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बिपरीत लहर में निर्दलीयों के हाथ रही बाजी

By Edited By: Published: Wed, 17 Sep 2014 06:24 PM (IST)Updated: Wed, 17 Sep 2014 06:24 PM (IST)

जॉनर: अतीत से---

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-1977 में गंगाराम व 1991 में किताब सिंह रहे विजयी

-जनता पार्टी व कांग्रेस प्रत्याशी रहे रामधारी हो हराया

जागरण संवाददाता, गोहाना:

गोहाना विधानसभा क्षेत्र के लोगों का वोट डालने का नजरिया कुछ और ही रहा है। हरियाणा में जब 1977 के चुनाव में जनता पार्टी और 1991 के चुनाव में जब काग्रेस पार्टी की जबरदस्त लहर थी तो उस समय गोहाना के लोगों ने दिग्गजों को नकारते हुए निर्दलीयों को सिर पर बैठा लिया। इस हलके से दो बार ही निर्दलीय विधायक बने है। संयोग से ही दोनों निर्दलीयों ने राजनीति के माहिर प. रामधारी गौड़ को हराया। गौड़ एक बार जनता पार्टी और एक बार काग्रेस पार्टी की टिकट पर निर्दलीयों से चुनाव हार गए थे।

वर्ष 1977 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा प्रदेश में जनता पार्टी की जबरदस्त लहर थी। इस लहर में पूरे प्रदेश में जनता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था और स्पष्ट बहुमत से सरकार भी बनाई थी। इस चुनाव में गोहाना विधानसभा क्षेत्र से रामधारी गौड़ जनता दल के प्रत्याशी थे। गौड़ 1967, 1968 व 1972 के विधानसभा चुनाव में काग्रेस पार्टी की टिकट पर गोहाना हलका से लगातार तीन बार विधायक भी बन चुके थे। 1977 के चुनाव में जनता दल की आधी में लग रहा था कि रामधारी गौड़ रिकार्ड तोड़ मतों से जीत दर्ज करेगे। जब चुनाव परिणाम आए तो सबको हैरान में डाल दिया। इस चुनाव में गोहाना हलके से निर्दलीय गंगाराम विधायक बन गए और रामधारी गौड़ हार गए। गंगाराम ने 18649 वोट लिए थे और रामधारी गौड़ को 17337 वोट मिले थे।

गोहाना हलके में निर्दलीय ने दूसरा इतिहास 1991 में रचा। इस चुनाव में काग्रेस पार्टी की जबरदस्त लहर थी। इस चुनाव में प. रामधारी गौड़ ने काग्रेस पार्टी की टिकट पर ही चुनाव लड़ा था। जब चुनाव का परिणाम सामने आया तो सब दंग रह गए थे। इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किताब सिंह मलिक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुच गए। मलिक ने गौड़ को इस चुनाव में करारी मात दी थी। निर्दलीय के रूप में मलिक ने 27057 वोट लिए थे जबकि काग्रेस प्रत्याशी गौड़ 18349 वोट पर सिमट गए थे।

राजनीतिक जानकार सुरेंद्र ंिसह बताते हैं कि क्षेत्र के मतदाताओं का मिजाज शुरू से ही अलग रहा है। गोहाना विधानसभा से ही जिले व आसपास की राजनीति प्रभावित होती रही है। वर्ष 1977 तथा 1991 में जब जनता पार्टी व कांग्रेस की लहर थी, तब इन दोनों दलों के प्रत्याशियों को लोगों ने धूल चटा दी थी।


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