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अर्थराइटिस: हर मामले में प्रत्यारोपण जरूरी नहीं

सामान्य भाषा में गठिया या अर्थराइटिस का अर्थ जोड़ों में दर्द व सूजन है। गठिया का प्रयोग जोड़ों की किसी भी बीमारी के लिये किया जाता है। अर्थराइटिस के प्रकार अर्थइटिस के 100 से भी अधिक प्रकार हैं और प्रत्येक का इलाज अलग-अलग तरीके से किया जाता है। इनमें से एक ऑस्टियो अर्थराइटिस (ओ

By Edited By: Published: Tue, 20 May 2014 12:36 PM (IST)Updated: Tue, 20 May 2014 12:36 PM (IST)
अर्थराइटिस: हर मामले में प्रत्यारोपण जरूरी नहीं

सामान्य भाषा में गठिया या अर्थराइटिस का अर्थ जोड़ों में दर्द व सूजन है। गठिया का प्रयोग जोड़ों की किसी भी बीमारी के लिये किया जाता है।

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अर्थराइटिस के प्रकार

अर्थइटिस के 100 से भी अधिक प्रकार हैं और प्रत्येक का इलाज अलग-अलग तरीके से किया जाता है। इनमें से एक ऑस्टियो अर्थराइटिस (ओए) है। ऑस्टियो अर्थराइटिस होने का मुख्य कारण बढ़ती उम्र के साथ जोड़ों का विकारग्रस्त होना है। देशवासियों में मुख्य रूप से ऑस्टियो अर्थराइटिस की समस्या घुटनों में पायी जाती है। घुटनों के अतिरिक्त कूल्हे, पीठ और हाथ के जोड़ों पर भी इसका असर पड़ता है। लोगों में यह गलत धारणा व्याप्त है कि अर्थराइटिस वंशानुगत होती है।

यह भी जानें

जिन व्यक्तियों के पैर धनुषाकार (बो लेग) होते हैं उनमें घुटनों की ऑस्टियो अर्थराइटिस जल्दी हो जाती है। पैरों के इस तिरछेपन को रोगी स्वयं शीशे के सामने खड़े होकर देख सकता है।

प्रारंभिक इलाज

प्रारंभिक अवस्था में मोटापे से ग्रस्त लोगों को वजन में कमी के प्रयास करने चाहिए। इस अवस्था में दवा के द्वारा दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है।

व्यायाम का महत्व: घुटनों की आस्टियो अर्थराइटिस के लिए साइकिल चलाना फायदेमंद है। योगाभ्यास रोगियों के लिये नुकसानदायक नहीं है, लेकिन कुछ यौगिक क्रियाएं या योगासन ऐसे हैं, जिनसे जोड़ों पर अधिक दबाव पड़ता है। इस संदर्भ में अनुभवी विशेषज्ञ डॉक्टर व योग विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए।

सिंकाई: विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लेकर सिंकाई करना लाभप्रद है।

कब जरूरी है ऑपरेशन

दर्दनाशक दवाएं अधिक समय तक नहीं खानी चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि इससे गुर्दे, जिगर व हड्डियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बहरहाल उपुर्यक्त उपायों से दर्द से राहत न मिलने की स्थिति में पैरों के तिरछेपन को ऑपरेशन द्वारा सीधा करके दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है।

इन स्थितियों में ऑपरेशन के लिए निर्णय लेना लाभप्रद है..

-घुटनों में लगातार दर्द बने रहने की स्थिति में दर्दनिवारक दवाओं की प्राय: आवश्यकता पड़ना।

-पीड़ित व्यक्ति के घुटनों के बीच की दूरी का बढ़ना, जिसको वे स्वयं भी शीशे में देख सकते हैं।

-दर्द के कारण व्यक्तिगत, सामाजिक और व्यावसायिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना।

प्रक्रिया

इस ऑपरेशन में सामने की ओर से लगभग चार इंच के चीरे से टांग की मुख्य हड्डी टिबिया को सीधा करके एक प्लेट लगा दी जाती है, जिससे पैर अपनी सामान्य आकृति में आ जाता है। रोगी को दो-तीन दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ता है। कुछ समय के नियमित अंतराल पर रोगी को नियमित चिकित्सकीय सलाह के लिए आना पड़ता है और लगभग दस से बारह सप्ताह में किसी सहारे के बगैर वह चल सकता है। 6 माह बाद दूसरे घुटने का ऑपरेशन किया जा सकता है।

ध्यान दें

अगर घुटने के कार्टिलेज लगभग पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं,तो उस स्थिति में पूर्ण घुटना प्रत्यारोपण ही एकमात्र कारगर विकल्प शेष रहता है।

(डॉ.संजय रस्तोगी वरिष्ठ अस्थि व जोड़ रोग विशेषज्ञ)


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