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मेडिकल साइंस के आईने में मॉड्यूनॉल

बीते लगभग पाच सालों में मॉड्यूनॉल नामक तत्व का कई रोगों से पीड़ित लोगों पर सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा चुका है। क्या हैं, इस तत्व की खासियतें, जिनसे रोगियों के अलावा अनेक डॉक्टर भी प्रभावित हैं..

By Edited By: Published: Tue, 11 Feb 2014 12:22 PM (IST)Updated: Tue, 11 Feb 2014 12:22 PM (IST)
मेडिकल साइंस के आईने में मॉड्यूनॉल

बीते लगभग पाच सालों में मॉड्यूनॉल नामक तत्व का कई रोगों से पीड़ित लोगों पर सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा चुका है। क्या हैं, इस तत्व की खासियतें, जिनसे रोगियों के अलावा अनेक डॉक्टर भी प्रभावित हैं..

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एक वक्त अमेरिका के ख्याति प्राप्त

प्रोफेसर जार्जेस हेल्पर्न ने अपने

शोध-पत्र में पहली बार मॉड्यूनॉल

नामक तत्व को विभिन्न प्रकार की

अर्थराइटिस में सुरक्षित और प्रभावकारी सिद्ध किया था। उस समय शायद उन्होंने यह सोचा भी न होगा कि यह एक समुद्री अमृत है और आने वाले समय में यह विभिन्न रोगों में कारगर होगा। विभिन्न देशों में मॉड्यूनॉल का प्रयोग पिछले 20

वषरें से हो रहा है, लेकिन अपने देश में पिछले पाच सालों से इसका प्रयोग जारी है।

आइए जानें इस तत्व के संदर्भ में क्या

नतीजे सामने आएं हैं। पेश हैं इनकी एक बानगी..

ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी

गाजियाबाद में रहने वाले सात्विक के

माता-पिता को अपने 6 वर्षीय बालक के बारे में पता चला कि उसे ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी नामक बीमारी है। इस बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए ज्यादातर डॉक्टर कार्टिसोन नामक दवा

के

प्रयोग की सलाह देते हैं, लेकिन एक

जागरूक माता-पिता होने की वजह से

उन्होंने इस दवा (कार्टिसोन) के गंभीर दुष्परिणामों को देखते हुए इसे न देने का फैसला लिया। इस दवा के स्थान पर उन्होंने मुझसे परामर्श कर मॉड्यूनॉल देने का निवेदन किया।

पिछले दो सालों से मॉड्यूनॉल ले रहे

सात्विक के पिता बताते हैं कि इस समुद्री तत्व ने बच्चे की बीमारी को आगे बढ़ने से रोका ही नहीं, बल्कि उसकी रिकवरी में भी मदद की। गौरतलब है कि इस बीमारी का दुनिया भर में समुचित इलाज नहीं है और अच्छे से अच्छे इलाज के बाद

भी पीड़ित व्यक्ति की मासपेशियों की

ताकत कमजोर हो जाती है।

क्या मासपेशियों का क्षय रोकने वाले

मॉड्यूनॉल का प्रभाव सिर्फ ड्यूशेन

मस्कुलर डिस्ट्राफी नामक रोग तक

सीमित है या अन्य प्रकार की मस्कुलर

डिस्ट्राफी में भी यह कारगर है। इस बारे में बलिया के 58 वर्षीय उमाकात (जो एफएसएचडी यानी फेशियो स्केपुलो ह्यूमीरल मस्कुलर डिस्ट्राफी से पीड़ित हैं) बताते हैं कि मॉड्यूनॉल के सेवन के बाद उनके चेहरे की ढीली पड़ी हुई मासपेशिया तो टाइट हुईं ही, साथ ही उनके बाजुओं की ताकत भी बढ़ी है और इससे भी उत्साहित अलीगढ़ के सिपाही श्याम सुंदर

हैं। सुंदर एलजीएमडी नामक रोग के

बावजूद, मॉड्यूनॉल की वजह से अपनी ड्यूटी निभाने में सक्षम हैं।

अन्य प्रभाव नेपाल से आया रेहान अंसारी नामक बालक आटिच्म(बोलने व समझने की क्षमता का कम होना) और डेवलपमेंटल डिले (बच्चों में शारीरिक व मानसिक विकास में बाधा) नामक समस्या से पीड़ित है। रेहान के पिता बताते हैं कि मॉड्यूनॉल के सेवन के बाद तीन माह में ही उनके बालक में सोचने, समझने और बुद्धिमत्त (आईक्यू) की क्षमता

बढ़ी है। साथ ही स्पीच यानी बोलने की क्षमता का विकास होने से वह काफी खुश है।

नर्वस सिस्टम की बीमारिया

नसों (न‌र्व्स) की ऐसी बीमारिया जहा नर्व टिश्यू का रिपेयर लगभग नामुमकिन होता है, वहा पर भी मॉड्यूनॉल ने आ‌र्श्यजनक

परिणाम दिये हैं। बिहार के सिवान से आये वैजूल हक, मोटर न्यूरान डिजीज के रोगी हैं। वह जब चलने-फिरने से लाचार हो गये, तो उन्होंने मॉड्यूनॉल का सहारा लिया। लगभग एक वर्ष से मॉड्यूनॉल का सेवन करने वाले वैजूल बताते हैं कि अब वह स्वयं करवट ले सकते हैं। मासपेशियों का फड़कना कम हो गया है और सास का फूलना भी कम हो गया है।

आखिर ऐसा क्या है इसमें

विशेषज्ञों के अनुसार न्यूजीलैंड में पाये जाने वाले एक समुद्री जीव के निचोड़ को जब विशेष रासायनिक प्रक्त्रिया से गुजारा जाता है, तब मॉड्यूनॉल का निर्माण होता है। मॉड्यूनॉल में प्रचुर मात्रा में ईपीए

और डीएचए नामक फैटी एसिड होते हैं। ये तत्व रोगों से बचाने के साथ-साथ नये टिश्यू के निर्माण में भी सहायक हैं। इस संदर्भ में अधिक जानकारिया इस वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यू

डब्ल्यू.स्टेमसेलइंडिया पर प्राप्त की जा

सकती है। इस तत्व की खास बात यह है कि इसके अभी तक किसी प्रकार के दुष्परिणाम या साइड इफेक्ट सामने नहीं आये हैं।

डॉ.बी.एस.राजपूत

स्टेम सेल ट्रासप्लाट व आर्थोपेडिक सर्जन, क्रिटीकेयर हॉस्पिटल, जुहू, मुंबई

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