Move to Jagran APP

ब्रॉनकिएकटेसिस संभव है सटीक इलाज

ब्रॉनकिएकटेसिस में सांस नली की दीवारें इंफेक्शन व सूजन की वजह से अनावश्यक रूप से कमजोर हो जाती हैं। इस वजह से इनका आकार नलीनुमा न रहकर गुब्बारेनुमा या फिर सिलेंडरनुमा हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप ये दीवारें इकट्ठा हुए बलगम को बाहर निकालने में

By Edited By: Published: Tue, 11 Feb 2014 12:42 PM (IST)Updated: Tue, 11 Feb 2014 12:42 PM (IST)
ब्रॉनकिएकटेसिस संभव है सटीक इलाज

ब्रॉनकिएकटेसिस में सांस नली की दीवारें इंफेक्शन व सूजन की वजह से अनावश्यक रूप से कमजोर हो जाती हैं। इस वजह से इनका आकार नलीनुमा न रहकर गुब्बारेनुमा या फिर सिलेंडरनुमा हो जाता है।

loksabha election banner

इसके परिणामस्वरूप ये दीवारें इकट्ठा हुए बलगम को बाहर निकालने में असमर्थ हो जाती हैं। नतीजतन, सास की नलियों में गाढ़े बलगम का अत्यधिक जमाव हो जाता है, जो नलियों में रुकावट पैदा कर देता है। इस रुकावट की वजह से नलियों से जुड़ा हुआ फेफड़े का भाग बुरी तरह

क्षतिग्रस्त होकर सिकुड़ जाता है या फिर गुब्बारेनुमा होकर फूल जाता है। क्षतिग्रस्त भाग में स्थित फेफड़े को रक्त की सप्लाई करने वाली धमनी भी आकार में बड़ी हो जाती है। इन सबका

मिला-जुला परिणाम यह होता है कि क्षतिग्रस्त फेफड़ा व सास नली अपना कार्य सुचारु रूप से नहीं कर पाते और रोगी के शरीर में तरह-तरह की जटिलताएं पैदा हो जाती हैं।

कारण

देश में ब्रॉनकिएकटेसिस नामक बीमारी होने का मुख्य कारण सीने में स्थित सास नली व उसकी शाखाओं में बार-बार होने वाला इंफेक्शन है।

फेफड़े में बार-बार होने वाले ऐसे इंफेक्शस में न्यूमोनिया का इंफेक्शन प्रमुख है। अगर इस इंफेक्शन को शुरुआती दिनों में प्रभावी तरीके से

रोका नहीं गया, तो ब्रॉनकिएकटेसिस होने की आशका बढ़ जाती है। दूसरा कारण टी.बी. का इंफेक्शन है। समुचित दवा के बाद टी.बी. का

इंफेक्शन तो नियंत्रण में आ जाता है, पर फेफड़ों व उसमें स्थित सास नली पर जाते-जाते यह इंफेक्शन अपना प्रभाव छोड़ जाता है। इस वजह

से सास नली व फेफड़े की संरचना में बदलाव आ जाता है, जिससे दूसरे किस्म के जीवाणु वहा अपना डेरा जमा लेते हैं और धीरे धीरे सास नली

के कार्य में बाधा डालते हैं और यहीं से ब्रॉनकियकटेसिस की शुरुआत होती है। कुछ लोगों में यह बीमारी जन्मजात होती है। जैसे सिस्टिक फाइब्रोसिस नामक रोग बच्चों में होने वाली ब्रॉनकिएकटेसिस का एक बहुत बड़ा कारण है। कभी-कभी रक्त में एक जरूरी तत्व एल्फा-

1, एन्टीट्रिप्सिन नामक एन्जाइम की कमी होना, र्यूमैटॉइड अर्थराइटिस और अन्य आटोइम्यून बीमारिया भी ब्रॉनकिएकटेसिस के उत्पन्न होने का

एक बहुत बड़ा कारण बनती हैं। कभी-कभी बच्चे अनजाने में चना, मटर या सिक्का या कोई अन्य छोटी वस्तु मुंह में डाल लेते हैं, जो भोजन

की नली में न जाकर कभी कभी सास नली में चली जाती हैं और नीचे जाकर फेफड़े में स्थित सास नली में अटक जाती हैं। यहीं से उस बंद

सास नली से जुड़े हुए फेफड़े के भाग में ब्रॉनकिएकटेसिस की शुरुआत हो जाती है।

लक्षण

- बार-बार सीने में इंफेक्शन होना।

- सास फूलना।

- न थमने वाली व काफी देर तक चलने वाली खासी जो बेहाल कर दे।

- खासी के साथ बहुत गाढ़ा व मवादनुमा बलगम का आना।

-कभी-कभी केवल सूखी खासी का निरंतर आना और सास लेते समय सीने में गड़गड़ की आवाज होना।

जाचें

इस रोग में चेस्ट एक्सरे, ब्रॉन्कोस्कोपी, थोरकोस्कोपी, स्पाइरल सी.टी.स्कैन, एंजियोग्राफी और ब्रॉन्कियल आर्टरी इंम्बोलाइजेशन आदि परीक्षण कराए जाते हैं।

समुचित इलाज

ब्रॉनकिएकटेसिस से ग्रस्त रोगियों को चाहिए कि वे किसी अनुभवी थोरेसिक या चेस्ट सर्जन से परामर्श लें। हमेशा ऐसे अस्पताल में जाएं, जहा पर फेफड़े की सर्जरी होती हो और जहा पर

थोरेसिक सर्जन की चौबीस घटे उपलब्धता हो।

रोग के कारगर इलाज के लिए इसके कारणों को ढूंढ़कर और उन पर नियंत्रण करना आवश्यक है। इस रोग के इलाज के लिए एंटीबॉयटिक का

सही ढंग से इस्तेमाल होना चाहिए। क्षतिग्रस्त सास नली में जमे हुए गाढ़े बलगम को निकालने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए। कुछ विशेष

दवाएं जैसे ब्रॉन्कोडायलेटर, मियूकोलिटिक एजेन्ट्स काफी कारगार सिद्ध होती हैं।

सर्जरी की भूमिका

ब्रॉनकिएकटेसिस के इलाज में ऑपरेशन की महत्वपूर्ण भूमिका है। अगर फेफड़े का कोई भाग इस रोग की वजह से नष्ट हो गया है, तो उसे किसी थोरेसिक सर्जन से शीघ्र ही निकलवा देने में बुद्धिमानी है, अन्यथा स्वस्थ फेफड़ा और इसके आसपास का भाग भी रोगग्रस्त हो जाएगा।

कभी-कभी रोगी को खासी के साथ अत्यधिक रक्तस्त्राव होता है, जिससे इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति की जान जा सकती है। इसलिए ब्रॉनकिएकटेसिस

से ग्रस्त व्यक्ति को उपर्युक्त स्थिति में शीघ्र ही किसी बड़े अस्पताल में जाकर किसी थोरेसिक सर्जन से परामर्श लेना चाहिए ताकि रक्तस्त्राव पर अत्याधुनिक विधि इंबोलाइजेशन या सर्जरी द्वारा

प्रभावी नियंत्रण किया जा सके और रोगी की जान बच सके। याद रखें, अगर ब्रॉनकिएकटेसिस दोनों

फेफड़ों में फैल गई, तो इस स्थिति में फेफड़े के ट्रासप्लान्ट या प्रत्यारोपण के अलावा और कोई विकल्प शेष नहीं रहता।

डॉ. के.के.पाडेय

थोरेसिक व कार्डियोवैस्कुलर सर्जन

इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल, नई दिल्ली

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.