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दिल के साथ दिल्लगी ठीक नहीं

जब एक बार दिल बीमार हो जाता है, तब उसकी कार्यप्रणाली लगातार कम होती जाती है। इस स्थिति में दिल उतना रक्त पंप नहीं कर पाता, जितनी हमारे शरीर को आवश्यकता होती है। इस स्थिति को क्रॉनिक हार्ट फेल्योर (सीएचएफ) या कन्जेस्टिव हार्ट फेल्योर कहते हैं। सीएचएफ कई दूसरी

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 30 Sep 2015 01:00 PM (IST)Updated: Wed, 30 Sep 2015 01:04 PM (IST)
दिल के साथ दिल्लगी ठीक नहीं

लाइलाज नहीं है क्रॉनिक हार्ट फेल्योर

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जब एक बार दिल बीमार हो जाता है, तब उसकी कार्यप्रणाली लगातार कम होती जाती है। इस स्थिति

में दिल उतना रक्त पंप नहीं कर पाता, जितनी हमारे शरीर को आवश्यकता होती है। इस स्थिति को

क्रॉनिक हार्ट फेल्योर (सीएचएफ) या कन्जेस्टिव हार्ट फेल्योर कहते हैं। सीएचएफ कई दूसरी

स्वास्थ्य समस्याओं के कारण भी हो सकता है, जो हमारे कार्डियोवैस्क्युलर सिस्टम को प्रभावित करती हैं।

कारण

- अतीत में हार्ट अटैक हो चुका होना या दिल में छेद होना।

- दिल के वॉल्व का खराब होना और कोरोनरी आर्टरी डिजीज होना।

- दिल की मांसपेशियों का क्षतिग्रस्त हो जाना।

- दिल की धड़कनें आसामान्य होना और डाइबिटीज का मर्ज।

- तनावपूर्ण जीवनशैली, हाई ब्लडप्रेशर होना और आनुवांशिक

कारण।

लक्षण

क्रॉनिक हार्ट फेल्योर (सीएचएफ) की शुरुआती अवस्था में कोई लक्षण प्रकट नहीं होते, लेकिन जैसे-जैसे हृदय की स्थिति खराब होती जाती है, वैसे-वैसे पीडि़त व्यक्ति अपने स्वास्थ्य में परिवर्तन देखते हैं।

थकान महसूस करना, पंजों, टखनों और पैरों में सूजन आ जाना, वजन बढऩा आदि इस रोग के प्रारंभिक लक्षण हैं। इसके अलावा जब दिल की धड़कनें अनियमित हो जाएं, तेज खांसी व सांस लेते समय घर्र-घर्र की आवाज आने लगे,तो मरीज की स्थिति काफी खराब मानी जाती है। कभी कभी पीडि़त व्यक्ति के सीने में भी तेज दर्द होता है। इसी तरह अगर मरीज की सांस तेजी से चलने लगें, फेफड़ों में ऑक्सीजन

की कमी के कारण त्वचा का नीला पड़ जाना और बेहोशी जैसी स्थिति हो, तो शीघ्र ही डॉक्टर से संपर्क करें।

जांचें

एंजियोग्राफी, स्ट्रेस टेस्ट, ब्लड टेस्ट, सीने का एक्स रे,

इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी)व पेट स्कैन आदि द्वारा सीएचएफ की

जांच की जा सकती है।

उपचार

सीएचएफ चार प्रकार का होता है। टाइप 1, 2, 3 और टाइप 4।

टाइप 1 का उपचार दवाओं से हो सकता है। टाइप 2 और टाइप 3 का उपचार केवल दवाओं से संभव नहीं है। इस टाइप में सर्जरी और अन्य प्रक्रिया की आवश्यकता पड़ती है।

जैसे एंजियोप्लॉस्टी एक प्रक्रिया है, जिसमें अवरुद्ध धमनियों को खोला जाता है। वहीं हृदय के वॉल्व को ठीक करने के लिये हार्ट वॉल्व सर्जरी की जाती है ताकि हृदय के वॉल्व ठीक प्रकार से खुलें और बंद हों। बाईपास सर्जरी में शरीर के दूसरे भागों जैसे सीने, पैर व बांहों से रक्त नलिकाएं लेकर इन्हें हृदय की धमनी के स्थान पर लगा दिया जाता है। इस प्रकार से एक नये मार्ग का निर्माण कोरोनरी आर्टरी के अवरुद्ध भाग के आसपास कर दिया जाता है। इसके बाद रक्त नई लगाई गई नलिकाओं से बहने लगता है।

