अब पार्किन्संस से न हो परेशान
इस रोग के मामले वृद्ध लोगों में कहींज्यादा सामने आते हैं, लेकिन आधुनिक अध्ययनों के अनुसार पार्किन्संस बीमारी न सिर्फ बुजुगरें में होती है बल्कि अब इसकी चपेट में प्रौढ़ व्यक्ति (मिडिल एज्ड पर्सन) भी आने लगे हैं। इस रोग को कैसे किया जा सकता है नियंत्रित..? महिलाओं की तुलना म्
इस रोग के मामले वृद्ध लोगों में कहींज्यादा सामने आते हैं, लेकिन आधुनिक अध्ययनों के अनुसार पार्किन्संस बीमारी न सिर्फ बुजुर्गो में होती है बल्कि अब इसकी चपेट में प्रौढ़ व्यक्ति (मिडिल एज्ड पर्सन) भी आने लगे हैं। इस रोग को कैसे किया जा सकता है नियंत्रित..?
महिलाओं की तुलना में पुरुषों में इस रोग के मामले अब कहीं ज्यादा सामने आ रहे हैं। 'जर्नल ऑफ न्यूरोलॉजी, न्यूरोसर्जरी एंड साइकिएट्री' के अनुसार महिलाओं की तुलना में पुरुषों को इस बीमारी से ग्रस्त होने की आशंका 1.5 गुना ज्यादा होती है।
कारण
कुछ अध्ययन यह दर्शाते हैं कि महिलाओं में इस बीमारी के कम होने का कारण एस्ट्रोजन हार्मोन का स्रावित होना है। इसी वजह से महिलाओं में ये बीमारी कम होती है। हालांकि कुछ बीमारियों में स्त्री या पुरुष होने का भी असर पड़ता है। कई बीमारियां जैसे कोरोनरी आर्टरी डिजीज, अन्य हृदय रोग और ऑस्टियोपोरोसिस आदि महिलाओं व पुरुषों में अलग-अलग अनुपातों में पाये जाते हैं। हाल में हुए कुछ अध्ययनों से यह पता चला है कि पार्किन्संस की बीमारी भी इसी श्रेणी में आती है।
लक्षण
पार्किन्संस दिमाग से संबंधित बीमारी है। इसके लक्षण धीरे-धीरे प्रकट होते हैं, जिसे लोग शुरुआत में नजरअंदाज कर देते है..
-हाथ, बांह, टांगों, मुंह और चेहरे पर कपकपाहट होना।
-जोड़ों में कठोरता आना।
-विविध शारीरिक व मानसिक गतिविधियों में धीमापन आना।
-शरीर व मस्तिष्क के मध्य तालमेल बिगड़ना।
-रोग की गंभीर यानी एडवांस स्टेज में पीड़ित व्यक्ति को चलने-फिरने, बात करने और दूसरे छोटे-छोटे काम करने में दिक्कत महसूस होती है।
डाइग्नोसिस
इस रोग का जांचों के आधार पर पता लगा पाना काफी मुश्किल है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पार्किन्संस से संबंधित कोई भी ऐसा टेस्ट नहीं है, जिसके होने के बाद यह पता चल सके कि अमुक शख्स इस रोग से ग्रस्त है। आमतौर पर डॉक्टर पार्किन्संस के लक्षणों और रोगी की हालत देखकर ही इस रोग के बारे में पता लगाते हैं।
इलाज
सच तो यह है कि पार्किन्संस बीमारी का अभी तक कोई एक सुनिश्चित या विशिष्ट इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। पारंपरिक तौर पर माना जाता है कि दवाओं से पार्किन्संस बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। दवाओं के कारण शरीर पर दूसरे साइड इफेक्ट भी पड़ने लगते हैं। इसके अलावा जैसे-जैसे बीमारी बढ़ने लगती है, दवाओं का असर भी कम होने लगता है। इस कारण इस रोग के लक्षणों पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है।
डीप ब्रेन स्टीमुलेशन
इस तकनीक को संक्षेप में 'डीबीएस' कहते हैं, जो पार्किन्संस के इलाज का बेहतर विकल्प है। इस तकनीक के अंतर्गत दिमाग के कुछ भागों को 'लीड' के द्वारा तरंगित किया जाता है। ये लीड पेसमेकर से जुड़ी होती है जो लगातार दिमाग की कोशिकाओं को तरंगित करती है। दिमाग की इन कोशिकाओं को सुचारु रूप से सक्रिय (स्टीमुलेट) करने से वे शरीर के अंगों को कंट्रोल करने में मदद करती हैं।
जिन रोगियों पर विभिन्न दवाओं का असर कम होने लगता है या फिर दवाओं से उनमें साइड इफेक्ट उत्पन्न होने लगते हैं, तो इस स्थिति में ऐसे रोगियों के लिए डीबीएस थेरेपी कारगर साबित होती है।
जरूरी है जागरूकता
इस बीमारी के संदर्भ में आम तौर पर लोग जागरूक नहींहैं। इसलिए इसके बारे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जानकारी देना जरूरी है। विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा इस रोग से पीड़ित व्यक्तियों और उनके अभिभावकों की शंकाओं को दूर करना आवश्यक है। तभी समय रहते पीड़ित व्यक्ति इलाज करवाकर सक्रिय व सामान्य जिंदगी जी सकते हैं।
(डॉ.विनय गोयल सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट)