लैप्रोस्कोपिक सर्जरी: कई स्त्री रोगों में कारगर
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी को कीहोल सर्जरी या मिनीमली इनवेसिव सर्जरी भी कहा जाता है। इस सर्जरी के लिये पेट पर मात्र एक से दो सेंटीमीटर का चीरा लगाया जाता है। छोटा चीरा लगाने के कारण दर्द भी अपेक्षाकृत काफी कम होता है और मरीज जल्दी ठीक होता है। यह सर्जरी कई रोगाें के उपचार में कारग्
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी को कीहोल सर्जरी या मिनीमली इनवेसिव सर्जरी भी कहा जाता है। इस सर्जरी के लिये पेट पर मात्र एक से दो सेंटीमीटर का चीरा लगाया जाता है। छोटा चीरा लगाने के कारण दर्द भी अपेक्षाकृत काफी कम होता है और मरीज जल्दी ठीक होता है। यह सर्जरी कई रोगाें के उपचार में कारगर है। जैसे..
बांझपन: लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के माध्यम से अवरुद्ध (ब्लॉक्ड) हुए फैलोपियन टयूब को खोला जाता है, जो बांझपन (इनफर्टिलिटी) का एक प्रमुख कारण है। इस तरह की सर्जरी में 80 प्रतिशत सफलता हासिल होती है। इससे अंडाशय (ओवरी) में बने सिस्ट को भी हटाया जाता है। अंडाशय (ओवरी) में सिस्ट होने से प्रजनन की क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
महिलाआें के गर्भाशय के अंदर या बाहर स्थित अवांछित ग्रोथ (जिसे यूटेराइन फाइब्रॉइड कहा जाता है) को हटाने के लिये लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टॅमी का सहारा लिया जाता है। ये फाइब्राइड्स गर्भाशय के ऊतकों (टिश्यूज) से बन जाते हैं और धीरे धीरे बढ़ने लगते हैं। लैप्रोस्कोपिक सर्जरी करके इन्हें गर्भाशय को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाए बगैर हटाया जाता है ताकि महिला आसानी से गर्भवती हो सके।
यह सर्जरी उन महिलाओं के लिये भी एक बेहतर उपचार है, जिनका गर्भाशय अपने नियत स्थान से नीचे की ओर स्थित है, जिससे उन्हें पेशाब करने में तकलीफ होती है और पीठ में दर्द होता है। इस सर्जरी के दौरान गर्भाशय को उचित स्थान पर कर दिया जाता है।
लैप्रोस्कोपिक ओवेरियन ड्रिलिंग: यह तरीका उन महिलाओं के लिये उपयुक्त है, जो पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज, से ग्रस्त हैं। यह महिलाओं की बेहद आम समस्या है। यह हार्मोन की गड़बड़ी के कारण उत्पन्न होती है। इससे ग्रस्त महिला के अंडाशय के बाहरी किनारे पर सिस्ट हो जाते हैं। ड्रिलिंग के बाद महिला के लिये गर्भवती होना आसान हो जाता है।
लैप्रोस्कोपिक ट्यूबोप्लास्टी: जिन महिलाओं ने पहले परिवार नियोजन से संबंधित उपायों का सहारा लिया हो, लेकिन बाद में किसी कारणवश मां बनना चाहती हैं, तो उनके लिये लैप्रोस्कोपिक ट्यूबोप्लास्टी एक बेहतरीन उपाय है।
गर्भाशय से जुड़ी समस्या: कभी- कभी किसी महिला के अंदर दो गर्भाशय बन जाते हैं। मादा भ्रूण में ये गर्भाशय पहले दो छोटे-छोटे ट्यूब के रूप में होते हैं और बाद में दोनों जुड़ जाते हैं, लेकिन कभी-कभी दोनों ट्यूब जुड़ते नहीं हैं और अलग-अलग गर्भाशय का निर्माण हो जाता है। लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के जरिये बेकार के गर्भाशय को हटाया जा सकता है। इससे गर्भाशय से जुडी जन्मजात समस्याएं भी खत्म की जा सकती हैं।
लैप्रोस्कोपिक रेडिकल हिस्टेरेक्टॅमी: गर्भाशय को हटाने की सर्जरी को हिस्टेरेक्टॅमी कहा जाता है। लैप्रोस्कोपिक रेडिकल हिस्टेरेक्टॅमी के जरिये गर्भाशय के कैंसर से पीड़ित महिलाओं और गर्भाशय और उसके आस-पास बने लिंफ नोड्स को हटाया जाता है।
टोटल लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी: यह उन महिलाओं के लिये उचित सर्जरी है, जो मातृ-सुख का आनंद ले चुकी हैं और यूटेराइन फाइब्रॉइड्स से ग्रस्त हैं। इसके अलावा ऐसी महिलाएं जो गर्भाशय के टयूमर, गर्भाशय से रक्त निकलने और गर्भाशय के कैंसर से ग्रस्त हैं, उनके लिए भी यह सर्जरी लाभप्रद है।
(डॉ. ऊषा. एम. कुमार, स्त्री रोग विशेषज्ञ व लैप्रोस्कोपिक सर्जन, नई दिल्ली)