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टीबी का ज्यादा डर

दो सप्ताह से अधिक वक्त तक खांसी का बने रहना टीबी का प्रमुख लक्षण हो सकता है। समय पर जांच और नियमित दवाओं का सेवन इसके उपचार के लिए बहुत जरूरी है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 06 Apr 2016 02:52 PM (IST)Updated: Wed, 06 Apr 2016 03:02 PM (IST)
टीबी का ज्यादा डर

विश्व में सबसे ज्यादा ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) के मरीज भारत में हैं। विभिन्न शोधों के अनुसार टीबी और डाइबिटीज में परस्पर संबंध है। डाइबिटीज टीबी के खतरे को तीन गुना बढ़ा देती है। दो सप्ताह से अधिक वक्त तक खांसी का बने रहना टीबी का प्रमुख लक्षण हो सकता है। समय पर जांच और नियमित दवाओं का सेवन इसके उपचार के लिए बहुत जरूरी है। इलाज में लापरवाही बरती गई तो एमडीआर व एक्सडीआर जैसी जटिल टीबी सामने आ सकती है।

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महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि डाइबिटीज का प्रसार विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर हो रहा है। विकासशील देशों में पहले से ही टीबी से ग्रस्त मरीजों की संख्या अधिक है। डाइबिटीज से प्रभावित टॉप 10 देशों में चीन, भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और रूस में टीबी के रोगियों की संख्या सर्वाधिक है। इन दोनों ही रोगों के नियंत्रण और रोकथाम के लिए एक सधी रणनीति अपनाए जाने की आवश्यकता है।

सार्थक पहल

वल्र्ड डाइबिटीज फाउंडेशन, डेनमार्क और द यूनियन के सहयोग से ‘जागरण पहल’ टीबी और डाइबिटीज के संबंध में उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में जागरूकता कार्यक्रम का क्रियान्यवन कर रहा है। इस अभियान का यह प्रयास है कि टीबी और मधुमेह के संबंध में शहरी लोगों के साथ ग्रामीण लोगों को जागरूक करने पर जोर दिया जा रहा है। टीबी और डाइबिटीज के परस्पर सम्बन्ध के कारण इसके उपचार और परिणाम के प्रभाव के विषय में डॉक्टर, हेल्थ एक्सपर्ट और स्वास्थ्य सेवाओं से सम्बद्ध अन्य प्रोफेशनल्स की जिम्मेदारियां कहीं ज्यादा बढ़ जाती हैं। इस संदर्भ में छात्रों को भी जागरूक बनाए जाने की जरूरत है। तभी इन दोनों बीमारियों का सही तरीके से उपचार और प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सकेगा।

टीबी और डाइबिटीज पर अंकुश लगाने के लिए सकारात्मक नीतियों पर समुचित रूप से अमल करना होगा। तभी इन रोगों को नियंत्रित करने के लिए अनुकूल माहौल बनेगा। इस दिशा में हमें काफी उत्साहजनक, आशातीत और

सकारात्मक परिणाम मिले हैं। हमारा प्रयास है कि लोगों को टीबी और डाइबिटीज से बचने और उसका सही प्रबंधन करने के लिए जागरूक किया जाए। दुनिया इस बात का साक्षी है कि किस तरह 1990 के दशक में उपसहारा मरूस्थल और एशियाई देशों में एचआईवी के कारण टीबी के रोगियों की संख्या बढ़ी थी। टीबी और एड्स महामारी के संभावित प्रभाव को कम करने के लिए धीमी गति से काम करने से बात नहीं बनेगी। धीमी गति से नियंत्रण की प्रक्रिया से मरीजों की स्थिति जहां बदतर होती है, वहीं पीड़ित व्यक्ति के बीमार पड़ने से आर्थिक स्तर पर भी बहुत हानि होती है।

टीबी और मधुमेह के बढ़ते मामलों पर नियंत्रण के लिए इस संदर्भ में सतत प्रयास की आवश्यकता है। इन रोगों के विस्तार पर रोक लगाने के लिए सरकार, नागरिक, समाज और सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसियों को लगातार सक्रिय होना पड़ेगा। तभी ये दोनों रोग भविष्य में महामारी का रूप नहीं ले सकेंग


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