इन उपचार विधियों के साथ दूसरी स्वास्थ्य स्थितियों जैसे डाइबिटीज या हाई ब्लडप्रेशर का भी उपचार किया जाता है। 30-40 प्रतिशत रोगियों का उपचार इन सर्जरियों के द्वारा ही हो जाता है।

हृदय को जो क्षति पहुंच चुकी होती है, उसकी तो भरपाई नहीं की जा सकती, लेकिन उपचार से हार्ट फेल्योर के लक्षणों को दूर किया जा सकता है।

डॉ.अजय कौल प्रमुख: कार्डियोथोरेसिक एन्ड वैस्कुलर सर्जरी, हार्ट सेंटर,बीएलके हॉस्पिटल, नई दिल्ली

दुनियाभर में विभिन्न रोगों से होने वाली मौतों में हृदय रोगों से मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। पिछले कुछ सालों से भारत समेत दुनियाभर में दिल के रोगियों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है, जिसका एक प्रमुख कारण तनावपूर्ण जीवन-शैली और गलत खानपान है। बावजूद इसके, कुछ सुझावों पर अमल कर आप हृदय रोगों की रोकथाम कर सकते हैं। फिर भी अगर किसी कारणवश कोई हृदय रोग से ग्रस्त हो ही गया, तो अब उसका समय रहते कारगर इलाज संभव है। हृदय रोगों के विभिन्न पहलुओं पर विवेक शुक्ला ने की देश के कुछ मशहूर हृदय रोग विशेषज्ञों से बात...

दिल शरीर का महत्वपूर्ण अंग है। यह सारी उम्र थके

बगैर चलता रहता है और शरीर के हर अंग को

ऑक्सीजन व ऊर्जा पहुंचाता है। इसी तरह यह गंदे

पदार्र्थों को शरीर के बाहर पहुंचाने में भी मदद करता

है। कुछ सजगताएं बरतकर आप दिल को दुरुस्त रख

सकते हैं।

कारण

- उच्च रक्तचाप या हाई ब्लडप्रेशर।

- मोटापा।

- शारीरिक व्यायाम न करना।

- अत्यधिक वसायुक्त या चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्थ लेना, जिससे कालांतर में रक्त में कोलेस्टेरॉल की मात्रा बढ़ जाती है।

- डाइबिटीज या मधुमेह को समुचित रूप से नियंत्रित न कर पाना।

- धूम्रपान करना।

हम भारतीय विश्व के तमाम देशों की तुलना में कहीं ज्यादा हृदय रोग से पीडि़त होते हैं। इसके कुछ अन्य कारण भी हैं। पहला तो यही कि हम भारतीयों की जीन संरचना ऐसी है कि उन्हें कम उम्र में हाई ब्लडप्रेशर और अन्य हृदय रोगों का जोखिम कहीं ज्यादा बढ़ जाता है।

इसके अलावा भारतीय भोजन कुछ ज्यादा ही तैलीय (ऑयली) है।

ऐसे करें रोकथाम

कुछ बातों पर अमल कर आप हृदय रोग होने की आशंका को काफी हद तक कम कर सकते हैं...

धूम्रपान छोड़ें- धूम्रपान करने वाले लोगों को हार्ट अटैक होने का खतरा, धूम्रपान न करने वाले लोगों की तुलना में दोगुना होता है।

कोलेस्टेरॉल घटाएं- खान-पान में वसायुक्त खाद्य पदार्थ कम लेने और मीठे खाद्य पदार्थों को कम लेने से रक्त वसा (कोलेस्टेरॉल) के स्तर को नियंत्रित कर इसे कम किया जा सकता है। फलों और हरी सब्जियों का उपयोग नियमित रूप से करें। हाई फाइबर (रेशेदार खाद्य पदार्थ) युक्त खाद्य पदार्थों को आहार में स्थान दें।

हाई ब्लडप्रेशर को कंट्रोल करें- अगर आप हाई ब्लडप्रेशर से ग्रस्त हैं, तो डॉक्टर के परामर्श से दवाएं लेकर और अपनी दिनचर्या में सकारात्मक परिवर्तन (जैसे नियनित रूप से व्यायाम करना)करें।

तनाव को हावी न होने दें- तनाव दिल की सेहत का एक बड़ा दुश्मन है। सकारात्मक सोच के साथ तनाव को नियंत्रित करने का प्रयास करें।

