जन्म से पीलिया की गिरफ्त में आ रहे बच्चे
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : जन्म से ही बच्चे पीलिया की गिरफ्त में आ रहे हैं। सामान्य वजन के क
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : जन्म से ही बच्चे पीलिया की गिरफ्त में आ रहे हैं। सामान्य वजन के करीब 60 फीसद बच्चों को पीलिया के लक्षण देखे जा रहे हैं। हालांकि चिकित्सकों के मुताबिक यदि पीलिया 22 मिलीग्राम तक हो आसानी से कवर हो जाता है, लेकिन इससे ऊपर विशेष रूप से एहतियात बरतने की जरूरत होती है।
15-20 फीसद बच्चों में पीलिया 22 को पार कर जाता है। यदि समय पर ध्यान न दिया जाए तो रक्त बदलने की नौबत आ सकती है और दिमाग पर असर होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
क्या बनता है कारण
विशेषज्ञों के मुताबिक जब तक बच्चा गर्भ में होता है, तब तक मां का लीवर बच्चे के रक्त को साफ रखता है। जन्म के समय बच्चे का लीवर इतना क्रियाशील नहीं होता और बच्चे के शरीर में सेल टूटते-फूटते रहते हैं। सही तरीके से रक्त साफ नहीं हो पाता। लेकिन धीरे-धीरे बच्चे का लीवर काम करना शुरू कर देता है और स्थिति सामान्य होती चली जाती है। समय से पहले पैदा हुए बच्चों में पीलिया की संभावना अधिक रहती है।
मां के दूध से भी पीलिया
विशेषज्ञ बताते हैं कि मां के दूध से भी कई बार पीलिया होने की संभावना रहती है जिसे ब्रेस्ट मिल्क जोंडिस कहते हैं। ऐसी माताओं के दूध में एक विशेष प्रकार का एंजाइम होता है जो पीलिया का कारण बनता है। ऐसी स्थिति में कुछ दिन तक मां के दूध से परहेज किया जाता है। इसके अलावा ब्रेस्ट फी¨डग जोंडिस भी हो जाता है। यह उन परिस्थितियों में होता है जब बच्चा जन्म के समय कई घंटे तक दूध नहीं पी पाता और उसके अंदर पानी की कमी हो जाती है।
क्या बरतें एहतियात
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुण गुप्ता का कहना है कि सबसे जरूरी है कि गर्भावस्था में मां को संतुलित आहार लेना चाहिए। धूम्रपान व फास्टफूड का सेवन बिल्कुल न करें। पहले तीन माह किसी भी प्रकार की दवाई के प्रयोग से परहेज करें। यदि बहुत ही जरूरी है तो बाल रोग विशेषज्ञ से परामर्श के मुताबिक ही दवाई लें। अपनी मर्जी से कोई भी दवाई न लें। यह नुकसान दायक साबित हो सकती है। डिलीवरी अस्पताल में ही करवाएं और सफाई का विशेष रूप से ख्याल रखें। यदि समय रहते गौर कर ली जाए तो पीलिया कोई बड़ी बीमारी नहीं है। बच्चों में यह आम बात है, लेकिन यदि मात्रा बढ़ जाती है तो नुकसान दायक साबित हो सकती है।