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जटिलताओं से डरें नहीं

तमाम लोगों में शुगर स्तर के बढ़ने के बावजूद उन्हें कोई तकलीफ महसूस नहीं होती। अक्सर तकलीफ तब शुरू होती है, जब जटिलताएं होनी शुरू हो जाती हैं।

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 14 Apr 2016 04:00 PM (IST)Updated: Thu, 14 Apr 2016 04:08 PM (IST)
जटिलताओं से डरें नहीं

मधुमेह (डाइबिटीज) की जानकारी अक्सर लोगों को बहुत देर से हो पाती है। ऐसा इसलिए,क्योंकि तमाम लोगों में शुगर स्तर के बढ़ने के बावजूद उन्हें कोई तकलीफ महसूस नहीं होती। अक्सर तकलीफ तब शुरू होती है, जब जटिलताएं होनी शुरू हो जाती हैं। आइए जानते हैं इन जटिलाओं को...

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नसों में कमजोरी: अनियंत्रित मधुमेह की स्थिति में नसों में कमजोरी आना शुरू हो जाता है। शुरुआत में तो यह स्थिति मात्र मधुमेह के अपेक्षित नियंत्रण से दूर हो जाती है, किन्तु अधिक समय बीत जाने पर मधुमेह नियंत्रण के साथ-साथ इसका अलग से इलाज कराना भी आवश्यक हो जाता है।

किडनी पर असर: अधिकांश लोगों में पांच साल या इससे अधिक समय तक डाइबिटीज के अनियंत्रित रहने से गुर्दे (किडनी) पर प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है। ऐसा होने पर दोनों किडनी आवश्यक पदार्थ यानी प्रोटीन आदि को शरीर में रोकना बंद कर देती हैं। इस कारण पेशाब में प्रोटीन जाना शुरू हो जाता है। आरंभिक अवस्था में शुगर और हाई ब्लडप्रेशर को अच्छी तरह नियंत्रित करने मात्र से प्रोटीन जाने की समस्या पर काबू पाया जा सकता है, परन्तु जब

प्रोटीन 300 मिग्रा. प्रतिदिन या इससे अधिक मात्रा में पेशाब में जाना शुरू हो जाती है, तो इसे पूर्णतया नियंत्रित करना कठिन हो जाता है इसके बावजूद डाइबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर के अच्छे नियंत्रण से इसकी मात्रा कम की जा सकती है और किडनी के फेल होने से रोका जा सकता हैं। कई मरीजों को पहली बार जब डाइबिटीज का पता लगता है, तब तक वह प्रोटीन की समस्या से ग्रस्त हो चुके होते हैं।

अन्य प्रभाव: अनियंत्रित डाइबिटीज का प्रतिकूल प्रभाव सक्रिय दाम्पत्य जीवन की क्षमता पर भी पड़ता है।डाइबिटीज और हाई ब्लडप्रेशर को नियंत्रित कर लेने मात्र से इस समस्या में राहत मिलती है।

आंखों पर असर: डाइबिटीज के दुष्प्रभावों में एक बहुत महत्वपूर्ण है रेटिनोपैथी यानी आंखों के परदे पर

पड़ने वाला दुष्प्रभाव। इस समस्या में मरीज को धुंधला दिखाई देना शुरू हो जाता है। जांच करने पर रेटिना पर

कई बार रक्त के धब्बे भी दिखाई देते हैं। ऐसी स्थिति में लेजर थेरेपी की भी आवश्यकता पड़ती है, जो रेटिना

विशेषज्ञ से ही कराना चाहिए। अधिक महत्वपूर्ण है कि इस स्थिति में पहुंचने से बचा जाए, जो अपेक्षित शुगर

नियंत्रण से संभव है। साल में एक बार आंख के पर्दे की रेटिना विशेषज्ञ से जांच जरूर करानी चाहिए।

मधुमेह वालों को मोतियाबिंद भी अधिक होता है। मोतियाबिन्द के बाद डाइबिटीज अन्धता का विश्व में

दूसरा सबसे बड़ा कारण है।

ऐसे करें बचाव

’ ब्लड शुगर की समय-समय पर जांच करा कर देखें कि वह नियंत्रित है या नहीं।

’ प्रत्येक तीन माह पर ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन यानी एचबीए1सी जरूर कराएं, जो 7 के नीचे रहना

चाहिए।

’ समय-समय पर पैरों की जांच करें।

’ वजन को नियंत्रित रखें।

’ सप्ताह में 5 दिन व्यायाम करें।

डॉ.अनुज माहेश्वरी प्रोफेसर एण्ड हेड इन्टरनल मेडिसिन

बी.बी.डी. यूनिवर्सिटी, लखनऊ


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