मोटापे पर नियंत्रण- अपने वजन को नियंत्रित कर आप हृदय रोगों के जोखिम को कम कर सकते हैं।

ब्लड शुगर नियंत्रित रखें- जो लोग डाइबिटीज से पीडि़त हैं, उन्हें अपने डॉक्टर से परामर्श लेकर ब्लड शुगर को नियंत्रित रखना चाहिए।

ऐसा इसलिए, क्योंकि डाइबिटीज वाले व्यक्ति को हृदय रोग होने का जोखिम अन्य लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा बढ़ जाता है।

पारिवारिक इतिहास- अगर आपके परिवार में माता या पिता को हृदय रोग या डाइबिटीज की समस्या रही है, तो डॉक्टर से परामर्श लेकर एक अंतराल पर प्रीवेंटिव हेल्थ चेक-अप अवश्य करवाएं।

इलाज की आधुनिक तकनीकें

समय के साथ हृदय रोगों के इलाज में नई तकनीकें ईजाद हो रही हैं। इस कारण इलाज, आसान, अतीत की तुलना में कहीं ज्यादा कारगर और कम से कम पीड़ा देने वाला हो चुका है। मरीजों को अस्पताल में

कम वक्त तक रहना पड़ता है। सर्जरी के लिए छोटे चीरे लगाए जा रहे हैं, जो शीघ्र स्वास्थ्य लाभ में मददगार साबित हो रहे हैं।

हार्ट के वॉल्व को भी कृत्रिम रूप से तैयार किया जा रहा है। ये कृत्रिम वाल्व हूबहू कुदरती वॉल्व की तरह काम करते हैं। एंजियोप्लास्टी में भी नई तकनीक का उपयोग किया जा रहा है,जिसमें पैर की नस के बजाय

हाथ की नस के द्वारा अवरुद्ध धमनी को खोला जाता है।

कीहोल सर्जरी- नई तकनीकों की मदद से अब उन हृदय रोगों का भी इलाज किया जा सकता है, जो पहले लाइलाज समझी जाती थीं। सर्जरी अब की होल के द्वारा भी की जा रही है। इसका मतलब है शरीर पर कम

से कम निशान, कम दर्द और जल्दी घर जाने का अवसर।

रोबोटिक सर्जरी- यह सर्जरी भी हार्ट सर्जरी के क्षेत्र में एक बहुत उपयोगी तकनीक है। रोबोटिक सर्जरी में सर्जन रोबोटिक आर्म को नियंत्रित करता है। इसमें शरीर की प्रतिकृति (इमेज) काफी बढ़ी हुई

होती है। इस कारण सर्जरी ज्यादा सटीक होती है।

स्टेम सेल थेरेपी- जिन लोगों के हार्ट की पंपिंग क्षमता काफी कम हो चुकी है, उनके लिए स्टेम सेल थेरेपी आशा की किरण बनकर उभरी है।

वेंट्रीक्यूलर असिस्ट डिवाइस- जो लोग गंभीर हृदय रोगों के कारण जीवन-मरण के संकट से गुजर रहे हैं, उन मरीजों के लिए वेंट्रीक्यूलर असिस्ट डिवाइस काफी उपयोगी है। इस डिवाइस के जरिये इलाज के

अगले दौर में हार्ट ट्रांसप्लांट को अंजाम दिया जा सकता है।

डॉ.नरेश त्रेहन सीनियर हार्ट सर्जन,

चेयरमैन मेदांता दि मेडिसिटी, गुडग़ांव

उत्साहवद्र्धक हैं एंजियोप्लास्टी के नतीजे

हृदय (हार्ट) की धमनियों (आर्टरीज)में आए अवरोध(ब्लाकेज) को हृदय-धमनी रोग (कोरोनरी आर्टरी डिजीज संक्षेप में सीएडी) कहते

