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गुरुओं का कर्ज उतारने के लिए सेवानिवृत्ति के बाद भी बांट रहे ज्ञान

संजीव कांबोज, यमुनानगर शिक्षा को आज कमाई बड़ा जरिया माना जा रहा है। बड़े शिक्षण संस्थान

By JagranEdited By: Published: Sun, 30 Apr 2017 12:26 AM (IST)Updated: Sun, 30 Apr 2017 12:26 AM (IST)
गुरुओं का कर्ज उतारने के लिए सेवानिवृत्ति के बाद भी बांट रहे ज्ञान
गुरुओं का कर्ज उतारने के लिए सेवानिवृत्ति के बाद भी बांट रहे ज्ञान

संजीव कांबोज, यमुनानगर

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शिक्षा को आज कमाई बड़ा जरिया माना जा रहा है। बड़े शिक्षण संस्थानों के साथ ही को¨चग सेंटर तक कामधेनु साबित हो रहे हैं, लेकिन एक शख्सियत ऐसी भी हैं, जो सेवानिवृत्ति के बाद भी स्कूल में नियमित रूप से अवैतनिक सेवाएं दे रहे हैं। उनका मानना है कि इस स्कूल और अध्यापकों का उनके व उनके परिवार पर जो कर्ज है, उसे उतारा तो नहीं जा सकता, लेकिन निस्वार्थ भाव से बच्चों को ज्ञान बांटकर अपना फर्ज तो अदा किया जा सकता है। हम बात कर रहे हैं दुसानी निवासी जयनारायण शर्मा की।

वे 31 मार्च, 2016 को मंडौली के राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल से सामाजिक विज्ञान के अध्यापक के पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने बताया कि यह पहले से ही तय किया हुआ था कि सेवानिवृत्ति के बाद वे इसी स्कूल में बच्चों को अवैतनिक रूप से पढ़ाएंगे और सेवानिवृत्ति के अगले दिन से ही उन्होंने नियमित रूप से स्कूल में आना शुरू कर दिया। निर्धारित शेड्यूल के मुताबिक वे सामाजिक विज्ञान विषय की कक्षा लेते हैं और स्कूल से जुड़े अन्य कार्य भी करते हैं। उनका कहना है कि ज्ञान बांटने से कम नहीं होता, बल्कि और बढ़ता है और यदि हम समर्थ हैं तो सेवाभाव से इस प्रकार के कार्य करते रहने रहना चाहिए।

इसी स्कूल से ग्रहण की शिक्षा

जयनारायण शर्मा ने बताया कि 10वीं तक इसी स्कूल से शिक्षा ग्रहण की है और इसी स्कूल में सेवाएं देने के बाद यहीं से रिटायर हुए। इसके अलावा बड़े भाई अशोक कुमार नायब तहसीलदार के पद से, नरेश कुमार मारुति कंपनी से और शिवनारायण शर्मा डिफेंस से रिटायर हुए। छोटे भाई जंगशेर ¨सह करेहड़ा के सरकारी स्कूल में संस्कृति के अध्यापक हैं। उनका कहना है कि सभी भाइयों ने इसी स्कूल से शिक्षा ग्रहण की है। उनके दो बेटे त्रिलोकी शर्मा और गौरी शंकर भी इसी स्कूल में पढ़कर आज प्रतिष्ठित कंपनियों में बतौर इंजीनियर हैं।

समाजसेवा के लिए रहें तत्पर

उनका कहना है कि अध्यापकों का समाज सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए। अपने जीवन का कुछ समय यदि हम समजासेवा में लगाएं तो मन को संतुष्टि मिलती है। जीवन में पैसे कमाना ही सबकुछ नहीं है। रिटायर होने के बाद सरकार पेंशन दे रही है, तो हम सभी का दायित्व बनता है कि कुछ न कुछ समाज के लिए करें। सेवानिवृत्ति के बाद यदि हम बच्चों को ज्ञान बांट रहे हैं, तो अपना ज्ञान भी बढ़ा रहे हैं और समाज सेवा का मौका भी मिल रहा है। स्कूलों में अध्यापकों की कमी को देखते हुए सेवानिवृत्त अध्यापकों को आगे आना चाहिए। इससे बड़ा कोई पुण्य का कार्य नहीं होगा।


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