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क्यों उठ रहा है दिमाग में भूकंप

बीते दिनों नेपाल और भारत में आए भूकंप के बाद तमाम लोग डॉक्टरों और मनोरोग विशेषज्ञों के पास गए। इनमें से ज्यादातर लोगों की प्रमुख शिकायत थी कि भूकंप के गुजर जाने के बाद वे बेचैनी महसूस कर रहे हैं...। किसी का कहना था कि उन्हें ढंग से नींद नहीं

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 19 May 2015 11:57 AM (IST)Updated: Tue, 19 May 2015 12:05 PM (IST)
क्यों उठ रहा है दिमाग में भूकंप

बीते दिनों नेपाल और भारत में आए भूकंप के बाद तमाम लोग डॉक्टरों और मनोरोग विशेषज्ञों के पास गए। इनमें से ज्यादातर लोगों की प्रमुख शिकायत थी कि भूकंप के गुजर जाने के बाद वे बेचैनी महसूस कर रहे हैं...। किसी का कहना था कि उन्हें ढंग से नींद नहीं आ रही है कि पता नहीं कब भूकंप के झटके महसूस होने लगे। किसी-किसी का कहना था कि उन्हें अभी भी कभी-कभी यह महसूस होता है कि जमीन हिल रही है...आदि।

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पोस्ट ट्रामेटिक स्ट्रेस डिस्ऑर्डर

इस संदर्भ में नई दिल्ली के वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. अचल भगत कहते हैं कि मेरे पास उपर्युक्त समस्याओं के बाबत लोग आए। असल में दो तरह के लोग होते हैं, एक तो वे जिन्हें भूकंप

के दौरान जान-माल की क्षति हुई। ऐसे लोग एक मनोरोग- पोस्ट ट्रामेटिक स्ट्रेस डिस्आर्डर- से ग्रस्त हो सकते हैं। ऐसे लोगों में घबराहट बहुत ज्यादा होती है। उनके दिमाग में पुरानी घटनाओं का फ्लैश बैक चलता रहता है।

बचें 'कैटेस्ट्रॉफिक थिंकिंग- से

जिन लोगों का भूकंप से नुकसान नहीं हुआ है और वे तब भी आशंकाग्रस्त व अत्यधिक भयग्रस्त हैं, तो उनकी इस सोच को मनोचिकित्सकीय भाषा में कैटेस्ट्रॉफिक थिंकिंग (हादसे से संबंधित

सोच) कहा जाता है। इस संदर्भ में नई दिल्ली के एक अन्य वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. गौरव गुप्ता कहते हैं कि भूकंप के बाद तमाम लोगों के मन में डर अपनी जड़ें जमा लेता हैं। धीरे-धीरे यह भय एंग्जाइटी (बेचैनी) में बदल जाता है।

इलाज

- कोई व्यक्ति भूकंप के गुजरने के बाद भी बेचैनी महसूस कर रहा है, तो वह मनोरोग विशेषज्ञ से काउंसलिंग व दवा ले।

- ध्यान दूसरी ओर आकर्षित करें। किसी हॉबी में मशगूल हों।

- मन को बहलाने का प्रयास करें। ईश्वर का ध्यान करें। इससे आपका मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है, मन की बेचैनी कम

होती है और आप इस सत्य को समझने लगते हैं कि भगवान की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती। इसलिए स्वयं को नकारात्मक सोच के दायरे में रखना अपना ही नुकसान करना है।

प्रस्तुति: विवेक शुक्ला


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