हैं। देश में कोरोनरी आर्टरी डिजीज के मामले दिनोंदिन बढ़ रहे हैं।

जब हृदय -धमनी में रुकावट या अवरोध उत्पन्न होता है, तो उसे

सर्जरी के बिना एंजियोप्लास्टी नामक चीर-फाड़ रहित तकनीक से

खोला जाने लगा है। बाईपास सर्जरी अपनी जगह है, खासकर उन

मरीजों में जहां तीनों धमनियों में रुकावट हो और एंजियोप्लास्टी संभव न हो, लेकिन

एंजियोप्लास्टी में पिछले कुछ सालों के दौरान बहुत ज्यादा उन्नति हुई है।

विकास का सिलसिला: 1990 में हमने एक विधि एथेरेक्टॅमी की शुरूआत की

थी। देश का यह पहला केस हरिद्वार में बी.एच.ई.एल. में काम करने वाले एक युवक

पर किया गया था। इस विधि के अंतर्गत धमनी के अंदर से वसा (फैट) निकाली जाती

है। यह विधि धमनी में अवरोध(ब्लॉक) को दूर करने के लिए अच्छी साबित हुई पर

अवरोध को दोबारा आने से नहीं रोक सकी। इसके अलावा जिस धमनी में पथरी

(कैल्शियम) बहुत जमा होता था, उसमें एथेरेक्टॅमी का प्रयोग करना संभव नहीं है।

सन् 1990 में हमने भारत में पहली बार स्टेंट का इस्तेमाल किया। सन् 2002 में

औषधि लिप्त स्टेंट ( जिन्हें हम ड्रग कोटेट स्टेंट कहते हैं) आने लगे। इस स्टेंट के

प्रचलन में आने से धमनी में अवरोध के दोबारा उत्पन्न होने के मामले जो पहले लगभग

20 प्रतिशत थे, वे 2 से 3 प्रतिशत तक ही सीमित रह गए। इसके बाद तो लगातार नए प्रकार के स्टेंट आने लगे। कुल मिला कर यह साबित हो गया कि स्टेंट्स हृदय की बीमारी से जूझने वाले लोगों के लिए वरदान साबित हुए। जो मरीज मधुमेह से ग्रस्त होते हैं, उनकी धमनियों में कैल्शियम का जमना एक सामान्य समस्या है। ऐसे लोगों को इलाज देने के लिए हमने 1991 में एक और नई तकनीक रोटाब्लेटर की शुरुआत की थी।

नवीनतम स्टेंट: स्टेंट विभिन्न धातुओं का बना स्प्रिंग होता है, जिसे एक छोटे से गुब्बारे पर रख कर धमनी में संकरे या जमाव के स्थान तक पहुंचा कर फुला दिया जाता है। यह प्रक्रिया जांघ या हाथ के जरिये लोकल एनेस्थीसिया देकर की जाती है।

इस प्रक्रिया के बाद दो से तीन से दिनों में मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है।

औषधि लिप्त स्टेंट लगने के बाद सबसे बडी सावधानी यह बरतनी होती है कि रक्त को पतला रखने वाली दवाओं को बंद नहीं करना पड़ता है।

बहरहाल,आजकल काफी अच्छे स्टेंट आने लगे हैं। जैसे एक स्टेंट ऐसा है, जिसमें तीन महीने बाद रक्त पतला करने की दवा को दो दवाएं लेने की बजाए एक दवा लेने की सलाह दी जा सकती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस स्टेंट में बॉयोएब्सॉर्बएबल पोलीमर होता है, जो तीन महीने में घुल जाता है। इसी तरह विभिन्न तरह के आधुनिक स्टेंट आ रहे हैं, जिनके चलते रक्त को पतला करने वाली दवाओं का प्रयोग कम हो

जाएगा।

कई बार यह देखने के लिए कि स्टेंट अच्छी तरह डाला गया है कि नहीं हम एक खास तकनीक का इस्तेमाल करते हैं जिसे आईवस कहते हैं। मेरी राय में एंजियोप्लास्टी के क्षेत्र में तरक्की जारी रहेगी और ऐसा लगता है कि आने वाले समय में एब्सॉर्बएबल

स्टेंट का इस्तेमाल बढ़ेगा और इसकी कीमत भी कम हो जाएगी।

डॉ.पुरुषोत्तम लाल सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट

चेयरमैन मेट्रो हार्ट इंस्टीट्यूट एन्ड मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स, नोएडा

महत्वपूर्ण है स्वस्थ जीवन-शैली

अनेक शोध व अनुसंधानों से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि जीवन-शैली की अनियमितता ही दिल का दौरा पडऩे और अन्य हृदय रोगों के होने का प्रमुख कारण

