सद्गुरु के गुणों की व्याख्या संभव नहीं: डॉ. मारकंडे
जागरण संवाददाता, रोहतक : संसार में जिन व्यक्तियों ने अपने भीतर झांकना सीख लिया, उस परमतत्व को अनुभव
जागरण संवाददाता, रोहतक : संसार में जिन व्यक्तियों ने अपने भीतर झांकना सीख लिया, उस परमतत्व को अनुभव कर लिया, उन्होंने आत्मा को सर्वोपरि माना और देह से दूरी बनानी आरंभ कर दी। यह कहना है बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. मारकंडे का। वे बुधवार को गोरखवाणी के सिद्धांतों पर अपने विचार रख रहे थे। उन्होंने कहा कि गोरखनाथ ने मानव उत्थान मार्ग को प्रकाशित करते हुए एक सद्गुरु को जीवन का आधार बताया। गोरख जी के अनुसार अनेक सिद्ध पुरुषों ने अपने-अपने काल में मानव मात्र को उत्थान का मार्ग केवल सद्गुरु को बतलाया और उसकी पहचान हो जाने पर स्वयं की मूच्र्छा का त्याग कर हमें उनके श्री चरणों में नतमस्तक रहना चाहिए। क्योंकि सद्गुरु के गुणों की व्याख्या संभव नहीं
है। सद्गुरु प्राप्ति के लिए स्वयं को मांजना आवश्यक है। जिस व्यक्ति ने स्वयं के अहं को त्याग दिया है। स्वयं के भीतर आत्मिक गुणों को प्रकाशित कर लिया है। जिसे स्वयं की बुराई निकालने का अवसर मिल चुका है, वहीं सद्गुरु को पा सकता है। आज ऐसे ही शिक्षक समूह की आवश्यकता है। डायनामाइट के अविष्कारक एल्फ्रेड नोबेल को आज हम जिस रूप में याद रखते है, उसी संदर्भ में पीढ़ी दर पीढ़ी हमें भी याद रखा जाए। ऐसा तभी संभव हो सकता है जब हम स्वयं को मांजकर शिष्य के भीतर की बुराइयों को निकाल दें और उसे एक अच्छा व्यक्ति बनने में सहायक हों। इस अवसर पर प्रति कुलपति डॉ. अंजू आहूजा के साथ सभी विभागों के अध्यापकगण उपस्थित थे।