइंस भी योग के चमत्कारिक प्रभावों को मान चुका है। योग के शारीरिक व मानसिक प्रभावों के संदर्भ में कुछ प्रसिद्ध डॉक्टरों के

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विचारों को प्रस्तुत कर रहे हैं विवेक शुक्ला...

शरीर व मन का समन्वय कराता है योग डॉ. प्रदीप चौबे

सीनियर बैरियाट्रिक व लैप्रोस्कोपिक सर्जन, मैक्स हॉस्पिटल, नई दिल्ली

योग की एक महत्वपूर्ण विशेषता है शरीर व मन का समन्वय या कोऑर्डिनेशन। इसे ऐसे समझें। मान लें कि आप ट्रेड मिल पर एक्सरसाइज कर रहे हैं, तो इस स्थिति में आप टेलीविजन भी देख सकते हैं। इसी तरह दौड़ते समय आप सेल फोन पर बात भी कर सकते हैं। कहने का आशय है कि इन शारीरिक व्यायामों को करते समय आप दूसरे कार्य भी कर सकते हैं, लेकिन योग का अभ्यास करते वक्त आपको शारीरिक सक्रियता के साथ मन की एकाग्रता का भी समन्वय करना पड़ता है।

मेरी राय में योग का रोगों की रोकथाम में कहीं ज्यादा महत्व है। योग की ‘प्रीवेंटिव वैल्यू’ ज्यादा है। कहने का आशय यह कि योग करने वाले व्यक्ति को डिप्रेशन की समस्या प्राय: न के बराबर होगी, लेकिन डिप्रेशन से ग्रस्त होने के बाद योग अपेक्षा के अनुरूप कारगर नहींहोगा। बेशक योग तनाव को कम करता है, लेकिन विडंबना यह है कि जब कोई व्यक्ति रोग से ग्रस्त होता है,तब ही अनेक लोग योग शुरू करते हैं। उनका यह तौर-तरीका उचित

नहीं है। योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।मधुमेह के नियंत्रण में प्रभावी डॉ.अंबरीश मित्तल

सीनियर इंडोक्राइनोलॉजिस्ट, मेदांत दि मेडिसिटी, गुड़गांव

योग में युक्ति यानी तरीका और मुक्ति (थकान या तनाव से छुटकारा) इन दोनों का ही महत्व है। जीवन में संतुलन और सामंजस्य बनाए रखने के लिए योग उत्तम उपाय है। योग प्रभावी ढंग से रक्त शर्करा (ब्लड शुगर को नियंत्रित करने का एक प्राचीन उपाय है। नियमित रूप से योग करने से रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है और मधुमेह के लक्षणों की गंभीरता कम होती है। यही नहींयोग से मधुमेह से संबंधित जटिलताओं में कमी आती है।

मधुमेह के प्रमुख कारणों में तनाव को भी शुमार किया जाता है। तनाव के कारण शरीर में कुछ ऐसे हार्मोनों का स्तर बढ़ता है, जो रक्त शर्करा(ब्लड शुगर) को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। योगासन, प्राणायाम और ध्यान(मेडिटेशन) तनाव को कम करने में लाभप्रद हैं। वजन कम करने के लिए सूर्य नमस्कार एक प्रभावी योग है,इस संदर्भ में ध्यान रखें कि योग किसी विशेषज्ञ से ठीक से सीखकर करें और डॉक्टर की सलाह के बाद ही इसे शुरू करें।

सशक्त होता है इम्यून सिस्टम

डॉ.सूर्यकांत, सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट, केजीएम यूनिवर्सिटी, लखनऊ

महर्षि पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। आध्यात्मिक उन्नति या शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में योग की भूमिका महत्वपूर्ण है। आधुनिक मानव को आज योग की अधिक आवश्यकता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि आपाधापी से भरी आधुनिक जीवन-शैली के कारण व्यक्ति का मन व शरीर दोनों ही अत्यधिक तनावग्रस्त हो चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 1947 में स्वास्थ्य को इस प्रकार परिभाषित किया था, ‘‘दैहिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से पूर्णत: स्वस्थ होना ही स्वास्थ्य

है।’’ योग इन उद्देश्यों को प्राप्त करने का एक सशक्त माध्यम है।

योग की उत्पत्ति संस्कृत की युज धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है-जुड़ना। इसलिए इसका एक अर्थ यह भी होता है कि मन से सारी चिंताओं और परेशानियों को निकालकर मुक्त हो जाना और ईश्वर से जुड़ना। शरीर तो योग का एक पक्ष मात्र है। योगासन, प्राणायाम व ध्यान से शरीर का रोगप्रतिरोधक तंत्र (इम्यून सिस्टम) सशक्त होता है।

इस कारण शरीर रोगों से बहुत कम ग्रस्त होता है। के.जी.एम.यू. और लखनऊ

विश्वविद्यालय के तत्वावधान में योग और अस्थमा (दमा) पर हुए एक शोध कार्य द्वारा यह निष्कर्ष सामने आया है कि यदि प्रतिदिन 30 मिनट योग किया जाए, तो अस्थमा के मरीजों के जीवन स्तर में सुधार आता है, उनके शरीर