है। आधुनिक जीवनशैली तनावपूर्ण है और तनाव दिल की सेहत का एक बड़ा शत्रु है।

नियमित रूप से व्यायाम न करना, शारीरिक श्रम से कतराना और खान-पान में हरी सब्जियों और फलों के स्थान पर फास्ट फूड्स आदि को वरीयता देना आदि बातें गलत जीवन-शैली से ही संबंधित हैं। शारीरिक श्रम की कमी, आलस्य, मानसिक अशांति, चिंता, धूम्रपान, शराब और मादक पदार्थों के सेवन

से हम हृदय रोगों को बुलावा देते हैं।

सच तो यह है कि जीवन-शैली में समय रहते यदि

सकारात्मक परिवर्तन कर लिया जाए, तो हृदय रोग की

आशंकाएं 95 प्रतिशत तक कम हो सकती हैं।

आधुनिक तनावपूर्ण जीवन-शैली के कारण ही हार्ट अटैक या दिल का दौरा पडऩे के मामले बढ़ते जा रहे हैं। सच तो यह है कि आचार-विचार, विहार, आहार और जीवन-शैली में सकारात्मक परिवर्तन कर लगभग 96 प्रतिशत लोग दिल के दौरे से अपना बचाव कर सकते हैं। याद रखें, उपचार से रोग निवारण उत्तम है।

आनुवांशिक कारण

देश में हृदय रोग आनुवंशिक कारणों से अधिक होता है। हृदय रोग की तीव्रता और उसकी उग्रता का मुख्य कारण मधुमेह, एच.डी.एल. कोलेस्टेरॉल की कमी और एलडीएल कोलेस्टेरॉल की अधिकता है।

हृदय रोग के प्रारंभिक लक्षणों की अनदेखी करने पर रोग तीव्र और उग्र हो जाता है और अचानक ही दिल का दौरा प्राणघातक हो सकता है। धमनी में लचीलापन कम होना या धमनी के अवरुद्ध होने से रक्त का प्रवाह अचानक थम जाता है। रोग की तीव्रता के कारण हृदय की मांसपेशी निर्जीव हो जाती है। फलस्वरूप हृदय की रक्त को पंप करने की क्षमता घटकर 25 प्रतिशत रह जाती है। एंजियोग्राफी, बाईपास सर्जरी या एंजियोप्लास्टी जैसे उपचार खर्चीले हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि देश की ज्यादातर आबादी की आर्थिक

स्थिति अच्छी नहीं है। इसलिए अधिकतर लोग उपर्युक्त

उपचार पद्धतियों से इलाज कराने में असमर्थ है। तिस पर केवल 5 प्रतिशत भारतीय ही अपने स्वास्थ्य का बीमा करवाते हैं।

हृदय रोग से बचाव

नियमित शारीरिक श्रम और व्यायाम से दिल के दौरे की संभावना लगभग 12 प्रतिशत तक कम हो सकती है।

मधुमेह और दिल का दौरा मधुमेह के लगभग 25 से 50 प्रतिशत रोगियों को अचानक किसी भी लक्षण के बगैर दिल का दौरा पड़ता है। कम आयु के मधुमेह रोगियों में दिल के दौरे की आशंका अधिक होती

है। इसी तरह 45 वर्ष से कम आयु के मधुमेह रोगी में दिल के दौरे का खतरा लगभग 14 गुना अधिक होता है। वहीं 45 वर्ष से 64 वर्ष की आयु के मधुमेह रोगियों में यह खतरा लगभग तीन गुना अधिक होता है।

यदि एक से अधिक खतरे के कारण हैं, तो दिल के दौरे की उतनी अधिक संभावना बढ़ जाती है। यदि मधुमेह का रोगी धूम्रपान करता है और वह उच्च रक्तचाप से भी ग्रस्त है, तो दिल का दौरा पडऩे की संभावना लगभग 16 गुना अधिक होती है। यदि एल.डी.एल. कोलेस्टेरॉल (यह दिल की सेहत के लिए नुकसानदेह है) अधिक है और एच.डी.एल. कोलेस्टेरॉल (इसे शरीर के लिए अच्छा या गुड कोलेस्टेरॉल भी कहा जाता है) कम है, तो दिल का दौरा पडऩे की

संभावना कई गुना बढ़ जाती है। यदि रोगी मोटापे से ग्रस्त है, तो दिल के दौरे की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

डॉ. अनिल चतुर्वेदी

वरिष्ठ चिकित्सा परामर्शदाता

जीवन-शैली रोग एवं प्रीवेंटिव हेल्थ विशेषज्ञ

पुष्पावती सिंघानिया हॉस्पिटल, नई दिल्ली


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