सीओपीडी समय रहते हो जाएं सजग
सर्दियों के मौसम में सी.ओ.पी. डी. के मामले काफी बढ़ जाते हैं और जो लोग पहले से ही इस मर्ज से ग्रस्त हैं, उनकी समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं।
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सी.ओ.पी.डी.) फेफड़े की एक गंभीर बीमारी है, जिसे आम भाषा में क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस भी कहते हैं। सर्दियों के मौसम में सी.ओ.पी. डी. के मामले काफी बढ़ जाते हैं और जो लोग पहले से ही इस मर्ज से ग्रस्त हैं, उनकी समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं। बावजूद इसके, अगर कुछ सजगताएं बरती जाएं, तो इस रोग की रोकथाम संभव है और अगर कोई व्यक्ति इस रोग से ग्रस्त हो भी जाए, तो उसका समय रहते कारगर इलाज संभव है...
ओपीडी प्रमुख रूप से धूम्रपान बीड़ी, सिगरेट, हुक्का और चिलम पीने वालों को होता है। इसके अतिरिक्त ऐसे लोग जो धूल, धुआं और प्रदूषित वातावरण के प्रभाव में रहते हैं, उन्हें भी इस बीमारी के होने का खतरा होता है। प्राय: यह बीमारी 30 से 40 वर्ष की आयु के बाद शुरू होती है। इस बीमारी का प्रकोप सर्दी के मौसम में बढ़ जाता है।
मर्ज का दूसरा प्रकार
सी.ओ.पी.डी. को अक्सर धूम्रपान करने वालों से संबंधित रोग माना जाता है। यह बात अपनी जगह सत्य भी है, लेकिन अब नॉन स्मोकिंग सी.ओ.पी.डी. (धूम्रपान के अलावा अन्य कारणों से होने वाला यह मर्ज) विकासशील देशों में एक बड़ा स्वास्थ्य संबंधी मुद्दा बन चुका है। हाल के अध्ययनों मे पता चला है कि ऐसे अनेक जोखिम भरे कारक हैं, जो धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों में भी इस रोग के होने का जोखिम बढ़ाते हैं।
दुनिया भर की तकरीबन आधी जनसंख्या जैव ईंधन (बॉयोमास फ्यूल) के धुएं के संपर्क में रहती है, जिसका उपयोग खाना बनाने के लिए किया जाता है। इसलिए, ग्रामीण इलाकों में जैव ईंधन से उत्पन्न धुएं और प्रदूषण के संपर्क में आना भी सी.ओ.पी.डी. का मुख्य कारण है।
जैव ईंधन का दुष्प्रभाव
देश के शहरी भागों के 32 प्रतिशत घरों में अब भी जैव इंधन से चलने वाले चूल्हे का उपयोग होता है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या खाना बनाने के लिए जैव ईंधन जैसे लकड़ी, कंडे या उपले, अंगीठी और केरोसीन ऑयल का प्रयोग करती है।
विकासशील देशों में सी.ओ.पी.डी. से होने वाली करीब 50 प्रतिशत मौतें जैव ईंधन के धुएं के कारण होती है। इस पचास प्रतिशत मौतों में भी 75 प्रतिशत मौतें महिलाओं की होती हैं। जैव या बायोमास ईंधन-जैसे लकड़ी ,पशुओं का गोबर, फसल के अवशेष आदि सी.ओ.पी.डी. की समस्या उत्पन्न कर सकते हैं। ग्रामीण इलाकों में महिलाएं और लड़कियां रसोईघर में अधिक समय बिताती हैं।
वायु प्रदूषण और बीमारी
वायु प्रदूषण की मौजूदा स्थिति ने भी शहरी इलाकों में सी.ओ.पी.डी. के खतरे को बढ़ा दिया है। वायु प्रदूषण की दृष्टि से दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित 20 शहरों में से 10 भारत में हैं।
अन्य कारण भी हैं
सी.ओ.पी.डी. का एक बड़ा जोखिम व्यवसायगत भी है। देश में कई व्यवसाय जैसे भट्टी पर चाय बनाने वाले और छोटा ढाबा चलाने वाले,आरा मशीन पर काम करने वाले,चिमनी वाले कारखानों में काम करने वाले लोग और ईंट भ_ों पर काम करने वाले लोगों को सी. ओ.पी.डी. होने का खतरा ज्यादा होता है।
मॉस्क्विटो रिपेलेंट से रहें सजग
एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार आपको यह जानकर हैरानी होगी कि एक मॉस्क्विटो क्वाइल से 100 सिगरेट जितना धुआं निकलता है और 50 सिगरेट जितना फॉरमलडीहाइड नामक केमिकल निकलता है। हम भले ही नियमित धूम्रपान नहीं करते हों, लेकिन अनचाहे ही हम अपनी सेहत से समझौता करने वाले उत्पादों (मॉस्क्विटो रिपेलेंट क्वाइल) का उपयोग करके संकट को बुलावा दे रहे हैं।
बेहतर है बचाव
सी.ओ.पी.डी. का सर्वश्रेष्ठ बचाव धूम्रपान को रोकना है। जो रोगी प्रारंभ में ही धूम्रपान छोड़ देते हैं, उन्हें अधिक लाभ होता है। इसके अतिरिक्त अगर रोगी धूल और धुएं के वातावरण में रहता है या कार्य करता है, तो उसे शीघ्र ही अपना वातावरण बदल देना चाहिए या ऐसे कोम छोड़ देने चाहिए। ग्रामीण महिलाओं को लकडी, कोयला या गोबर के कंडे (उपले) के स्थान पर गैस के चूल्हे पर खाना बनाना चहिए। इसके अतिरिक्त सी.ओ.पी.डी. के रोगियों को प्रतिवर्ष इन्फ्लूएंजा से संबंधित वैक्सीन लगवानी चाहिए। इसी तरह न्यूमोकोकल वैक्सीन भी जीवन में एक बार लगवानी चाहिए।
परीक्षण
इस रोग की सर्वश्रेष्ठ जांच स्पाइरोमेट्री या पी.एफ.टी. है।
क्या करें
- सर्दी से बचकर रहें। पूरा शरीर ढकने वाले कपड़े पहनें। सिर, गले और कानों को खासतौर पर ढकें।
- सर्दी के कारण साबुन पानी से हाथ धोने की अच्छी आदत न छोड़ें। यह आदत आपको जुकाम और फ्लू की बीमारी से बचाकर रखती है।
- गुनगुने पानी से नहाएं।
- नियमित रूप से डॉक्टर के संपर्क में रहें और उनकी सलाह से अपने इन्हेलर की डोज भी सुनिश्चित करा लें।
कई बार इन्हेलर की मात्रा बढ़ानी होती है और आमतौर पर ली जाने वाली नियमित खुराक से ज्यादा मात्रा में खुराक लेनी पड़ती है।
- धूप निकलने पर धूप अवश्य लें। शरीर की मालिश करने पर रक्त संचार ठीक होता है।
- सर्दी, जुकाम, खांसी, फ्लू व सांस के रोगियों को सुबह-शाम भाप (स्टीम) लेना चाहिए। यह गले व सांस की नलियों (ब्रॉन्काई) के लिए फायदेमंद है।
- डॉक्टर की सलाह से वैक्सीन का प्रयोग जाड़े केमौसम में सक्रिय हानिकारक जीवाणुओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
- हाथ मिलाने से बचें। नमस्ते करना ज्यादा स्वास्थ्यकर अभिवादन है। इससे आप फ्लू समेत स्पर्श से होने वाले कई संक्रमणों से बच सकते हैं।
यह है उपचार
सी.ओ.पी.डी. के उपचार में इन्हेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है, जिसे डॉक्टर की सलाह के अनुसार नियमानुसार लिया जाना चाहिए। सर्दियों में दिक्कत बढ़ जाती है। इसलिए डॉक्टर की सलाह से दवा की डोज में परिवर्तन किया जा सकता है। खांसी और अन्य लक्षणों के होने पर डॉक्टर की सलाह के अनुसार संबंधित दवाएं ली जा सकती हैं। खांसी के साथ गाढ़ा या पीला बलगम आने पर डॉक्टर की सलाह से एंटीबॉयोटिक्स ली जा सकती हैं।
लक्षण
- सुबह के वक्त खांसी आना। धीरे-धीरे यह खांसी बढऩे लगती है और इसके साथ बलगम भी निकलता है।
- सर्दी के मौसम में खासतौर पर यह तकलीफ बढ़ जाती है। बीमारी की तीव्रता बढऩे के साथ ही रोगी की सांस फूलने लगती है।
- पीडि़त व्यक्ति का सीना आगे की तरफ निकल आता है। रोगी फेफड़े के अंदर रुकी हुई सांस को बाहर निकालने के लिए होंठों को गोलकर मेहनत के साथ सांस बाहर निकालता है, जिसे मेडिकल भाषा में पर्स लिप ब्रीदिंग
कहते हैं।
- शरीर का वजन घट जाता है।
- पीडि़त व्यक्ति को लेटने में परेशानी होती है।
डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी
प्रमुख: रेस्पाएरेटरी मेडिसिन विभाग