मझधार में फंसा कारोबार तो बन गई पतवार
सशक्त नारी, समृद्ध समाज -तीन बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी के साथ संभाल रही कारोबार -घाटे
सशक्त नारी, समृद्ध समाज
-तीन बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी के साथ संभाल रही कारोबार
-घाटे में चल रही कंपनी की कमान संभाली और पति के साथ मिलकर फिर से ला दिया फायदे में
- सुरक्षा के लिहाजे से रिवाल्वर के लाइसेंस के लिए किया आवेदन
फोटो संख्या :: 01
अरुण शर्मा, रोहतक : जब पति पर परेशानी आती है तो भारतीय नारी ढाल बनकर खड़ी हो जाती है। अपनी परेशानियों की परवाह किए बगैर कैकेयी की तरह अपने पति के रथ की धुरी में अंगुली लगा देती है और पराजय की स्थिति को परे धकेलकर जीत सुनिश्चित करती है। शहर के मॉडल टाउन निवासी आरती गुप्ता ने नारी शक्ति के इसी रूप को एक बार फिर साबित किया है। पति के कारोबार को डूबते देखकर आरती ने पति के साथ खुद उसकी बागडोर संभाल ली और घाटे में चल रही फैक्टरी को दोबारा फायदे में लाने में कामयाब रही।
आरती की खासियत यह है कि हर कारोबारी परेशानी को चुनौती के रूप में लेती हैं और उसके सही समाधान में जुट जाती हैं। हाल ही में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान जब हर कोई घर से बाहर निकलने से भी डरता था, आरती खुद चार पहिया गाड़ी ड्राइव कर तैयार माल की सप्लाई पहुंचाती रही और कंपनियों के आर्डर भी लेती रही।
दिल्ली के मॉडल टाउन निवासी आरती गुप्ता की शादी रोहतक के संजय गुप्ता के साथ करीब 17 वर्ष पहले हुई थी। जिस समय आरती की शादी हुई, उस समय नट-बोल्ट फैक्टरी एवं अन्य औद्योगिक कारोबार ससुर हरिराम गुप्ता संभालते थे। बाद में कारोबार का बंटवारा हो गया। ऐसे में आरती के पति संजय को अकेले कारोबार संभालने का मौका मिला। आरती बताती हैं कि करीब तीन-चार करोड़ के सालाना टर्नओवर और 60 से अधिक कर्मचारियों के कारोबार को अकेले संभालना चुनौती का काम था। जिस वक्त कारोबार संजय के हाथ में आया, उस दौरान फैक्टरी नुकसान में भी चल रही थी इसलिए संजय भी तनाव में रहते थे। पत्नी और तीन बच्चों को भी वह वक्त नहीं दे पाते। ऐसे में पति के तनाव को बढ़ते देख एक रोज आरती ने ही पति के सामने प्रस्ताव रखा कि आपका हाथ बंटाने के लिए मुझे भी दफ्तर जाना है। तीन बच्चों व परिवार की जिम्मेदारी देखते हुए पहले तो पति ने आरती को समझाया, लेकिन बाद में हामी भर दी। फिर तो नए सिरे से काम शुरू हुआ और फैक्टरी में पति के साथ पार्टनर बन गईं। नुकसान में चल रहे कारोबार को फिर से पटरी पर लौटाया। कर्मचारियों से लेकर टर्नओवर तक पांच से छह करोड़ तक पहुंच गया। अब फैक्टरी के हर छोटे-बड़े फैसले आरती और उनके पति संजय की आपसी सलाह के बाद ही तय होते हैं।
ऐसे बैठाती हैं परिवार और फैक्टरी के काम में सामंजस्य
फैक्टरी और परिवार व बच्चों की एक साथ जिम्मेदारी संभालना आसान नहीं था, दिल्ली से एमबीए की पढ़ाई कर चुकी आरती कहती हैं कि मैंने पति के विश्वास के कारण खुद को साबित किया। सुबह पांच बजे रोजाना जागकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार करने से लेकर टिफिन पैक करने तक का काम भी खुद ही करती हैं। साढ़े आठ बजे तक बच्चों को स्कूल भेजकर सुबह साढ़े नौ बजे फैक्टरी के लिए रवाना हो जाती हैं। इसके बाद शाम साढ़े छह बजे तक वहां रहती हैं। हालांकि यह भी कहती हैं कि रोजाना बच्चों से बात करती हैं, इसकी वजह है कि बच्चे पापा के बजाय मम्मी से हर बात शेयर करते हैं।
घर में हो गई चोरी फिर भी कर्मचारियों को दिलाया बोनस
आरती सिर्फ परिवार और बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि अपने कर्मचारियों के लिए भी हर पैमाने पर अच्छे फैसले लेने से भी पीछे नहीं हटती हैं। करीब एक साल पहले एक घटना का जिक्र करते हुए आरती की आंखे नम हो जाती हैं। कहती हैं कि दिवाली पर कर्मचारियों को बांटने के लिए रखी बोनस की रकम करीब 22 लाख के अलावा गहने और अन्य सामान चोरी हो गया। कर्मचारी भी बोनस न मिलने की आशंका से परेशान और नाराज थे। ऐसे में परेशानी वाली बात यह थी कि एक साथ इतनी रकम का इंतजाम कैसे किया जाए। आरती बताती हैं कि पार्टियों के अलावा कई जानकारों से पैसा उधार लिया, लेकिन कर्मचारियों को मैंने बोनस दिलाया।