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सरकारी खरीद के बाद भी मिल में बिक रहा किसानों का धान

जागरण संवाददाता, सिरसा पहले सरकारी खरीद के लिए किया संघर्ष, अब जब धान की खरीद शुरू हो गई तो एजेंसि

By Edited By: Published: Thu, 08 Oct 2015 11:40 PM (IST)Updated: Thu, 08 Oct 2015 11:40 PM (IST)

जागरण संवाददाता, सिरसा

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पहले सरकारी खरीद के लिए किया संघर्ष, अब जब धान की खरीद शुरू हो गई तो एजेंसिया धान को पॉशिग करने से पीछे हट रही हैं। किसानों की मानें तो सरकारी खरीद के नाम पर उनके साथ खेल हो रहा है। इसे किसानों की बेबसी कहे या उनकी बदकिस्मती कि उन्हें मंडी के बजाय के कम दामों में मीलों में धान बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। किसानों के अनुसार सरकारी एजेंसिया खरीद करने की बजाय धान में नमी ज्यादा बता खरीद नहीं कर रही। परतु वहीं धान की ढेरी निजी राइस मील संचालक कम रेट में लेने के लिए तैयार हो जाते है। और तो और कुछ दलाल भी अपना हाथ साफ करने में जुटे हुए है। उसी ज्यादा नमी बता कर खरीद से मना की गई ढेरी को दलाल 60 से 70 रुपये प्रति क्विंटल के कमीशन में हाथों हाथ बिकवाने का दावा करते हैं।

प्रदेश की मंडियों में सरकार द्वारा 2 अक्टूबर से धान की सरकारी खरीद शुरू की गई। मंडियों में धान सितंबर माह से आना शुरू हो गया था। लेकिन सरकारी खरीद न होने के चलते किसान प्राइवेट राइस मिलरों को बेचने के लिए मजबूर थे। सरकारी खरीद के साथ सरकार ने धान का रेट 1450 रुपये तय कर दिया। इससे पूर्व किसानों ने अपना अनाज 1200 से लेकर 1300 रुपये तक बेच दिया। लेकिन अब जब धान की सरकारी खरीद शुरू भी हो गई तो अधिकतर किसान इसका लाभ उठाने से वंचित रह रहे है। इसके पीछा का कारण एजेंसी अधिकारी धान में नमी बताकर मुकर रहे है। कुछ किसानों का तो यहा तक कहना है कि सुनने में जरूर आता है कि सरकारी खरीद हो रही है लेकिन उनके पास न तो कोई अधिकारी आए और न उनकी सरकारी खरीद हुई है।

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यूं चलते है दाव पेंच

वैसे तो किसान की मर्जी है वह धान को जिसे चाहे बेच दे लेकिन किसान जहा मुनाफा मिलेगा वहीं बेचने की आश रखेगा। लेकिन उसकी मनमर्जी यहा बेबस हो जाती है जब वह चाहकर भी मुनाफा नहीं कमा सकता। जिस ढेरी को सरकारी एजेंसी रिजेक्ट कर देती है उसे किसान को किसी अन्य को बेचना पड़ता है। ऐसे में घात लगाए बैठे प्राइवेट मिल मालिक किसान के पास पहुंचकर मोल भाव लगाते हैं लेकिन सरकारी रेट से कम कीमत पर, किसान चाहे तो मना भी नहीं कर सकता क्योंकि सरकारी खरीद की आश तो रिजेक्ट के बाद समाप्त हो जाती है। ऐसे में जो भी भाव तय करते है उसी से काम चलाने पर मजबूर होना पड़ता है।

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किसानों की कौन सुनता है, वहीं करते है जो अधिकारियों को मंजूर होता है

'सुबह से अनाज मंडी में धान लेकर आया, सिर्फ सुना था कि सरकारी एजेंसी के अधिकारी आए लेकिन खरीद करने से मना कर गए, इसके बाद प्राईवेट एजेंसियों के संचालक आए और बोली देकर 1325 रुपये धाम लगाकर चले गए। वैसे भी किसानों की यह तो आम समस्या है हमेशा सहन करता आया है करना भी पड़ेगा' ।

कस्तूरी लाल किसान, पनिहारी

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'काहे की सरकारी खरीद, घोषणा कर किसानों को मूर्ख बनाया जा रहा है। यहा अनाज तो लेकर आ गए लेकिन दुर्दशा ही भुगत रहे है। दबाव किसी पर दे नहीं सकते, देने से फायदा ही क्या है सरकारी खरीद के लिए तो इतजार करना पड़ता है। लेकिन किसान के पास इतनी सुविधा नहीं की वह अधिक दिन तक मंडी में रह सके'।

लालचंद किसान, रसूलपुर


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