में एंटीऑक्सीडेन्ट्स का स्तर बढ़ जाता है, फेफड़ों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है, अस्थमा के कारण जो लोग इन्हेलर लेते हैं, उन्हें इन्हेलर की कम मात्रा की जरूरत पड़ती है। व्यक्ति सुचारु रूप से अपना कार्य कर सकता है। इसलिए योग को सहचिकित्सा के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।

डिप्रेशन और मनोरोगों में लाभप्रद

डॉ. उन्नति कुमार मनोरोग विशेषज्ञ

योग शरीर के आटोनॉमिक नर्वस सिस्टम(तंत्रिका तंत्र) को सशक्त करता है। इस कारण योग से डिप्रेशन, तनाव, एंग्जाइटी(लगातार चिंता करना) और पैनिक अटैक (अत्यधिक घबराहट) जैसे मनोरोगों को दूर करने में मदद मिलती है। इसी तरह सोशल एंग्जाइटी(सामाजिक व व्यावसायिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेने में संकोच करना) और नशे की लत को छुड़ाने में भी योग सहायक है। असल में मानव शरीर में दो तरह की क्रियाएं होती हैं।

पहली ऐच्छिक और दूसरी अनैच्छिक। ऐच्छिक क्रियाओं में अपनी इच्छा से योग या अन्य व्यायाम

करना। इच्छा से खाना-पीना या नहाना आदि शामिल है। वहीं कुछ क्रियाएं ऐसी होती हैं, जिन

पर हमारा नियंत्रण नहीं होता। जैसे दिल की धड़कन का धड़कना और सांस लेना आदि। योग का शरीर की

अनैच्छिक क्रियाओं पर अच्छा असर पड़ता है। डिप्रेशन, तनाव और अन्य मनोरोगों में व्यक्ति के दिल की धड़कन और सांस लेने की प्रक्रिया असामान्य हो जाती है, जिन पर व्यक्ति का नियंत्रण नहीं होता। योग से अनैच्छिक क्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। हृदय रोगों के उपचार में सहायक

डॉ.पुरुषोत्तम लाल

निदेशक: मेट्रो हॉस्पिटल व हार्ट इंस्टीट्यूट, नोएडा

मैं अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन को एक सकारात्मक पहल मानता हूं। मेरी राय में योग

रक्तचाप को घटाने और हृदय की धड़कन को नियमित करने में सहायक है। योग से सांस

प्रक्रिया सुचारु रूप से संचालित होती है। दरअसल योग केवल कुछ आसनों का नाम नहीं है बल्कि यह जीने का संपूर्ण विज्ञान है। योग साहित्य के अनुसार धूम्रपान, व्यसन और नशीले पदार्र्थों से परहेज,

शाकाहार और शारीरिक व्यायाम और तनावमुक्ति इस जीवन पद्वति के मुख्य अंग हैं। तनाव नियंत्रण और इसके प्रबंधन में योग की प्रमुख भूमिका है।

योग न केवल हृदय की बीमारी की रोकथाम के लिए बल्कि बाईपास सर्जरी और एंजियोप्लास्टी कराने के बाद भी लाभदायक साबित होता है। डॉक्टर मरीज की स्थिति के अनुसार कई तरह के आसान आसन बता सकते हैं। ये आसन केवल हृदय के लिए ही नहीं बल्कि शरीर के दूसरे अंगों के लिए भी फायदेमंद साबित होते

हैं। कई योग विशेषज्ञ यह कहते हैं कि हृदय की अवरुद्ध हो चुकी धमनियों को योग से दूर किया जा सकता है। इस बात से मैं सहमत नहीं हूं,लेकिन इसमे कोई शक नहीं है कि योग के माध्यम से और खान-पान में परहेज कर वजन को नियंत्रण में रखने से हृदय धमनियों में होने वाले अवरोध (ब्लॉकेज) के उत्पन्न होने की स्थिति को काफी हद तक कम किया जा सकता है। योग से ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती हैं।

कई आसन हृदय रोगियों के लिए ठीक नहीं होते। इस तरह के मरीजों को अपने विश्ोषज्ञों से सलाह लिए बिना आसन नहीं करने चाहिए। योग एवं ध्यान से मांसपेशियों को विश्राम देकर और रक्तचाप को नियंत्रित कर दिल का दौरा पड़ने की आशंका कम हो जाती है। योग के अलावा खान-पान का भी हमारे हृदय की सेहत के साथ गहरा संबंध है। विभिन्न अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि अधिक वसायुक्त आहार और मांसाहारी भोजन हृदय के लिए नुकसानदायक होते हैं। ऐसा इसलिए,क्योंकि ये रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाते हैं। इस कारण हृदय को रक्त मुहैया कराने वाली धमनियों में कोलेस्ट्रॉल का जमाव हो जाता है और हृदय को काम करने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती। यह स्थिति कालांतर में हृदय रोगों का कारण बनती है।


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