मोटापे की मार का सटीक उपचार
मोटापा मधुमेह(डाइबिटीज) कैंसर और हृदय रोग होने के जोखिम को बढ़ा देता है। इसके अलावा उच्च रक्तचाप(हाई ब्लडप्रेशर), ब्लड कोलेस्टेरॉल का बढ़ना, गुर्दा रोग, अनियमित माहवारी,
मोटापा मधुमेह(डाइबिटीज) कैंसर और हृदय रोग होने के जोखिम को बढ़ा देता है। इसके अलावा उच्च रक्तचाप(हाई ब्लडप्रेशर), ब्लड कोलेस्टेरॉल का बढ़ना, गुर्दा रोग, अनियमित माहवारी, बांझपन और जोड़ों के दर्द की समस्याओं का जोखिम मोटापे के कारण बढ़ जाता है। अगर किसी व्यक्ति का बीएमआई 23 से ज्यादा हो, तो 90 फीसदी लोगों में मधुमेह (डाइबिटीज) टाइप-2 की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।
मधुमेह का भयानक पहलू
पिछले दो दशकों में दुनिया भर में मधुमेह रोगियों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। सन् 2010 में लगभग 150-220 मिलियन लोग इस बीमारी से पीडि़त थे। यह संख्या सन् 2025 तक लगभग दोगुनी होने की आशंका है। आमतौर पर मधुमेह टाइप-2 की समस्या मोटापा और शारीरिक निष्क्रियता से सम्बद्ध है। इस रोग में शरीर इंसुलिन पैदा करता है, लेकिन वह रक्त शर्करा(ब्लड शुगर) को नियंत्रित करने के लिए इसे ठीक से उपयोग करने में सक्षम नहीं होता। शुरुआत में शरीर में सामान्य रक्त शर्करा अधिक रहती है, लेकिन समय के साथ शरीर रक्त-शर्करा के सामान्य स्तर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने की क्षमता खोने लगता है।
मोटापा और कैैंसर
कैंसर, मौत के प्रमुख कारणों में से एक है। एक अध्ययन से पता चलता है कि मोटे लोगों में अग्नाशय (पैन्क्रियाज),जिगर, किडनी, आमाशय और पित्ताशय कैंसर से संबंधित मामले ज्यादा पाये जाते हैं।
मोटापे के कारण कैंसर संबंधी जोखिम बढ़ जाता है। जैसे मोटे लोगों में खाने की नली का कैंसर होने का जोखिम सामान्य वजन वाले लोगों की तुलना में 200 फीसदी अधिक रहता है। इसी तरह किडनी कैंसर 84 फीसदी, पेट के कैंसर 76 फीसदी, स्तन कैंसर 50 फीसदी और गर्भाशय के कैंसर होने का खतरा 200 से 400 फीसदी अधिक रहता है।
इलाज: बैरिएट्रिक सर्जरी
जब नियमित व्यायाम करने, खान-पान में संयम बरतने और अन्य उपाय करने के बाद भी मोटापा कम नहीं होता, तो इस स्थिति में बैरिएट्रिक सर्जरी काफी कारगर साबित होती है।
बैरिएट्रिक सर्जरी के बाद मधुमेह काफी हद तक नियंत्रण में आ जाता है।
बैरिएट्रिक सर्जरी के लिए व्यक्ति का चयन करने के लिए कुछ निश्चित दिशा-निर्देश होते हैं, जो इस प्रकार हैं...
-बीएमआई 35 किग्रा. / मीटर 2 से अधिक हो।
-बीएमआई 32 किग्रा. / मीटर 2 से अधिक हो। इसके अलावा
मोटापे से संबंधित बीमारियों- जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, बढ़ा हुआ कोलेस्टेरॉल, जोड़ों का दर्द और अनिद्रा की समस्या हो।
-आहार और व्यायाम की तरह गैर-शल्य(नॉन सर्जिकल) प्रक्रियाएं विफल हो चुकी हों।
सबसे प्रचलित बैरिएट्रिक सर्जरी- स्लीव गैस्ट्रेक्टॅमी है...
स्लीव गैस्ट्रेक्टॅमी
इस सर्जरी में पेट का लगभग 60 फीसदी भाग निकाल दिया जाता है। इस कारण पेट एक केले का आकार ले लेता है। इस छोटे आकार के पेट के साथ खाने की मात्रा में कमी आती है और भूख उत्पन्न करने वाले हार्मोन्स में भी कमी आती है। इस कारण व्यक्ति के कम मात्रा में भोजन खाने पर भी संतुष्टि बनी रहती है।
गैस्ट्रिक बाईपास
इस सर्जरी के अंतर्गत आमाशय (स्टमक) की थैली बनायी जाती है, जिसकी संग्रह करने की क्षमता 40 से 50 एम.एल.होती है। छोटी आंत के आखिरी भाग को इस थैली से जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार जो खाना व्यक्ति खाता है, वह आमाशय के बड़े भाग और छोटी आंत के शुरुआती भाग को बाईपास करते हुए छोटी आंत के आखिरी भाग में सीधे तौर पर पहुंच जाता है। इस वजह से अनेक लाभप्रद हार्मोन्स का स्राव होता है। इसके परिणामस्वरूप डाइबिटीज नियंत्रित हो जाती है और पाचन क्रिया इस तरह से बदलती है कि व्यक्ति का वजन धीमे-धीमे कम होने लगता है।
जोखिम भरी सर्जरी नहीं
बैरिएट्रिक सर्जरी के बारे में आम धारणा है कि यह बहुत जटिल प्रकिया है और जोखिम भरी सर्जरी है, लेकिन इस सर्जरी में जीवन के लिए खतरा मात्र 0.1 से 0.2 फीसदी ही होता है। इसके विपरीत गर्भाशय के ऑपरेशन में 0.4 फीसदी, टांग के ऑपरेशन में 0.8, गॉल ब्लैडर के ऑपरेशन में 0.9 और घुटनों / जोड़ों के ऑॅपरेशन में 0.2 फीसदी खतरा होता है। बैरिएट्रिक सर्जरी, सुंदरता बढ़ाने के लिए नहीं की जाती। यह सच है कि इस सर्जरी के बाद जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
(डॉ.दीप गोयल
सीनियर बैरिएट्रिक एन्ड गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ऑन्को सर्जन